हे! देवी-देवता कुल की आत्माओं… जागृत हों…

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आपको अपने भक्तों को, अपने कुल वाली आत्माओं को वंचित नहीं रखना है। नहीं तो वो आपको उल्हना ज़रूर देंगी। तो इसीलिए हे कुल देवी, कुल देवता, ऐसे कुल देवी, कुल देवताओं को क्या करना है? जागृत होना है।

जैसा कि पिछले अंक में आपने पढ़ा कि उस समय हर आत्मा जैसे वहाँ पर भी देखा कि एक राम मन्दिर बनने के बाद कई लोगों की आँखों में आंसू थे, झर-झर रो रहे थे। तो लगा कि जब बाबा की प्रत्यक्षता होगी तो आत्मायें झर-झर रोयेंगी। किसी के अन्दर खुशी के आंसू होंगे तो किसी के अन्दर पश्चाताप के आंसू होंगे, कि हमने पहचाना नहीं। तो एक बहुत अद्भुत अनुभूति थी वो, कि कैसे बाबा की प्रत्यक्षता होगी और हम सब आत्मायें निमित्त बनेंगी। वो दिव्य दर्शनीय मूर्त द्वारा साक्षात्कार कराने के लिए। अब आगे पढ़ेंगे… इसीलिए बाबा अपना कार्य किस तरह से कर रहा है और समय किस तरह से तीव्र गति से आगे बढ़ रहा है, ये दृश्य देखने के बाद लगा कि अब ज्य़ादा समय नहीं है। यही महसूस हो रहा था। कई बार कई भाई-बहनें सोचते हैं कि हम तो गाँव में रहते हैं, हम कैसे बाबा की प्रत्यक्षता के लिए निमित्त बनेंगे! तो महसूसता ये हो रही थी कि इस बार जब 2024 आरम्भ हुआ तो पहली तारीख को ये बताया गया कि दुनिया की आबादी आठ सौ करोड़ हो गई। और त्रेतायुग के देवताएं कितने होते हैं? 33 करोड़ होते हैं। तो 33 करोड़ देवतायें 800 करोड़ को अनुभूति नहीं करायेंगे क्या? हरेक बाबा का बच्चा यानी त्रेतायुग के अन्त तक की आत्मायें जो 33 करोड़ हैं वो 800 करोड़ में किसी न किसी की तो ईष्ट होगी या नहीं होगी?
आज भी अगर गाँव में जाओ तो किसी से भी पूछो कि आपका कुल देवी या कुल देवता कौन है? तो हरेक के, हरेक समाज के यहाँ एक परिवार के कुल देवी, कुल देवता कहा जाता है। तो हरेक कुल के देवी या देवता अलग-अलग होते हैं। तो सोचो कि ये 33 करोड़ आत्मायें 800 करोड़ आत्माओं के कुल देवी या कुल देवता होंगे या नहीं होंगे! चाहे गाँव में रहने वाला होगा वो भी। किसी न किसी का तो होगा। होता ही है। तो इसीलिए बाबा कहते कि कम से कम आपके उस कुल वाले, उस समाज वाले के लिए आप दर्शनीय मूर्त तो बनो। और उनको साक्षात्कार कराओ। वो पुकार रहे हैं। और आह्वान कर रहे हैं कि हमारे कुल देवी और कुल देवता आकर हमारा उद्धार करें। तभी तो द्वापर से लेकर कलियुग तक कुल देवी और कुल देवताओं का गायन हुआ। वो ऐसे थोड़े ही हुआ है। तो इसीलिए ये मत समझना कि हम गाँव में रहते हैं, हम किसके देवता होंगे, किसके इष्ट होंगे, अरे आप भी किसी न किसी के इष्ट या देवी-देवता हैं ही हैं। और इसीलिए आपको अपने भक्तों को, अपने उन कुल वाली आत्माओं को वंचित नहीं रखना है। नहीं तो वो आपको उल्हना ज़रूर देंगी। तो इसीलिए हे कुल देवी, कुल देवता, तो ऐसे कुल देवी, कुल देवताओं को क्या करना है? जागृत होना है। अब सम्पूर्णता की ओर, अपने दिव्य दर्शनीय मूर्त द्वारा अनेकों को अनुभव कराना है। और तभी तो वो गायन करेंगे कि वो हमारे बाबा आ गये।
तो आपको परमात्म प्रत्यक्षता अपनी सूरत और मूरत के द्वारा ज़रूर करानी है। तो दिव्य दर्शनीय मूर्त कौन बन सकता है? कौन बनेगा? सबसे पहली बात दिव्य दर्शनीय मूर्त माना कभी-कभी बाबा मुरली में कहते रहे कि बाबा पर्दा उठाये? बाबा पर्दा उठाये? तो जब बाबा कहते कि पर्दा उठायें तो माना मूर्ति तैयार होनी चाहिए। खंडित मूर्ति का तो दर्शन नहीं होता। तो मूर्ति तैयार चाहिए। मूृर्ति तैयार कैसे होगी? मूर्ति होगी माना सम्पूर्ण श्रृंगारी हुई मूर्ति होगी। सोलह कला सम्पूर्ण जब बनना है तो सोलह श्रृंगार को भी धारण करना है। बाबा कई बार हम बच्चों को कहते रहे हैं कि बाबा ने हम सभी बच्चों को अलग-अलग गुणों के सैट दिए हैं, वो सैट पहनकर अलग-अलग स्वरूप, अपना दर्शन तो कराओ अपने भक्तों को। कभी सन्तुष्टता का सैट धारण करो, कभी प्रसन्नता का, तो कभी शांति का। अलग-अलग सैट को धारण कर उनको अनुभव कराना है। कोई भी उल्हाना न दे कि हमारे कुल देवी और कुल देवता तो अपने में ही व्यस्त रहे। और हमें अनुभव भी नहीं कराये। तो ऐसा उल्हना तो नहीं मिलना चाहिए ना। इसीलिए श्रृंगारी हुई मूर्त बनकर अनुभव कराना है। सोलह श्रृंगार, सोलह कला सम्पूर्ण होकर वो स्वरूप अपना तैयार करना है।

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