बाबा का एहसान नहीं चुका सकता…!!!

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आप कौन हैं। साकार बाबा के सामने भी जब मैं जाता था तब भी मेरे मन में यही भाव होता था। कमाल है, बाबा ने मेरे लिए क्या नहीं किया! मैं आपसे सच बताता हूँ। मैं कुछ भी नहीं था। कुछ काम का नहीं था। उन्होंने मेरे लिए क्या नहीं किया!

जब भी मैं बाबा के सामने जाता हूँ तो मेरा हाथ ऐसा होता है (सिर झुकाकर प्रणाम करने का)। क्योंकि उन्होंने मुझ पर बहुत एहसान किया है, उपकार किया है, कल्याण किया है। बाबा कहते हैं कि मैं बाप भी हूँ, शिक्षक भी हूँ और सद्गुरु भी हूँ। ये तीनों रूप मुझे साथ-साथ दिखायी देते हैं। इसलिए अनजाने में भी बाबा के सामने मेरे हाथ जुड़ जाते हैं, जैसे नमस्कार है सद्गुरु को। मैं उनका कृतज्ञ हूँ, उन्होंने सदा मेरा साथ दिया है, संरक्षण किया है। बहुत विनम्र भाव से मैं उनके प्रति खड़ा होता हूँ। वे कहाँँ, मैं कहाँ! ठीक है, मैं उनका बच्चा हूँ। जो राजा का बच्चा हो, उसका अपना स्थान होता है लेकिन यहाँ बात कुछ और है। शिव बाबा, जिसको सारी दुनिया याद करती है और मैं एक छोटा-सा व्यक्ति जो आवारागर्द था। उसको उन्होंने क्या बनाया, क्या सिखाया! उनकी कमाल है। मेरे मन का उद्गार उस रूप में प्रकट होता है। जब बाबा को देखता हूँ, बाबा के पास भी मेरा वो भाव पहुंचता है और उनका भी मेरे प्रति पहुंचता है। मेरे से कोई भी भूल हुई हो, चूक हुई हो, क्षमा कीजिए। आप अत्यन्त महान हैं। मैंने अज्ञानतावश आपकी कोई बात नहीं मानी होगी, नाफरमानबरदारी की होगी, जैसे आप कहते हैं कि जैसे शिष्य को गुरु की बात माननी चाहिए, अगर मैं नहीं मान पाया हूँगा, अपनी असमर्थता से, आलस्य से, कोई और कारण से हो सकता है, मुझे क्षमा कीजिए।
मुझे यह भी मालूम है कि बाबा क्षमा नहीं करते लेकिन मेरा भाव यह होता है कि मुझे क्षमा कीजिए। गीता में भी आपने पढ़ा होगा। पहले संवाद है अर्जुन का और भगवान का। वह जो संवाद है उसमें अर्जुन प्रश्न भी करता है, बातें भी करता है और संशय भी प्रकट करता है। समझता है कि यह मेरा सम्बन्धी है। उस भाव से बात करता रहता है। बाद में जब उसको दिव्य दृष्टि मिलती है, साक्षात्कार करता है कि यह कौन है मेरे सामने! लाइट ही लाइट! एक जबरदस्त लाइट और माइट। तब वह कहता है, ‘नमस्करु’, मैं आपको नमस्कार करता हूँ। आप मेरे श्रद्धेय हैं, आप मेरे पूज्यनीय हैं।
मैं यह कह रहा था कि जिस प्रसंग में, बाबा, मैंने अपनी अज्ञानता में कुछ भी कहा होगा, उसको क्षमा कर दीजिये। अब मैं समझा कि आप कौन हैं। साकार बाबा के सामने भी जब मैं जाता था तब भी मेरे मन में यही भाव होता था। कमाल है, बाबा ने मेरे लिए क्या नहीं किया! मैं आपसे सच बताता हूँ। मैं कुछ भी नहीं था। कुछ काम का नहीं था। उन्होंने मेरे लिए क्या नहीं किया! मुझे क्या से क्या बनाया! जो भी बनाया मुझे, उन्होंने ही बनाया। लोग समझते हैं कि इसने यह किया, वह किया। करनकरावनहार तो बाबा है। मैंने कुछ भी नहीं किया। अगर मैंने किया हो, वो बाबा की टचिंग से किया लेकिन टचिंग तो उनकी थी। काम करवाया उन्होंने। मैं सच बताता हूँ आपको, मैंने कुछ नहीं किया। बड़े-बड़े जनसमूह