नकारात्मकता से बचाने का कार्य करता… राजयोग

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परमात्मा की शक्ति को अपने अंदर भरो, उस आत्मा को भेजो और अपने हिसाब-किताब को हमेशा के लिए खत्म कर लो।

दूसरों को दोष देना आसान है। अपनी जि़ंदगी में आने वाली परेशानियों का दोष भी दूसरों के सिर पर मढ़ा जा सकता है। लेकिन क्या आप सकारात्मकता का प्रसार कर सकते हैं? बाग में खुशबू फैलाने के लिए आपको फूल बनना पड़ेगा। लेकिन फूल बनने की यात्रा आसान नहीं है। ध्यान के ज़रिए इसका अभ्यास करना पड़ेगा और अमल में लाना होगा।
संस्कारों पर ज़ोर देना क्यों ज़रूरी है? मैं अक्सर अपने कार्यक्रमों में, लेखों के ज़रिए संस्कारों की बात करती हूँ। क्योंकि यह एक दिन की बात नहीं है। संस्कार हमारी हर सांस से जुड़े हैं। इसे रोज़ अमल में लाना पड़ेगा। अब एक उदाहरण देखते हैं। एक संस्कार यह होता है कि किसी ने मुझे सबके सामने इतनी बड़ी बात कह दी, अब मैं यह बात कभी नहीं भूलंूगा। दूसरा संस्कार होता है, जिसमें हम अपने बच्चों से कहते हैं कि मेरे जाने के बाद भी उनको कभी माफ मत करना। और अब आता है तीसरा संस्कार, जो कहता है कि गलत करना उनका कर्म था, मेरा कर्म है क्षमा करना। माफ किया, फुलस्टॉप लगाया और अपने मन को क्लीन कर लिया। आप ही बताइए क्या बेहतर है। हमें अपने कर्मों और संस्कारों पर ध्यान केंद्रित करना है। प्रतिदिन, हर क्षण। इसके लिए ऊर्जा की रूकावटों को ध्यान यानी मेडिटेशन के माध्यम से खत्म करना है। जैसे एक लेजर बीम होती है, जो अवरोधों को हटा देती है। एक लेजर ऑपरेशन के ज़रिए बीमारी ठीक कर देती है। उसी तरह परमात्मा की शक्ति को अपने अंदर भरो, उस आत्मा को भेजो और अपने हिसाब-किताब को खत्म करो। अगर हमने इसका मात्र 15 दिन भी अभ्यास कर लिया तो थोड़े दिनों के बाद आपको उनका व्यवहार बदला हुआ मिलेगा। ये सौ प्रतिशत निश्चित है। ये सिर्फ थ्योरी नहीं है इसे लाखों लोगों ने आजमाकर देखा है। आप भी करके देखें। जब कोई हमारे साथ कुछ गलत करता है तो यह गलत कर्म उनका है। फिर उसके बाद हम सोचते रहते हैं कि उन्होंने ऐसा क्यों किया, उनको ऐसा नहीं करना चाहिए था। उन्होंने निगेटिव किया, हम दु:खी हुए, परेशान हुए तो हमने भी नकारात्मक प्रतिक्रिया दी। उन्होंने नकारात्मक कर्म किया, हमने भी नकारात्मक सोचा, ऐसे में हमारी नकारात्मक सोच की ऊर्जा कहां गई? उन्हीं के पास गई ना, जो पहले से ही हमारे प्रति नकारात्मक थे। ऐसे में नकारात्मकता का स्तर बढ़ जाता है। अब आपको व्यवहार बदलना है। उन्होंने हमारे साथ गलत किया, लेकिन हमने 15-20 दिन हर रोज़ सोने से पहले उनको दुआएं दी। अपनी शुद्धतम ऊर्जा उनकी तरफ भेजी। अगर मेरी नकारात्मकता उनकी नकारात्मकता बढ़ा सकती है तो क्या मेरी सकारात्मक ऊर्जा, उन्हें पॉजिटिव नहीं कर सकती है! आप सोचिए कि कौन-सा वाला विकल्प चुनना है।
आप सिर्फ एक संकल्प करें कि परमात्मा की शक्ति मुझ पर और मुझसे होती हुई हर उस व्यक्ति की तरफ जा रही है जो मेरे संपर्क में है। मेरे परिवार के लोग, मेरे दोस्त, मेरे रिश्तेदार, मेरे सहकर्मी, मेरे पड़ोसी, मेरी तरफ से हर आत्मा के प्रति सिर्फ और सिर्फ दुआएं…दुआएं… शुभभावना। मेरी तरफ से सिर्फ प्यार और सम्मान। अब इसको भी रोज़ करना है। रोज़ सुबह दिन की शुरूआत इससे करनी चाहिए। ताकि जिनके साथ हम जुडऩे वाले हैं, जिनके साथ हम मिलने वाले हैं, बात करने वाले हैं, उनके साथ सकारात्मकता का रिश्ता कायम हो। आप इस बात पर ध्यान दीजिए कि हम सोचकर कोई गलत कदम नहीं उठाते। लेकिन ज़रा-सा गुस्सा आया, ज़रा-सी बात बुरी लगी और हमारे मन-वचन-कर्म में नकारात्मकता आ जाती है। हम कुछ ऐसा बोल देते हैं, कुछ ऐसा सोच लेते हैं, कभी-कभी दूसरों की निंदा भी कर देते हैं। ये ऐसे क्यों हैं? यह भी एक गलत कर्म है। और अगर दूसरा कह रहा है कि फलां व्यक्ति ऐसे क्यों है और उनको सुनने के बाद हमने सिर्फ हां में सिर हिला दिया, तो वो भी एक गलत कर्म है। क्योंकि हमने उनके गलत का समर्थन किया। वो भी हमारा गलत कर्म है।
अभी तक हम भगवान से कहते थे कि हे! भगवान, दुनिया को शांति दो। लेकिन हमें ईश्वर से मांगना नहीं है। शांति की किरणें लेकर सबको देनी है! भगवान हमारे पालक हैं। हमारा अधिकार है उनकी हर चीज़ पर। हम भगवान के बच्चे हैं। उनकी शक्तियों को लो और सृष्टि की हर आत्मा को दो। इससे बड़ा कर्म हो नहीं सकता है। ये करने से आपके कर्मों की ऊर्जा इतनी ऊपर उठ जाती है कि छोटी-छोटी बातों में नीचे आना मुश्किल हो जाएगा, छोटा सोचना मुश्किल हो जायेगा।

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