बुद्धि में एक बाबा ही बाबा रहेगा तो सारा अटेन्शन एक बाबा की तरफ ही रहेगा

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ओम शांति शब्द यह भी एक शिव मंत्र है, क्योंकि कोई भी समस्या आ जाती है तो ओम शान्ति के महामंत्र से सहज पार कर लेते हैं क्योंकि अभी समय तो कलियुग के अन्त का चल रहा है तो ऐसे समय अगर ओम शान्ति का महामंत्र अर्थ से याद करेंगे तो सहज समाधान मिल जायेगा। एक होता है मंत्र की रीति से कहना, दूसरा होता है अर्थ में टिकना। तो ओम शान्ति में तीन बातें आती हैं – एक तो मैं आत्मा शान्त स्वरूप हूँ। दूसरी बात मुझ आत्मा का बाप शान्ति का सागर है, शान्ति का दाता है और तीसरी बात हम आत्माओं का घर मुक्तिधाम कहो तो ओम शान्ति अर्थ से सोचें तो शान्त स्वरूप हो जायेंगे क्योंकि आत्मा भी शान्त, बाप भी शान्त और घर भी हमारा शान्तिधाम। सोचना अलग चीज़ है लेकिन स्वरूप बनना और चीज़ है।
तो आजकल बाबा यही हम सब बच्चों को इशारा दे रहा है कि अब समय की रफ्तार तेज है, तो समय प्रमाण पुरूषार्थ की रफ्तार भी तेज है? जो बाबा कहता है सेकण्ड में मन का कन्ट्रोल हो जाये, जब चाहें जहाँ चाहें वहाँ मन उसी तरफ लग जाये। मनमनाभव का मंत्र जो है वो हमें बाबा फिर से याद दिला रहा है कि मन कन्ट्रोल में है? मेडिटेशन का मतलब भी है मन को परमात्मा के तरफ लगाओ तो मन व्यर्थ संकल्प नहीं करेगा, मन यहाँ-वहाँ भागेगा नहीं, बाबा के पास बाबा की याद में रहेगा, यही तो योग है यही मनमनाभव है। तो चेक करो बाबा की हम बच्चों में जो शुभ आशा है कि मेरा एक-एक बच्चा राजा बन जाये, अगर मन के वश है तो राजा तो नहीं कहेंग। स्वराज्य अधिकारी सो विश्व राज्य अधिकारी बाबा हमें बनाना चाहता है। इसके लिए ब्रह्मा बाबा ने भी कितना पुरूषार्थ करके अटेन्शन दिया है अपने ऊपर तब जाके ऐसा बनें। तो अभी अच्छी तरह से अपने मन को ऑर्डर प्रमाण रख, समय की रफ्तार प्रमाण तीव्र पुरूषार्थ करना है।
हम कर्मयोगी हैं तो कर्म करते भी परमात्मा की याद हो, क्योंकि परमात्मा की याद में कर्म करने से उनकी शक्ति मिलने से वो कर्म और ही श्रेष्ठ हो जाता है। तो खाते-पीते, चलते-फिरते मैं आत्मा इस शरीर से न्यारी हूँ, यह स्मृति स्वरूप है या नहीं, यह हमें ही चेकिंग करनी होगी। शरीर का भान खींचे नहीं, मन के ऊपर अधिकार हो। मनजीत, जगतजीत कहा जाता है। तो इतना कन्ट्रोल हमारा इन स्थूल कर्मेन्द्रियों के साथ सूक्ष्म मन, बुद्धि और संस्कार के ऊपर हो। बाबा कहते अभी इस पुरूषार्थ की गति को फास्ट करो। चल रहे हैं, कर रहे हैं, यह तो ठीक है परन्तु समय के प्रमाण अभी अपनी गति को चेक करना है कि चल रहे हैं या उड़ रहे हैं? उडऩे के समय अगर कोई चले तो पहुंचेंगे कब? इसलिए बाबा कहता है अपने ऊपर अटेन्शन को भी अण्डरलाइन करो तब समान बन साथ चल सकेंगे।
यहाँ मधुबन में आते भी इसीलिए हैं कि हम स्वयं को रिफे्रश कर बाबा समान बनने के पुरूषार्थ की गति को तीव्र बनावें क्योंकि यहाँ वायुमण्डल की बहुत मदद है इसलिए यहाँ जो जितनी कमाई करना चाहो उतनी कर सकते हो यानी थोड़े दिन में पुरूषार्थ ज्य़ादा कर सकते हो, इसके लिए एक-एक सेकण्ड को सफल करते जाओ। और जब बुद्धि में एक बाबा ही बाबा रहेगा तो सारा ही अटेन्शन एक बाबा की तरफ ही रहेगा तो टेन्शन भी खत्म हो जायेगा, अटेन्शन में प्राप्ति हो जायेगी। तो बाबा का हम बच्चों से कितना प्यार है जो सब बातें सहज कर रहे हैं क्योंकि पीछे आने वालों को तो बहुत कम टाइम है लेकिन बाबा का वरदान भी है कि कोई न कोई लास्ट सो फास्ट जायेंगे। हमारी हर एक्टिविटी सबको एक बाबा के तरफ ही अटेन्शन दिलाये, उसके लिए कितना हमको पुरूषार्थ करना होगा। सोचो, क्योंकि हमने भगवान को जाना, माना और उनके बच्चे भी हैं तो इतना बाबा का हमें प्यार मिला, इतनी बाबा से शिक्षायें मिल रही हैं, उससे हमारा चेहरा कभी चिंतन में, कभी चिंता में, कभी टेन्शन में ऐसा चेहरा नहीं होना चाहिए।
ब्रह्माकुमार-ब्रह्माकुमारी माना खिला हुआ रूहानी गुलाब, ऐसा चेहरा हो। चलते-फिरते हम खिले हुए गुलाब लगें, फरिश्ते लगें, ऐसा देखके कोई भी सोचेगा कि यह क्या है, यह कौन है? ऐसे अपने चेहरे और चलन से सेवा करने का चांस तो सभी को है। तो ऐसे अपना पुरुषार्थ करना, जैसे हमारा मन बाबा के साथ उड़ रहा हो।

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