मन को सही दिशा देना अति महत्त्वपूर्ण

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मन एक यात्री है और हर यात्री एक लक्ष्य को लेकर यात्रा करता है। वो अपने लक्ष्य तक तभी पहुंच सकता जब उसकी दिशा सही हो। 

जैसे कि पिछले अंक में पढ़ा कि ग्वाल बाल को बड़ा फील हुआ और हिम्मत जुटा कर कहा कि पंडित जी क्या आप मुझे सीखा सकते हैं? क्योंकि मैं रोज़ जंगल में अकेला होता हूँ, आप मुझे सिखाइये तो मैं उस अनुसार याद करूंगा। तो पंडित जी ने उसको एक संस्कृत का श्लोक पक्का कराना शुरू कर दिया। सारा श्लोक रटने के बाद पंडित जी ने कहा रोज़ ऐसे ही याद करना। अब आगे पढ़ते हैं… तो बिना फीलिंग के लड़के ने श्लोक बोलना शुरू किया, पंडित जी वहाँ से चले गए, मंदिर जाकर भगवान से प्रार्थना की कि हे प्रभु आज मैंने इतना अच्छा काम किया कि एक अनपढ़ बालक को तेरे से बात करने की सभ्यता सिखाई। उतने में एक आकाशवाणी हुई कि आपने जो किया ना वो ठीक नहीं किया। पूछा ठीक नहीं किया, क्यों? तो कहा वो बच्चा रोज़ जंगल में आता था, कभी क्या बात करता था, कभी क्या बात करता था। भगवान ने कहा कि मैं भी उसका रोज़ इंतज़ार करता था कि आज ये बच्चा आकर मेरे से क्या बात करेगा! लेकिन आज से तू जो उसको पढ़ा कर आया है, रोज़ वही रटा-रटाया बोलता रहेगा, उसका मतलब भी वो नहीं समझता है और जिसको सुनने में मुझे कोई इंट्रस्ट नहीं। आज से तूने एक बच्चे को दूर कर दिया, अच्छा नहीं किया। कहीं हम भी रोज़ वही रटी-रटाई प्रार्थना तो नहीं बोल रहे हैं। क्योंकि अगर वही रोज़ की रटी-रटाई प्रार्थना होगी तो शायद भगवान को उसे सुनने में कोई इंट्रस्ट नहीं है। मेडिटेशन माना क्या? दिल से, प्यार से उसके साथ बातें करो। जो मन के भाव आयें वो उसके सामने रख सकते हैं। कितना सहज है, सरल है, कोई भी कर सकता है। तब कई बार दूसरा प्रश्न ये होता है कि क्या मेडिटेशन माना विचार शून्य तो नहीं हो जाना! नहीं, विचार शून्य नहीं होना है। विचार करना है। क्योंकि विचार शून्य होना ये सम्भव नहीं है। जैसे एक उदाहरण अगर मैं दूं कि मान लो एक नदी है और नदी का बहाव है, कंटिन्यू बह रही है नदी। और व्यक्ति आकर सोचता है कि इतना पानी वेस्ट जा रहा है मैं एक दीवार बना देता हूँ, पानी को रोक लूंगा। दीवार बना देता है, पानी रूक तो गया लेकिन जैसे ही पानी का फोर्स बढ़ेगा वो दीवार को तोड़कर नुकसान कर देगा। इतनी ऊर्जा है। ठीक इसी तरह मनुष्य का मन जो है ना वो एक नदी के बहाव की तरह है जहाँ कंटिन्यू विचार भी चलते रहते हैं। कोई क्षण ऐसा नहीं कि जब मनुष्य के अन्दर विचार न चलते हो। मान लो कि आपने उन विचारों के बहाव को रोकने का प्रयत्न किया तो क्या होगा, कुछ क्षण के लिए रूक भी जायेगा लेकिन कुछ क्षण के बाद विस्फोट होगा। इसलिए जब कोई विचार शून्य होने का प्रयत्न करता है उसके बाद उसको हैडेक शुरू होता है। क्यों? क्योंकि एक फोर्स को, एक ऊर्जा को हमने रोकने का प्रयास किया। लेकिन जिस तरह से उस नदी के बहाव की ऊर्जा को यूज़ करना चाहता है तो व्यक्ति और एक इंजीनियर आता है, वहाँ एक डैम बनाने का सोचता है और डैम बनाकर कितने गाँव को बिजली भी मिलती है, पानी भी मिलता है। और साथ ही साथ उस डैम के अन्दर वो टरबाइन लगा देता है नीचे, जिससे ऊर्जा उत्पन्न होती है। फिर वो पानी को एक मार्ग से बाहर निकालता है जिससे नहर के माध्यम से कितने लाखों एकड़ ज़मीन को पानी मिलने लगता है ठीक इसी तरह मन की ऊर्जा को रोकने की बजाय उसे भी एक दिशा देना ज़रूरी है। एक सकारात्मक दिशा की तरफ हम लगायें तो देखो मन प्रसन्न रहने लगेगा।

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