हम सभी को तलाश सम्पूर्णता की

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बिना किसी पृष्ठभूमि के कोई चित्र नहीं बनता। इसलिए इंग्लिश में कहते हैं, देयर इज़ नो पिक्चर विदाउट ए बैकग्राउण्ड। अर्थात् कुछ भी इस दुनिया में इज़ाद हुआ है तो पहले उसकी कोई न कोई पृष्ठभूमि ज़रूर रही होगी। इसीलिए आज रिश्तों से लेकर प्रोफेशनलिज़्म तक जहाँ कहीं भी हमें सब में कमी नज़र आ रही है तो उसकी पृष्ठभूमि में सम्पूर्णता है। सम्पूर्णता का अर्थ है कि हर व्यक्ति हर किसी को कम्प्लीट चाहता है माना मनोविज्ञान के अनुसार जो कमियां उसको खुद में नज़र आती हैं वो उन्हें दूसरों में देखकर उससे जुडऩा चाहता है और जब वो दूसरे से नहीं मिलती तो वो तीसरे से जुडऩा चाहता है। इसका अर्थ ये हुआ कि हम सभी ने कभी न कभी इस सम्पूर्णता का अनुभव किया है। और ये सम्पूर्णता हम सबकी आत्मा के मूल गुणों के साथ जुड़ी हुई है।
आज समाज में इतने सारे तलाक के या दाम्पत्य सम्बंधों में इतने सारे मनमुटाव के जो अनुभव हैं लोगों के, आप उनसे मिलकर बात करके देखें कि सभी एक-दूसरे के अंदर क्या ढूंढ़ रहे हैं कि हर किसी के अंदर विश्वास हो, एक-दूसरे के प्रति सम्मान हो, एक-दूसरे की भावनाओं को समझें आदि-आदि। हम सभी ने ये भी देखा होगा कि जैसे तीन लोग आपस में बात कर रहे हों और अपने-अपने सम्बंधियों की बात कर रहे हों, उन सम्बंधियों की विशेषताओं के बारे में बात कर रहे हों तो आप पायेंगे कि एक सम्बंधी के घरवालों की जो विशेषता है अगर वो आपके घर में रहने वाले लोगों की विशेषता के साथ मैच नहीं कर रही है तो आपके अंदर क्या विचार आता है कि काश मेरा बेटा, बेटी या परिवार ऐसा होता! ऐसा क्यों हो रहा है? क्योंकि हम उस सम्पूर्ण जीवन की जो कलायें हैं, विशेषताएं हैं, गुण हैं उन सबको अप्रत्यक्ष रूप से देखते हैं और सोचते भी हैं और समझने की कोशिश भी कर रहे हैं कि कहां ऐसा मानव मिलेगा जिसमें सबकुछ हो। इसलिए रिश्ता आज एक से जुड़ा है, कल दूसरे और परसो तीसरे से जुड़ जाता है।
मनोवैज्ञानिकता कहती है कि जो हम होते हैं, उसी की तलाश हम करते हैं। जैसे किसी के अंदर अगर कमी हमें नज़र आ रही है तो बुरा मैं हूँ, ना कि सामने वाला। अगर ईष्र्या, द्वेष, नफरत के भाव किसी को देखकर हमारे अंदर आते हैं तो इसका मतलब वो व्यक्ति हमारे लिए एक रिफ्लेक्शन है बस। तो हमें अब परिवर्तन क्या करना है? जो हम दूसरों में देखना चाहते हैं। इसका मतलब हम भी कभी ऐसे बने होंगे, सम्पूर्ण।
इसीलिए जब किसी देवी-देवता को हम देखते हैं तो हमारी आँखें और हमारी बुद्धि वहां ठहर जाती है कि यही है, कम्प्लीट है, सम्पूर्ण है। तो कभी न कभी हम कम्प्लीट बने होंगे। हम वरन करना चाहते हैं लक्ष्मी का लेकिन एक भी गुण हमारे अंदर नारायण के नहीं हों तो कैसे सामंजस्य होगा! इसलिए अगर हम अपने आप को दिव्य गुणों से, शांति से, प्रेम से, पवित्रता से, आनंद से, ज्ञान से सजायेंगे, संवारेंगे तो हमारे अंदर सम्पूर्णता आती चली जाएगी। और इस सम्पूर्णता के आने से हम सभी को उसी भाव से, उसी नज़रिये से, उसी अंदाज़ से देखेंगे, परखेंगे और समझेंगे तो किसी के अंदर हमें कोई कमी नज़र नहीं आयेगी। कमी नज़र इसलिए आ रही है कि हम अभी हर पल, हर क्षण कमियों के साथ ही जी रहे हैं। तो सम्पूर्णता की तलाश हम सबका पहला और अंतिम पड़ाव है। तो चलो इस पड़ाव को प्रभाव में लेकर आते हैं। और जीवन को नई ऊँचाइयों पर ले जाते हैं।

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