हमारे संकल्प ही हमारे डॉक्टर

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हमारा भाग्य हमारे हाथ में है। हमारा हर कर्म मन(आत्मा) से हो रहा है। हम तो सोच क्रियेट कर रहे हैं कि हम परफेक्ट हैं, परफेक्ट हैं, लेकिन आसपास के लोग बोलते हैं कि थके हुए हैं, थके हुए हैं, तो उनको भी स्टॉप करना है। धीरे-धीरे हमारे सारे निगेटिव वायब्रेशन्स के शब्द बदलते जायेंगे। दुआ वो नहीं होती है जो कोई कभी-कभी आकर देता है, दुआ मतलब हमारा हर थॉट दुआ।

पिछले अंक में बताया गया था कि जब हम अपनी सोच से अपनी समस्या को बढ़ा सकते हैं तो अपनी सोच से ही उसे कम भी तो कर सकते हैं। लेकिन हम इस पॉवर को यूज़ करें ना फिर।
संकल्प से सिद्धि एक लॉ है, जो संकल्प हम करते हैं वो वायब्रेट होता है और वो होता जाता है। हम चाहते हैं कि ये ठीक हो जाए तो हम कौन-सी थॉट क्रियेट करेंगे? ठीक हो जाये… ये भी नहीं क्रियेट करना है, क्योंकि इसकी भी एनर्जी है। ठीक हो जाए मतलब अभी ठीक नहीं है। जो दिख रहा है वो नहीं सोचना है। वो सोचना है जो देखना चाहते हैं।
जैसे मान लो आप ऑफिस से थोड़ा थके हुए शाम को घर पहुंचते हो और घर पहुंचते ही कहते हो कि मैं बहुत ज्य़ादा थका हुआ हूँ, ये सोचते जाओ और बोलते जाओ। फिर कोई पूछेगा घर पे कि थके हुए हो, तो कहेंगे हाँ, बहुत थका हुआ हूँ। फिर सब बच्चों को भी बोलेंगे कि उनको डिस्टर्ब नहीं करना, वो बहुत थके हुए हैं। फिर किसी का फोन आएगा, बाहर वॉक पे चलना है, नहीं जी आज वो बहुत थके हुए हैं। तो जो थकावट थोड़ी थी वो बढ़ेगी या नहीं बढ़ेगी? अब इस थकावट को कम करने के लिए क्या बोलना पड़ेगा? सच्चाई को नकार तो बिल्कुल नहीं सकते, सोच तो क्रियेट करनी पड़ेगी। लेकिन कौन-सी थॉट क्रियेट करनी है वो च्वॉइस हमारी है। तो हम आये घर, ऑफिस से, शरीर थोड़ा-सा थका हुआ है, ये सच है। लेकिन वो उसी समय की सच्चाई है। एक घंटे के बाद की स्थिति क्या बनानी है ये हमारी च्वॉइस है।
जब हम ऑफिस से घर आयें और कोई पूछे कि कैसे हो तो हमें सही शब्द यूज़ करना है। कहना है- हम फ्रेश हैं, बिल्कुल फ्रेश हैं, मौज में हैं, एनर्जेटिक हैं। और ये सिर्फ औरों को नहीं बोलना, ये हमें अपने आप को भी बोलना है। और सिर्फ मुख से नहीं, मन से बोलना है। आप सिर्फ एक दिन ये प्रयोग करके देखिएगा। आप सिर्फ बोलते जाओ, सब परफेक्ट है, सब परफेक्ट है, परफेक्ट है, मैं बिल्कुल परफेक्ट हूँ। हमारे संकल्प हमारे शरीर तक पहुंच रहे हैं। और जो थकान पचास पर थी वो धीरे-धीरे चालीस पर आयेगी या नहीं आयेगी! हमारा भाग्य हमारे हाथ में है। हमारा हर कर्म मन(आत्मा) से हो रहा है। हम तो सोच क्रियेट कर रहे हैं कि हम परफेक्ट हैं, परफेक्ट हैं, लेकिन आसपास के लोग बोलते हैं कि थके हुए हैं, थके हुए हैं, तो उनको भी स्टॉप करना है। धीरे-धीरे हमारे सारे निगेटिव वायब्रेशन्स के शब्द बदलते जायेंगे। दुआ वो नहीं होती है जो कोई कभी-कभी आकर देता है, दुआ मतलब हमारा हर थॉट दुआ। हमारा हर थॉट, हर शब्द दुआ बन जाये तो हमारा जीवन ही दुआओं से भरपूर हो जाएगा, खुद के लिए भी और सभी के लिए भी।

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