हम कुछ ऐसा करें जो बाबा हमें सर्टिफिकेट देवे कि हाँ, परिवर्तन मैंने देखा

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अभी हम सबको यही दृढ़ लक्ष्य रखना है कि सदा ही स्वमानधारी रहें। स्वमान याद भी रहता है, ऐसे नहीं भूल जाते हैं लेकिन एक होता है सिर्फ ध्यान में रहना- हम यह हैं। एक होता है जैसे कोई जज है घर में भी जायेगा तो उसको यह तो याद है ना मैं जज हूँ, लेकिन जब जज कुर्सी पर बैठता है तो वो नशा एक और होता है। तो इसी रीति से हम साधारण स्मृति में तो रहते हैं क्योंकि बाबा ने भी तीन शब्द बोला व्यर्थ, निगेटिव और साधारण संकल्प। तो साधारण रीति से तो हम सब ब्राह्मण पवित्र जीवन वाले हैं, यह तो याद रहती ही होगी लेकिन उस नशे में रहना वो तब होगा जब हमारी स्मृति की सीट ठीक होगी, यानी स्मृति सदा इमर्ज होगी। आत्मिक स्मृति में रहकर हर कर्म करें। तो यह खास अन्डरलाइन करने की बात है कि अपने स्मृति को इमर्ज रूप में रखें। अभी हम लोगों को यह बीच-बीच में अन्डरलाइन करनी चाहिए कि स्मृति इमर्ज रूप में है? क्योंकि कारोबार तो चलानी पड़ती है, कारोबार में कारोबार की भी स्मृति थोड़ी मिक्स हो जाती है। कहाँ ज्य़ादा कहाँ कम होती है, तो वो मिक्स होने से वो नशा थोड़ा कम होता है। अगर हम सब मिल करके संकल्प लें कि बाबा जो कहता है, जो देखने चाहता है, वह हम करके दिखायेंगे तो समानता और सम्पन्नता सहज आ जायेगी और हम सबसे बाबा प्रत्यक्ष दिखाई देने लगेगा क्योंकि जब तक बच्चों की यह स्थिति अपने अन्दर प्रत्यक्ष नहीं है तो बाप कैसे प्रत्यक्ष होगा? हम कुछ ऐसा करें जो बाबा हमको सर्टीफिकेट देवे कि हाँ, परिवर्तन मैंने देखा। बाबा ने बच्चों से मिलन मनाने के लिए हाँ तो कर ली है, प्रोग्राम भी सबको मिल गया है लेकिन यह बाबा की बात याद रखनी चाहिए कि बाबा ने जो हमको संकल्प दिया कि मैं रिज़ल्ट देखना चाहता हूँ, सिर्फ फाइल में पत्र प्रतिज्ञा के नहीं एड करना चाहता हूँ। प्रत्यक्ष सम्पन्न और सम्पूर्ण मूर्ति देखना चाहता हूँ तो चलो हम फुल 100 नहीं लेकिन कुछ तो कदम बढ़ायें ना! जो बाबा कहे अच्छा चलो, 50 है, 60, 70 तक तो आवे, कुछ तो परिवर्तन बाबा देखे। यह संकल्प करें और हम ब्राह्मणों के संकल्प में शक्ति तो है ही। अच्छे संकल्पों में अगर और एक्स्ट्रा दृढ़ता लायें तो क्या नहीं हो सकता है। लेकिन माया इसी में विघ्न डालने की कोशिश करती है। तो दृढ़ता को हम कमज़ोर नहीं करें, दृढ़ता का संकल्प लेके कुछ न कुछ परिवर्तन अपने में ज़रूर करें। वास्तव में तो परिवर्तन का लक्ष्य तो ऊंचा ही होना चाहिए। लेकिन हम फिर भी परिवर्तन शुरू करेंगे तो हो ही जायेगा और हमको ही बनना है और कौन आने हैं? तो जब हमें बनना ही है तो यह अगर सोचें, तो मैं समझती हूँ हो सकता है।

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