पौराणिकता में जीवन की गाथा

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हम सबके अन्दर जो भाव हैं परमात्मा को अपने घर में खिलाने के, वो छप्पन भोग से नहीं खुश होता है वो साधारणता से खुश होता है। वो सादगी से खुश होता है, पवित्रता से खुश होता है, तो इसलिए इन आडम्बरों में हम पड़ गये कि परमात्मा को, भगवान को ये पसंद है। और उसको हमने वहाँ एप्लाई कर दिया। लेकिन ये हमारे जीवन की गाथा है।

हम सब जब कोई भी शास्त्रगत कहानी, कथा या कोई मार्मिक चित्रण पढ़ते हैं, सुनते हैं तो सिर्फ पढऩे के भाव से पढि़एगा और सुनकर अच्छा लगा, ये हम सबके अन्दर एक भाव पैदा होता है। लेकिन कोई भी चीज़ जो बनी है इस दुनिया में, जिसको हम कथाओं के माध्यम से सुनते हैं। उसमें से मूल्यों और कुछ ऐसी चीज़ें उठाने की कोशिश करते हैं जिससे जीवन में बदलाव आये। तो, तो कारगर है, नहीं तो व्यर्थ है। जैसे एक मार्मिक चित्रण जो बहुत ही प्रायोगिक भी है और प्रचलित भी है – वो है कृष्ण और विदुर का संवाद और राम और शबरी का संवाद।
तो कहा जाता है कि कृष्ण ने छप्पन भोग ठुकराये और जाकर विदुर के घर में साग और रोटी खाया। ऐसे ही राम ने शबरी के बेर खाये। अब इन दोनों कहानियों को एक साथ अगर जोड़ा जाये तो भी मर्म है, अगर इनको अलग-अलग समझा जाये तो भी मर्म है। जैसे आपके घर में मैं आऊं, और आकर के बोलूं कि मुझे छप्पन भोग खाने हैं, छप्पन तरह की चीज़ें बना दो, तो आपको खुशी होगी या आपके अन्दर डिस्टर्बेंस क्रियेट हो जायेगी, परेशानी पैदा हो जायेगी कि अरे इतना टाइम तो नहीं है ना हमारे पास, इतना जल्दी छप्पन भोग कैसे बन सकता है, उसके लिए तो टाइम चाहिए। आपने तो आते ही डिमांड कर दी छप्पन भोग की। लेकिन अगर मैं कहूँ दूसरी तरफ से कि आप कुछ भी बना दें, या जो आपके यहाँ बना हुआ है वो ही हमारे लिए अच्छा है। तो उसमें हमको ज्य़ादा खुशी होगी। क्योंकि परेशानी नहीं हुई ना। इसीलिए वहाँ ये दिखाया गया कि श्रीकृष्ण ने जाकर विदुर के घर में साग-रोटी खाया माना कि जो विदुर का अर्थ है जो विकारों से दूर हो, वो विदुर है। और विकारों से जो दूर होता है, जो बिल्कुल सात्विक है, शुद्ध है, पवित्र है, उसके यहाँ का कुछ भी स्वीकार करना वो छप्पन भोग के समान ही होता है।
दूसरा उनके, क्योंकि हर एक जो चरित्र है वो हमारे सोच को ब्यान करता है। तो उनकी पत्नी का नाम भी सुल्भा है, सुल्भा का मतलब जो आसानी से उपलब्ध हो जाये। तो जो आसानी से चीज़ें उपलब्ध हो जायें वो हमारे को इज़ी बनायेगा, वो हमारी लाइफ को इज़ी बनायेगा। हमको अच्छा सोचने पर मजबूर करेगा। और उनकी माँ का नाम परिश्रमी था, मतलब जो अपने परिश्रम शब्द का अर्थ उस मेहनत से नहीं लेना है, लेकिन जो अपने श्रम को महत्त्व देता है, कार्य को महत्त्व देता है, परमात्मा के साथ भावनाओं के साथ जुड़ता है। उसके यहाँ सबकुछ सुलभ होता है। उन्हीं के घर में परमात्मा आकर भोजन स्वीकार
