हम वास्तविकता में क्यों नहीं हैं?
मन हम सबका है। हमेशा है, साथ है लेकिन दुविधा में रहता है। जीना चाहता है लेकिन अपने दम पर नहीं दूसरे के बिहाफ पर, दूसरे के दम पर, दूसरे के कहने पर। चाहता है कि मैं वो करूं जो मैं चाहता हूँ लेकिन वो हमेशा उन बातों को अपनाता है जो दूसरे चाहते हैं। फिर भी असन्तुष्टि है। असन्तुष्टि का यही एकमात्र कारण है कि जीवन हमेशा बयानों से भरा हुआ है। एक है जो आप करना चाहते हैं दूसरा है दुनिया जो आपसे करवाना चाहते हैं। आपने सबके कहने पर वो कर तो लिया लेकिन क्या आप कभी सन्तुष्ट हुए? शायद नहीं हुए। क्यों नहीं हुए, क्योंकि जो आपकी अपनी विशेषता है, जो आपकी अपनी स्थिति है, जो आपके अपने गुण हैं वो आप सबके सामने नहीं रख पा रहे हैं। तो निर्णय क्यों नहीं होता, क्यों नहीं ले पाते! मात्र एक कारण है इसके पीछे, वो है अपने को तरजीह(प्रधानता) नहीं देना, अपने पर वो विश्वास नहीं दिखाना, अपने को प्राथमिकता न देना। जब हम अपने को प्राथमिकता नहीं देते तो लोगों को प्राथमिकता देते हैं। इसीलिए दुनिया में एक बहुत सुन्दर कहावत है कि जो अपने लिए नियम नहीं बनाता उसको दूसरों के नियमों पर चलना पड़ता है। तो मैं भी तो ये काम कर सकता हूँ ना! तो क्यों न उन बातों को अपने अन्दर डालूं, अपने लिए कुछ सोचूं, अपने लिए कुछ लिखूं, अपने लिए कुछ बनाऊं। और वो बनाया हुआ चीज़ ही मेरा होगा। उससे जीवन भी बदलेगा, जीवन सुधरेगा, जीवन में उन्नति होगी, जीवन में उन सारी चीज़ों की ज़रूरतें भी पूरी होंगी जो आप चाहते हैं। और सबसे बड़ी बात मन को सन्तुष्टि होगी। तो ये खुद से खुद को प्यार करने की एक पहल है। तो क्यों न इस पहल को अपनाते हैं और जीवन को एक नयी दिशा में लेकर चलते हैं।