का, शहर के शहर का मैंने सामना किया, हमारी संस्था के विरोध में, तलवार लिए हुए, मारने को तैयार! ऐसे कई किस्से हुए हैं। सामने तो मैं था लेकिन मेरे साथ कौन था? मुझे बचाया किसने? अगर मैंने कोई तरीका भी अपनाया, वह टचिंग किसकी थी? वह उनकी थी। यह मैं ऊपर-ऊपर से नहीं कह रहा हूँ, अनुभव से कह रहा हूँ। ये अनुभव ऐसा हल्का-सल्का नहीं, गहरा, बिल्कुल स्पष्ट। यह सब उसका है। इसलिए यह भाव, यह कृतज्ञता मेरे से निकलती है जब मैं बाबा के सामने जाता हूँ।
मैं जब भी बाबा को देखता हूँ, मुझे बहुत-बहुत घनिष्ठता महसूस होती है। उनका मुझसे इतना गहरा प्यार है जिसका कोई वर्णन नहीं। मेरा भी उनसे गहरा प्यार है जो मैं उसका वर्णन कर नहीं सकता। जब बाबा के सामने खड़ा होता हूँ, यह मुझे अनुभव होता है। बाबा तो देखते हरेक को हैं, देखने का भाव हरेक को अलग-अलग पहुंचता है। शुरु से लेकर वे मुझे जिस ढंग से देखते थे आज भी उसी ढंग से देख रहे हैं। पहले जितना प्यार उन्होंने साकार में दिया है, आज भी उतना ही प्यार दे रहे हैं साकार में बाबा अमृतवेले दो बजे उठ जाते थे। मैं भी दो बजे उठ जाता था और लाइट जला देता था। मेरे कमरे में लाइट जली हुई बाबा देखते थे या और कोई देखकर बता देते तो बाबा पहरे वालों से कहते थे, लाइट जल रही है, अगर जगदीश बच्चा उठा है तो उसको बुला लो। उस समय बाबा को कोई ज्ञान की बिन्दु आती थी या कोई सेवा की प्रेरणा होती थी तो बाबा के सामने कोई न कोई चाहिए जिसको बताये। अगर कोई न होता तो बाबा नोट कर लेते थे। एक-दो बार मुझे ऐसे बाबा का बुलावा आया। पहरे वाले ने कहा, बाबा आपको याद फरमा रहे हैं। मैं चला जाता था। फिर हमेशा यह कोशिश की कि मैं भी दो-अढ़ाई बजे नहाकर तैयार रहूँ। बाबा के पास जाऊं और नहाया हुआ न हूँ, यह नहीं होना चाहिए। हमेशा मैं नयी दुल्हन की तरह तैयार होकर बाबा के पास जाता था। बाबा मुझे बुलाते थे। क्या बात करते थे, बात मत पूछिये। बाबा कभी कटोरी में या कप में दूध पी रहे होते। मुझे भी पिला देते थे। कभी कुछ, कभी कुछ खिलाते या पिलाते थे। छोटे बच्चे को जैसे उसका दादा या बाबा प्यार करता है, वैसे मुझे अपने पास बिठाकर सुबह-सुबह प्यार देते थे। सारा विश्व सुबह-सुबह भगवान को याद कर रहा है लेकिन भगवान सुबह-सुबह मुझे याद कर रहा है और कहता है जगदीश बच्चे को बुला लो, कभी भी बाबा ने मुझे डांटा नहीं। ऐसे भी नहीं कहा कि जगदीश को बुला लो। बाबा हमेशा कहते रहे, बच्चे से कहो, ‘बाबा याद फरमा रहे हैं’। कभी बाबा ने मुझे यह नहीं कहा कि यह काम करो, वह काम करो। बाबा कहते थे, बच्चे, यह काम करोगे? हमेशा बाबा मुझे ऐसे ही कहते थे। आश्चर्य की बात है, इतने छोटे से, अंकिचन(नाचीज़) व्यक्ति को बाबा का आदर देखिये! इससे लगता है कि उनमें कितनी महानता है! देखिये, इतनी बड़ी हस्ती मुझ से कहते थे, बच्चे, यह करोगे? जब ऐसे व्यक्ति आपसे कहेंगे तो आप करना क्या, जान भी दे देंगे। सारी दुनिया एक तरफ, कितने भी विघ्न आयें, अगर आपका ऐसा हुकम है, आदेश है तो अवश्य करेंगे। कुछ भी हो जाये, हम करेंगे। हमेशा मेरा और बाबा का इस प्रकार का सम्बन्ध रहा।

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