खुद को कभी दूसरों से कम्पेयर न करें

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हमें सब तरह की युक्तियां बताये जाने पर भी हम उन स्टेजों को प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं, कहीं अटक पड़ते हैं, उसके क्या कारण हैं, उस बारे में सोचें। उसके कई कारण हैं। एक तो मैं यह समझता हूँ कि जाने-अनजाने, जाग्रत अवस्था में या सुषुप्त अवस्था में हम स्वयं की दूसरों से भेंट करते हैं। इसके लिए बाबा युक्ति बताते हैं कि सी फादर अथवा अपने लक्ष्य को सामने रखो। बाबा में जो सम्पूर्णता है, उसको सामने रखें या बाबा ने हमें जो लक्ष्य दिया है उसको सामने रखें। उसके बदले जब हम अपने बड़ों को, अपने से आगे वालों को या अपने साथी सहयोगियों को देख लेते हैं तब हमारे पुरूषार्थ की रफ्तार धीमी हो जाती है। एक व्यक्ति बीस सालों से ज्ञान में है और किसी ने उसके बारे में कह दिया कि उसमें अभी तक भी क्रोध है या किसी में किसी और प्रकार का देह अभिमान है या उसके जीवन का कोई ऐसा दृष्टान्त देखा कि इतने समय ज्ञान में चलने के बाद भी उसमें कोई परिवर्तन नहीं है, तो उसको देखकर अलबेलापन, आलस्य या रफ्तार में कमी आ जाती है। संकल्प आता है कि बाबा को तो सबको घर ले चलना है, मुझ अकेले को तो नहीं ले चलना है, तो क्यों न मैं भी उन जैसी ही चाल चलता रहूँ। जब तक सब तैयार नहीं होंगे तब तक मैं अकेला तैयार होकर क्या करूँ? सबके साथ अपना भी सोचता है। फारसी में एक कहावत है कि ‘बहिश्त में जायेंगे तो दोस्तों के साथ ही जायेंगे और दोजक में जायेंगे तो भी दोस्तों के साथ ही जायेंगे’। कोई भी अकेला नहीं जाना चाहता। जब हम दूसरों में पुरूषार्थ की कमी जाने-अनजाने, चाहे-अनचाहे देखते हैं, वह कमी हमारे में भी आ जाती है। इसके लिए बाबा कहते हैं कि बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो… इन फालतू बातों को न देखो, न सुनो। यदि हम इन बातों को नोट करते हैं, इनमें रूचि लेते हैं, बैठकर सुनते या सुनाते हैं, यह बहुत घातक बात है। यह हमारे लिए विष का काम करती है। बाबा ने कहा है कि हरेक आत्मा का अपना-अपना पार्ट है। एक नहीं मिलता दूसरे से। जब एक-दूसरे से नहीं मिलता तो हम अपने को या दूसरे को अन्य से कैसे भेंट कर सकते हैं? हरेक का अपना पार्ट है, अपनी स्थिति है। अगर मैं उसका पार्ट अनुसरण करने लगूं तो यह ठीक होगा? मुझे शिव बाबा का अनुसरण करना है या किसी ए,बी,सी का? मुझे लगता है कि यह बात हम भूल जाते हैं। बाबा ने और कई कारण तो बताये हैं लेकिन मेरा ध्यान खास इस बात पर जाता है कि हम अपने को दूसरों के साथ कम्पेयर करने लग जाते हैं। कोई हमसे कहता है कि आपके क्रिया-कलाप ठीक नहीं हैं तो हम तुरन्त कहते हैं कि किसके ठीक हैं, आप बताओ। जब हरेक व्यक्ति कोई न कोई धमचक्र में पड़ा हुआ है तो आप मुझे क्यों अपवाद समझते हो? कोई दूध में धुले हुए तो हैं नहीं। आप मुझे ही क्यों कायदे-कानून समझा रहे हो? इस तरह की अपनी सफाई देना शुरू करते हैं।
यह मेरा अपना विचार है कि अपने को दूसरों के साथ कम्पेयर करके हम अपने आपको नुकसान पहुँचाते हैं। लेकिन हमें यह महसूस होता कि हम अपने आप नुकसान कर रहे हैं, अपने को धोखा दे रहे हैं। यह हमारी प्रगति को कम करता है। हमें जिस रफ्तार से आगे बढऩा चाहिए, बढऩे नहीं देता। अगर हम यह समझें कि ‘हम करके दिखायेंगे’, ‘हम बाबा के नम्बर वन बच्चे बनेंगे’, ‘मैं ऐसा पुरूषार्थ करूंगा, दूसरों के लिए आदर्श बनूंगा’, तो इसको बाबा कहते हैं, ‘जो ओटे सो अर्जुन’। बाबा ने कहा है कि एग्ज़ाम्पल बनो और सैम्पल बनो। बाबा ने यह कभी नहीं कहा कि फलाने को फॉलो करो, ए या बी या सी को फॉलो करो, उसके फॉलोअर बन जाओ। दूसरों से अपनी भेंट करने से, कमी हमारे जीवन में आ जाती है।

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