महावीर अर्थात् अभिमान और अनुमान का हनन करने वाले

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अनुमान अगर पनपने दिया तो हनुमान कभी नहीं बन सकते, महावीर आत्मा नहीं बन सकते। तो जिसने अनुमान और अभिमान का हनन किया, वही हनुमान है। तो ऐसी महावीर आत्मा हमें बनना है। अभिमान रिंचक न हो तभी राम के यथार्थ रूप में मददगार बन सकते हैं।

शबरी के एक-एक बेर को राम ने स्वीकार किया। उनका अपमान नहीं किया। लेकिन लक्ष्मण को गुस्सा आ रहा था अन्दर से। ये राम कहाँ बैठ गये, झूठे बेर खा रहे, अरे बेर ही खाना था तो मैं जंगल से ले आता। माता सीता को ढूंढने निकले और यहाँ टाइम वेस्ट कर रहे हैं। उसको गुस्सा आ रहा था। राम ने तो बेर स्वीकार किये, लक्ष्मण को कहा लो ‘बहुत मीठा है’ आप भी खाओ। लेकिन लक्ष्मण फेंक दिया, स्वीकार नहीं किया। कई बाबा के बच्चे भी उन गरीब शबरियों का अपमान करते हैं। और जो अपमान करते हैं…. अपमान का फल भी रामायण के अन्दर दिखाया, कि लक्ष्मण को मूर्छा आती है और जब मूर्छा आती है तो कौन-सी जड़ी-बूटी काम आयी? वही झूठे बेर, जो पेड़ बन करके निकले थे। पूरा पेड़ का पेड़ जैसे कि उसके लिए जड़ी-बूटी के रूप में काम में आया। तब वो मूर्छा से बाहर आया। इसलिए याद रखना कभी-भी कोई गरीब बाबा के बच्चों का अपमान न हो जाये। क्योंकि अपमान हुआ तो मूर्छा ज़रूर आयेगी।
इतनी सुन्दर रामायण हमें बातें सिखाती है। हमारा ब्राह्मण जीवन है। जाने-अनजानेपन में भी हम ज्ञानी तू आत्मा का लक्षण यही होना चाहिए कि हर आत्मा कोई साधारण हो, अमीर हो, साहूकार हो, कैसी भी आत्मा हो, लेकिन उसका अपमान हमसे नहीं होना चाहिए। उनको सम्मान दो। इसलिए श्री राम को मूर्छा नहीं आयी। ज्ञानी तू आत्मा को मूर्छा कभी नहीं आयेगी, अगर सम्मान देंगे तो। कई प्रकार के दुनिया के ‘नागपाश’ हमें डसने का प्रयत्न करेंगे। इसलिए ब्राह्मण जीवन सहज, सरल हो, तो उसके लिए हर आत्मा का सम्मान करें। क्योंकि कभी-कभी वो साधारण आत्मायें भी आगे के रास्ते दर्शाने के लिये निमित्त बन जाती हैं। और इसीलिए जब ज्ञानी तू आत्मा ने पूछा कि अब आगे मुझे कहाँ जाना है? तो कहा कि ऋषिमुख पर्वत पर हनुमान आपका इंतज़ार कर रहा है। आपका भक्त आपके इंतज़ार में बैठा है। आगे के डायरेक्शन शायद कभी-कभी उनके मुख से भगवान ऐसी बात बुलवाते हैं, जो बात हमारे लिए बहुत काम की हो जाती है। हमारे पुरुषार्थ के मार्ग में सरलता, सहजता एक रियलाइज़ेशन करा देती है। और इसीलिए ऐसी साधारण आत्मा का भी सम्मान करो।
बाबा के जीवन कहानी में ये बात आती है कि बाबा के सामने एक भीलनी होती थी, और भीलनी नहा-धोकर, स्वच्छ होकर, बाबा के लिये कुछ-न-कुछ भोग बनाकर लाती और बाबा स्वीकार कर लेते। कईयों ने बाबा को कहा कि बाबा — ये ‘भीलनी’ ले आई है, उसको आप कैसे स्वीकार करते हैं? बाबा ने कहा, उस बच्ची ने नहा-धोकर, इतना स्वच्छ होकर, इतना प्यार से ये बनाया है, बाबा कैसे स्वीकार नहीं करेगा? और वो भीलनी एक रूपया लेकर आती और बाबा को कहती कि बाबा मेरी भी एक ईंट लगा देना। उसी भीलनी का गायन है जो आज तक मुरली में आता है कि एक रूपया भी ईंट के लिए भेज देती है और बाबा कहता है उसका एक रूपया साहूकार के पाँच हज़ार के बराबर हो जाता है। पाँच हज़ार क्या, कभी बाबा दस हज़ार कह देते हैं, कभी बाबा अनगिनत कह देते हैं। इतनी बाबा ने वैल्यू की। तो इसी तरह साधारण आत्मा का कभी भी हमें अपमान नहीं करना चाहिए। और फिर ऋषिमुख पर्वत पर जाने से ही वहाँ हनुमान जी मिलते हैं। हनुमान यानी महावीर। महावीर कैसे होते हैं, किसको महावीर कहते हैं? जिसने अभिमान और अनुमान का हनन किया है, उसको कहा जाता है हनुमान। अभिमान और अनुमान अक्सर ब्राह्मणों में ये भी एक माया आती है। ज़रूर ऐसा होगा। ये बात ज़रूर ऐसे होगी, तभी ये कहा। माना अनुमान अगर पनपने दिया तो हनुमान कभी नहीं बन सकते, महावीर आत्मा नहीं बन सकते। तो जिसने अनुमान और अभिमान का हनन किया, वही हनुमान है। तो ऐसी महावीर आत्मा हमें बनना है। अभिमान रिंचक न हो तभी राम के यथार्थ रूप में मददगार बन सकते हैं।
कहा जाता है कि हनुमान अपनी स्मृति, विस्मृत हो गया था क्योंकि कितनी शक्ति और क्षमता है, तब सभी ने उसको स्मृति दिलाने का काम किया— तुम्हारे अन्दर तो अथाह शक्ति है। अनगिनत शक्ति है। तुम ऐसे हिम्मत नहीं हार सकते। तुम्हें तो राम का मददगार बनना है, असम्भव को सम्भव कर देना है। वो स्मृति स्वरूप जैसे हो गया, वो स्वमान में स्थित हो गया, तो समुद्र लांघने का काम कर देता है।

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