किसी भी वंश की वंशावली को आप बड़े ध्यान से देखेंगे तो पायेंगे कि हर कोई जोकि पहला उस वंश का राजा होगा। जिसने उस वंश की शुरूआत की होगी। जिससे वो वंश शुरू हुआ होगा। लोग ज्य़ादातर उसी का नाम लेते हैं। जैसे आपने सुना होगा कि ये उदय सिंह के वंशज हैं, ये महाराणा प्रताप सिंह के वंशज हैं। कोई कहता ये पृथ्वीराज चौहान के वंशज हैं बहुत सारे राजा-महाराजाओं को ऐसे कॉट करते हैं। ऐसे ही जब किसी के कुल देवता और इसकी बात आती है तो हमेशा लोग राजाओं से भी ऊपर उठकर बात करते हैं। ये इक्ष्वाकु के वंश के हैं, ये रघुकुल वंश के हैं, ये राम के वंशज हैं, ये कृष्ण के वंशज हैं कितनी सारी बातें आपने सुनी होगी। तो ये सिर्फ इसलिए नहीं आपके सामने बात रखी जा रही है कि इसको सिर्फ पढ़ा जाये और रख दिया जाये।
इसको हम समझने का थोड़ा प्रयास करते हैं कि जो वंश शुरू में चला, उस वंंश का जो पहला राजा है वो कितना शक्तिशाली होता है। उसके अन्दर वो सारे गुण, वो सारी विशेषताएं, धारणायें, सारी मर्यादायें होती हैं। और हम सभी उन मर्यादाओं को सुनते हैं, पढ़ते हैं तो कम्पेरिज़न में पढ़ते हैं, तुलना में पढ़ते हैं। जब वो उस वंश के किसी व्यक्ति को देखते हैं तो कहते हैं आपके वंशज कितने अच्छे थे। और उनके अन्दर ये-ये था। लेकिन आजकल तो किसी के अन्दर ये सारी चीज़ें दिखती नहीं हैं। स्वाभाविक सी बात है कहना, क्योंकि सच में जो पहले ने किया दूसरे में थोड़ा-सा उसका मार्जिन डिफ्रेन्स आया, उसके नीचे और भी ऐसे नीचे बढ़ते गये तो थोड़ी-थोड़ी कमी सबमें नज़र आयी, और आती है। ये स्वाभाविक सबको लगता है। लेकिन अगर इसकी डिटेल में आप जायेंगे तो पायेंगे कि जिसने पहले-पहले ये फॉलो किया होगा तो उन्होंने एक-एक चीज़ का मनन-चिंतन किया होगा, समझा होगा और उसको अपनी धारणा में लाया होगा।
ऐसे ही हमारा ये ज्ञान है, हमारी समझ है कि परमात्मा ने ज्ञान सबको एक जैसा दिया और सबको यही बताते हैं कि हम कृष्ण के राज्य माना सतयुग और त्रेता दोनों युगों को जोडक़र कहते हैं कि हम उसमें जायेंगे तो हमें उनके जैसा बनना है। अब पहला जो वंश है उसने एक-एक चीज़ को बारिकी से जाना, समझा, परखा और उसको फॉलो किया। हम सब उनको देखते हैं, उनके कदम पर कदम रखते हैं और चलते हैं। लेकिन अन्तर हमारे में और उनमें क्यों आ जाता है, क्योंकि जो पहले ने फॉलो किया होगा मनन-चिंतन करके उसमें अकेले थे वो, बिल्कुल अकेले थे, अलग हैं, और जब वो ये काम कर रहे होंगे उनके पूरा विश्व सामने ध्यान में आ रहा होगा। अब हमारे सामने अलग से सैम्पल है कि मुझे इनके जैसा बनना है। तो उस सैम्पल को सामने रखकर हम फॉलो तो करेंगे लेकिन उस सैम्पल के मनन-चिंतन हमारे अन्दर पूरी तरह से नहीं होगा तो वो पूरी बात निखरकर हमारे अन्दर पूरी तरह प्रवेश नहीं करेगी। उदाहरण जैसे हमेशा हम कहते हैं कि ईमानदारी एक गुण है, एक विशेषता है हम सबकी, लेकिन ईमानदारी एक शक्ति भी है कि चाहे कुछ हो जाये, चाहे कोई भी परिस्थिति आ जाये लेकिन हमको ये वाला गुण छोडऩा नहीं है।
लेकिन होता क्या है कि जब हम, अब पहले ने जो किया उसने कभी छोड़ा नहीं है तभी तो ईमानदारी की इतनी वैल्यू है। और इतनी गहराई से फॉलो किया कि हमें उसका उदाहरण देना पड़ता है कि वो ईमानदार थे। लेकिन हम सभी उस बात को किसी एक परिस्थिति के साथ जोडक़र ये कह देते हैं कि उनके समय में अलग स्थिति थी और हमारे समय में अलग स्थिति है। तो आज के हिसाब से हमें इसको फॉलो कर लेना चाहिए। लेकिन ईमानदारी तो ईमानदारी है। चाहे वो पहले हो वो तब भी ईमानदारी थी और आज भी वो ईमानदारी ही है। लेकिन इसमें इतना मार्जिनल डिफ्रेंस आ जाता है तभी हमारे गुणों में, हमारी शक्तियों में, हमारी धारणाओं में कमी आ जाती है। एज इट इज माना एज इट इज उसमें ऊपर-नीचे नहीं हो सकता, आगे-पीछे नहीं हो सकता। थोड़ा-सा भी अन्तर नहीं हो सकता। इसलिए सारे वंशों में आप देखेंगे सबसे पहले नम्बर वन का ही नाम लिया जाता है, और क्यों पीछे हो जाते हैं क्योंकि वो हर बात में आगे-पीछे करते हैं। कहते, नहीं चल जायेगा, नहीं ये हो जायेगा। तो हम सभी अपने आपको इस दायरे में, अपने आपको परखकर देखें कि क्या सच में हम उस बात को एज इट इज ले पा रहे हैं, समझ पा रहे हैं जो परमात्मा हमको सीखा रहे हैं।
जैसे हमारे पिताश्री प्रजापिता ब्रह्मा बाबा ने एक्यूरेट फॉलो किया। अडिग रहे, हिले नहीं। लेकिन हम अगर ऊपर-नीचे होते हैं तो हमारे उस वंश का जो पहला व्यक्ति है, पहला जो महा मानव है, जिसको हम फॉलो करके आगे बढऩा चाहते हैं तो क्यों हमारे नम्बर में तो कमी आती ही जायेगी ना! तो इस तरह से हम अपने कुल को समझेंगे, उसकी धारणाओं को समझेंगे और किसी भी गुण, किसी भी शक्ति को अपने अन्दर ले आने में कोई कॉम्प्रोमाइज़ नहीं करेंगे। तो जहाँ पर कॉम्प्रोमाइज़ होता है वहाँ पर उस चीज़ में हमेशा आपको फॉल्ट या कमी नज़र आयेगी।