अपने संकल्पों पर ध्यान दें – राजयोगिनी ब्र.कु.जयंती दीदी,अतिरिक्त मुख्य प्रशासिका,ब्रह्माकुमारीज़

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जब हम ये ध्यान रखेंगे कि अपने समय और संकल्प को वेस्ट न करें, अपने श्वास को अथवा अपने शब्दों को वेस्ट न करें। और हर घड़ी को हम ये समझें कि अभी ये मेरे लिए गिफ्ट है। मैं जो चाहूं अपना भविष्य उस अनुसार बना सकती हूँ।

आजकल की सिचुएशन अनुसार, या हमारे भारत के अन्दर भी सिचुएशन अनुसार ये संकल्प आता है कि हम अपनी मानसिक स्थिति को कैसे बैलेन्स में रखें, कैसे हमारी स्थिति ऐसी हो कि जिसे हम वेल बिइंग(बेहतर) कहते हैं। क्योंकि न सिर्फ शरीर की सम्भाल करनी है, हाँ वो तो उसको स्वस्थ रखना बहुत ही आवश्यक है। परन्तु साथ ही साथ हमारे मन में भी जो इंटरनल बैलेन्स होना चाहिए, वो हमारे को रखना बहुत ही आवश्यक है। क्योंकि आप देखेंगे कि जो आत्मा की नैचुरल क्वालिटिज़ हैं जिसको हम कहेंगे प्रेम, शांति, सत्यता आदि। आजकल लगता है कि हम इससे बहुत दूर चले गये हैं। जिस कारण से मन के अन्दर बहुत निगेटिविटी आ गई है। जैसे कि हम कहेंगे कि बहुत हिंसक विचार आते हैं। तो उसमें डिप्रेशन, एंग्ज़ाइटी, फियर, इनसिक्योरिटी ये शब्द आजकल हम बहुत आमतौर पर यूज़ कर रहे हैं। मैं समझती बीस-तीस साल पहले इस तरह की कोई भाषा प्रचलित नहीं थी।
ये सब जो बातें चल रही हैं हम कहेंगे कि ये कलियुग की अन्तिम घड़ी की निशानियां हैं। और बात क्या हो गई थी जो अन्दर मन में निगेटिविटी थी वो सभी मिलकर, किसी एक की बात नहीं है हम सभी जि़म्मेवार हैं। हम सभी ने उस बात को अपने शब्दों द्वारा, मानसिक शक्ति द्वारा, चाहे अपने कर्मों द्वारा, हमने ही इस संसार को ऐसा निगेटिव हालत में बनाया है। अभी क्या है वो निगेटिविटी बाहर आकर हमें भी अटैक कर रही है। अन्दर की निगेटिविटी अभी गई नहीं है, वो तो है ही अभी। परन्तु साथ ही साथ बाहर की जो निगेटिविटी आ रही है उसे भी हम देखते हैं कि आत्मा की शक्ति बहुत ही कम होती जा रही है।
कई लोग पूछते हैं कि निगेटिविटी का इतना जल्दी असर होता है तो पॉजि़टिविटी का असर इतना जल्दी क्यों नहीं होता? निगेटिव हैबिट्स तो हम एक-दो से बहुत जल्दी सीख लेते हैं। पॉजि़टिव हैबिट्स हम नहीं इतना जल्दी सीख पाते। उसका कारण आप देखो कि जब गे्रविटी होती तो ग्रेविटी नीचे आती और कोई भी चीज़ को ऊपर ले जाने के लिए एक्स्ट्रा पॉवर, एक्स्ट्रा एनर्जी की ज़रूरत होती। तो संसार की अभी वो ही हालत है। निगेटिविटी है तो हम नीचे उतरते आ रहे हैं और कोई हमारी संकल्प की बात नहीं हो रही, ऑटोमेटिक चल रहा है। यदि हमको इससे ऊपर जाना है तो हाँ हमें संकल्प रखना होगा, हमें शक्ति की भी आवश्यकता है। और उस शक्ति के आधार से हम और ऊंचा जा सकेंगे, नहीं तो हम नहीं जा पायेंगे। यदि हम सोचें कि ऑटोमेटिकली परिवर्तन हो जायेगा, नहीं। और ही जो निगेटिविटी है वो आत्मा के ऊपर प्रेशर डालकर हमें नीचे दबा रही है।