करते हैं। तो इसका अर्थ तो यही हुआ ना कि जो हम सबकी नेचर है, हम सबके अन्दर जो भाव हैं परमात्मा को अपने घर में खिलाने के, वो छप्पन भोग से नहीं खुश होता है वो साधारणता से खुश होता है। वो सादगी से खुश होता है, पवित्रता से खुश होता है, तो इसलिए इन आडम्बरों में हम पड़ गये कि परमात्मा को, भगवान को ये पसंद है। और उसको हमने वहाँ एप्लाई कर दिया। लेकिन ये हमारे जीवन की गाथा है।
ऐसे ही शबरी के बेर दिखाये कि ऐसे कोई राम मतलब कोई बहुत बड़ा इंसान, देवता, जब आपके पास आये तो क्या आप उसे झूठे बेर खिलायेंगे! ऐसा तो नहीं है! तो ये अर्थ आज के समय का ही है कि परमात्मा को कहा जाता है कि वो गरीब निवाज़ है। तो गरीब निवाज़ का अर्थ यहाँ ये है कि जिसके पास सबकुछ है लेकिन फिर भी वो उसको ट्रस्टी होकर सम्भालता है, तो परमात्मा उसको प्यार करते हैं। शबरी को वहाँ दिखा दिया कि जब वो रास्ते से गुज़र रहे हैं तो बेर को चख-चख कर उनको दे रही है। और उसको वो ऐसे खा रहे हैं बड़े भाव से। तो इसका मतलब हुआ कि बेर को वैसे भी तो वैर के साथ जोड़ा जाता है। वैर-विरोध के साथ कि हमारे मन में किसी के लिए कोई भाव तो नहीं है, ऐसे। और चख-चख के देना माना चख-चख के बोलना, सोचना। तो जो मैं बोल रही हूँ, जो मैं सोच रही हूँ, वो किसी को खट्टा तो नहीं लग रहा है, किसी को बुरा तो नहीं लग रहा है। कहीं मैं खट्टे शब्द तो नहीं बोल रही हूँ। और आप सोचो कि मुझे फुल टाइम ये सोचना है कि ये वाली चीज़ें परमात्मा को मैं दे रही हूँ। तो जो चीज़ें मैं परमात्मा को दे रही हूँ वो परमात्मा के सामने बैठ कर उसको खिला रही हूँ। तो ज़रूर इसका कोई तो अर्थ ऐसा होगा कि जो हमारे जीवन को जोड़ता होगा। तो हमारा लक्ष्य साथ है लेकिन कई बार क्या होता है जिसने सबकुछ भगवान को दे दिया उसको शबरी कहते हैं।
सबकुछ माना थोड़ा भी जुबान से भी, मुख से, जुबान से, भाव से किसी भी तरह से खट्टा ना देना। सोचना भी नहीं। तो वो है शबरी के बेर।
मतलब हम सभी को पूरी तरह से समर्पित बुद्धि की बात की जाती है। उसको हमको प्रयोग में लाना है तो उसका जो प्रयोग करेगा, उसको जो अपने जीवन में प्रयोग में लायेगा वो परमात्मा को अर्पण होगा ना! ऐसे कैसे कोई शबरी ऐसे कोई रास्ते में बैठी है भगवान उसके पास पहुंच गये और उन्होंने उन्हें बेर खिला दिये। तो ये सारे जो कहानी और कथायें हैं ना इसको हमने पढ़ा-सुना कई बार है लेकिन वो कम्पलीट माना सम्पूर्ण रीति से हमारे जीवन के बदलाव की कहानी है। अगर सच में परमात्मा का प्यार प्राप्त करना है तो सबकुछ उनको अर्पण करना है। हमको विकारों से दूर होना है, तब जाके साधारणता में महानता की जो बात की जाती है ना वो हमको भगवान से प्राप्त होगा। तभी हम जीवन को जी पायेंगे।

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