बाबा शिक्षा भी देता तो संरक्षण भी करता

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मैंने जो परमात्मा के बारे में पढ़ा व सुना… वो इन नज़रों से देखा
ये स्वयं सत्य, सत्यस्वरूप है और सत्य को जानना ये भी एक बात है। लेकिन सत्य को कह पाना ये और कठिन बात है। सत्य को निर्भय होकर कह पाना, ये ब्रह्मा बाबा ये बात को ठीक तरीके से, सत्य रूप से कहता है और वो भी निर्भय होकर

मैं जब नहा-धोकर, तैयार होकर बाबा से मिलने आया, बाबा बैठे थे, कुछ कर रहे थे। मैं बाबा के पास जाकर बैठा, बाबा कहते हैं आज की मुरली सुनी, बहुत वन्डरफुल थी। बाबा ने कहा देखो श्रीकृष्ण जैसा आजतक दुनिया में कोई नहीं हुआ। क्या कमी थी उसमें, उसका नाम ही सुन्दर। अत्यन्त सुन्दर था वो और उसको हर चीज़ प्राप्त थी। फिर भी गीता में लिखा हुआ है कि जब भगवान साधारण तन में आते हैं और जो मूढमति लोग हैं वो, एक्सप्लेन करने का तरीका ये था, बाबा बता ऐसे रहे थे कि वो शिव बाबा के लिए ही कह रहे हैं, शिव बाबा ने कितना ये अनमोल ज्ञान दिया। नैचुरल वे में हर बात बाबा के मुख से ऐसे निकलती थी। शिव बाबा के बारे में इशारा हमेशा बाबा देते थे। तो बाबा की बात से मुझे लगा कि देखो बाबा… बाबा… याद है।
लेकिन बाबा ने कहा देखो श्रीकृष्ण को भी श्रीकृष्ण बनाने वाला कौन था? नर से नारायण उसको किसने बनाया? ये लोगों को नहीं मालूम। बच्चे ये तुम्हें बताना है। ये बाबा ने मुझे कहा, ये तुम्हें बताना है। जैसे बाबा को पहले साक्षात्कार हुआ और वो शिव बाबा आये, कमरे में लाइट भी और बाबा को नयी सृष्टि का साक्षात्कार हुआ तो मुझे बाबा नेे कहा कि ये तुम्हें बताना है। मेरे तो कपाट खुल गये कि ये मुझे बताना है! फिर बाबा ने मुझे कहा कि और कितनी बातें बतानी हैं बच्चे, क्योंकि लोगों को पता नहीं है ज्ञान का बिल्कुल। देखो ना, भगवती सीता उसको कोई अंगुली भी नहीं लगा सकता, बुरी दृष्टि से देख भी नहीं सकता और उस भगवती सीता के लिए कहते हैं उसको चुराया रावण ने। तो ये कितनी गलत बातें कहते हैं, बच्चे ये सब बताना है। ऐसे बताते गए बाबा। मैं कोई डायरी, पेन्सिल तो लेकर बैठा नहीं, डायरी पेन्सिल आजतक भी मैंने रखी नहीं। बुद्धि रूपी डायरी में ही लिखता हूँ, सीधा डायरेक्ट। तो सुन रहा था मैं, जब ये सारी बातें लोगों को कहोगे तो लाठियां मारेंगे लोग लाठियां। साथ में ये कह दिया। तुम कहोगे राम की सीता नहीं चुराई गई खुश नहीं होंगे, कहेंगे कि अच्छा कैसे आप कहते हो? ये तो अच्छी बात है अगर ऐसा नहीं हुआ, ऐसे नहीं, कहेंगे कि तुम हमारे शास्त्र का खंडन करते हो। अरे ऋषि-मुनि, वालमीकि जैसे रामायण लिख गए, संत तुलसीदास ने इतनी बड़ी रामायण लिख डाली। और आज तुम छोटे से व्यक्ति, वो कहते हैं ना नन्ही सी जान और गजभर जुबान। तुम ये क्या गलत बात कहते हो, लाठियां मारेंगे फिर लाठियां खानी पड़ेंगी। लाठियां खाओगे? मैं मन में सोचने लगा कि अभी टोली तो बाबा ने खिलाई नहीं थी, पहले लाठियां खिलाने की बात बाबा ने कर दी। आपको तो टोली मिलती है मुझे ऐसे लगा मुझे तो लाठियां लगेंगी।
कोई बात नहीं, तो मैंने कहा बाबा आपके आदेश से, आपके निर्देश से, आपकी छत्रछाया से काम करूंगा। आपके संरक्षण में मुझे किस बात का डर है? बाबा बोले, सच कह रहे हो सोच के? मैंने कहा सोच के कह रहा हूँ। मैंने कहा ये जीवन आपका है इसको जिस काम में लगाना चाहते हैं, लगा लीजिए। मैं तो वही करूंगा जो आप कहेंगे। लाठियां खाने के लिए आप कहेंगे लाठियां खाऊंगा। गोलियां खाने को कहेंगे गोलियां खाऊंगा। तो मैंने देखा सत्य, भगवान के लिए कहते हैं सत्यम शिवम सुन्दरम और निर्भय। सारा समाज एक तरफ, सबके सब लोग ए टू जेड कह रहे हैं कि राम की सीता चुराई गई थी। झगड़ा ही यहाँ से शुरू हुआ सारा, कि राम की सीता चुराई गई थी। और एक है जो कहता है नहीं चुराई गई थी। हम कहते हैं नहीं चुराई गई थी।
आमतौर से व्यक्ति की नेचर ये है कि जिसमें लोगों से संघर्ष कम हो, झगड़ा न हो वो बात कहता है। ऐसी बात कोई अजीब आदमी ही कहता है जिससे लाठियां खाने के लिए तैयार हो। ये सत्य कहता है और डरता नहीं है। सेवा का पहले देखा और आते ही, बैठते ही ये देखा। ये है सत्य स्वरूप। सारी दुनिया कुछ भी कहे, सारी दुनिया रात को कहे कि अब दिन है, नहीं वो दिन नहीं रात है तो हम कहेंगे रात है। ऐसे की तलाश में मैं था। ये स्वयं सत्य, सत्यस्वरूप है और सत्य को जानना ये भी एक बात है। लेकिन सत्य को कह पाना ये और कठिन बात है। सत्य को निर्भय होकर कह पाना, ये बुजुर्ग व्यक्ति ये बात को ठीक तरीके से, सत्य रूप से कहता है निर्भय होकर। ग्रंथसाहब है सिखों का उसमें आता है पहले शुरू-शुरू में कि वो निर्भय है, भगवान जो है वो निर्भय है। और किसी मनुष्य को किसी भी परिस्थिति मेें, कोई भी कारण से, कभी भी अंश मात्र, लेश मात्र थोड़ा भी क्षण मात्र के लिए भी भय हो सकता है। उसको कोई भय नहीं, ये पहचान है उसकी। वो सबसे सामना करने को तैयार है।

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