परंतु जिस घड़ी हमें आंतरिक जागृति आती है कि मैं कौन हूँ, मैं हूँ ईश्वर की संतान, ईश्वर की संतान कोई ये शरीर के हिसाब से नहीं। शरीर को तो अपने माँ-बाप हैं। परंतु ईश्वर की संतान मैं हूँ आत्मा, अनादि, अविनाशी। साधारण आत्मा नहीं हूँ, मैं हूँ ईश्वर की संतान। वैसे तो हर आत्मा ईश्वर की संतान हैं। परंतु कोई लोग उसको भूले हुए हैं, हम खुद भी भूले हुए थे। परंतु जिस समय इस बात की स्मृति आती और इस स्मृति के आधार से, हमें एक और पहचान होती कि जैसे हमारे मात-पिता बिल्कुल शुद्ध हैं, पवित्र हैं, सदा ही पवित्र हैं, वो तो पतित पावन हैं, तो हम उनकी संतान भी जैसे हमने अपना कुछ भी व्यर्थ नहीं गंवाया है। न मैंने अपना समय वेस्ट किया है, न श्वास, न संकल्प और न पैसा वेस्ट किया है।
जब हम ये ध्यान रखेंगे कि अपने समय और संकल्प को वेस्ट न करें, अपने श्वास को अथवा अपने शब्दों को वेस्ट न करें। और हर घड़ी को हम ये समझें कि अभी ये मेरे लिए गिफ्ट है। मैं जो चाहूं अपना भविष्य उस अनुसार बना सकती हूँ। श्रेष्ठ संकल्प क्या हैं, कईयों को तो ये भी मालूम नहीं होगा। क्योंकि निगेटिव संकल्प को हमने समझा कि ये तो नैचुरल हैं, परंतु नहीं। निगेटिव संकल्प, हमारी जो निगेटिव फीलिंग्स बनाता है उस कारण से आज हम अपने आप को दु:खी करते हैं। संसार ने दु:खी नहीं किया, भगवान ने दु:खी नहीं किया, मैंने अपने संकल्पों से खुद को दु:खी किया। तो पहले तो हम निगेटिव संकल्प को छोड़ें।
फिर नेक्स्ट आता है हमारे जो व्यर्थ संकल्प चलते हैं, आपने देखा होगा कि कोई भी बात होती, है दूसरे की बात परंतु हमारे कान सुन रहे हैं। और फिर मैं उसकी पूछताछ भी करूंगी। ऐसे क्यों हुआ, क्या हुआ, मतलब क्या था उसका। जबकि हमारा काम ही नहीं है। दूसरे की कहानी है वो जाने, वो अपना हिसाब-किताब जाने। न मेरा उसके साथ कुछ लेन-देन है और न उसमें मेरा कुछ फायदा होगा। तो हम जहाँ ज़रूरत है अपनी एनर्जी को यूज़ करें। और जहाँ मेरी एनर्जी की ज़रूरत ही नहीं है मैं क्यों वहाँ पर यूज़ करूं! तो जो हमारे व्यर्थ संकल्प चलते हैं उससे हमारी बहुत एनर्जी व्यर्थ जाती है। जब माइंड का कन्ट्रोल होता बुद्धि इतनी शक्तिशाली है जो घोड़े को पकड़कर रखा है, लगाम को हाथ में अच्छी तरह से रखा है। तो हम अपने व्यर्थ संकल्पों को फिनिश कर सकेंगे।
नेक्स्ट आते हैं साधारण संकल्प। खाना-पीना, जाना, करना सब बातें, संसार की बातें तो सदा ही चलती रहेंगी और यदि हम अपने संकल्पों को इस तरह चलायेंगे- साधारण संकल्प मिन्स, साधारण जीवन, साधारण व्यक्ति। मुझे ऐसे ही चलना है ठीक है परंतु मुझे इससे और ऊंचा जाना है तो पहले तो मैं ये सोचूं कि मैं शुद्ध संकल्प करूं, खुद के बारे में, परमात्मा के बारे में, सेवा के बारे में, शुद्ध संकल्प में शक्ति होती। और शुद्ध संकल्प करते हमें ये भी पता चलता है कि श्रेष्ठ संकल्प बहुत ऊंचे संकल्प जो अनेकों के भले के लिए होते ये अनुभव होगा।

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