अन्तरमन की कहानी

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हम सभी बहुत सारे ऐसे जो प्रेरकवक्ता हैं और यूट्यूब पर बहुत सारे ऐसे मोटिवेशनल स्पीकर्स को सुनते हैं जो हमेशा कहते हैं कि अपने अन्तरमन या अपने सब्कॉन्शियस माइंड को हील करो। अब ये सब्कॉन्शियस माइंड की हीलिंग से आपका पूरा जीवन बदल जायेगा। आप जो चाहते हैं वो हो जायेगा। इसकी पॉवर को जानें आदि-आदि।
बहुत सारी बातें ऐसी हम सुनते हैं। लेकिन आज तक हमने इसकी एक बात को नहीं समझा कि हम सब्कॉन्शियस माइंड को या अपने अन्तरमन को सक्रिय कैसे करें! कैसे इसका उपयोग करें! तो कई बार इस पर एक विचार चलता है मन में कि अन्तरमन जैसे कोई चीज़ एग्जि़स्ट ही नहीं करती या है ही नहीं। अब ये प्रश्न सुन के आपको लगा होगा कि अभी तक तो सभी ये कहते हैं कि अन्तरमन है। सब्कॉन्शियस माइंड है और आप ये एक नई चीज़ बता रहे हैं। नई चीज़ नहीं है, है पुरानी लेकिन हमने कभी समझा नहीं।
अन्तरमन जो हमारा सब्कॉन्शियस माइंड है इसे आप ऐसे समझो जैसे आपने एक हाथ में घड़ी पहनी है और बहुत लम्बे समय से आप पहनते आये हैं। ये आपका अन्तरमन है। सब्कॉन्शियस माइंड ही है। ये आपको याद नहीं है लेकिन आप नैचुरल कर रहे हो। लेकिन किसी ने आपको कह दिया कि आपने लेफ्ट हैंड में इतने समय से घड़ी पहनी है ना तो अब आप इसको राइट में पहनो, तो आपको फायदा होगा। तो जैसे आपने राइट में पहना ये आपका कॉन्शियस माइंड हो गया या आपका ये चेतन मन हो गया। वो अवचेतन मन और ये हमारा चेतन मन हो गया। अब अगर आपने इसे लगातार पहना तो आपकी चेतना हो गई। इसका मतलब कॉन्शियसली मैंने इसको पहनना शुरू कर दिया। अब ये सारी बातें बहुत समय से हम जो करते हैं वो हमारा अन्तरमन ही है। लेकिन उसमें थोड़ा-सा भी परिवर्तन करते हैं और चेतना से करते हैं तो उसको हम चेतन मन कहते हैं।
जैसे आप घर के बाहर बैठे हुए हैं और थोड़ी देर बाद आपको नींद आ जाती है और कोई आपके घर में प्रवेश कर जाता है तो प्रवेश करते ही आपको पता नहीं चला लेकिन अगर अन्दर वो चला गया, कुछ नुकसान कर दिया तो कहते कि क्या कर रहे थे, जी सो गये। ऐसे हम सभी अपने जीवन में सोये हुए हैं। हमारे सामने जो हो रहा है, आस-पास जो हो रहा है, इधर-उधर जो हो रहा है ये सब हम देख रहे हैं और ये नैचुरल तरीके से हमारे अन्दर जाता जा रहा है। और हमारा ध्यान उसपर नहीं जाता है। कुछ दिन में जब वो हमारे संस्कारों में आता है तो कहते कि ये मैंने कब किया? ये तो मैंने कभी किया ही नहीं! ऐसे कैसे ये हमारे अन्दर संस्कार बन गये! तो आप इसे इस तरह से समझ लें आज कि एक है मुझे प्यास लगी है, अब प्यास लगी है और आपके सामने पानी का एक गिलास रख दिया जाये तो पानी को देखकर आपकी प्यास नहीं बूझेगी। जब तक आप पानी को पियेंगे नहीं। ऐसे ही भोजन है, भूख लगी है। जब तक भोजन आपके सामने रखा है तो उसको देखकर आपका पेट नहीं भरेगा। भोजन को खाने से पेट भरेगा ना! ऐसे ही हम सबकी स्थिति है।
हरेक चीज़ महसूसता चाहती है, फीलिंग चाहती है। एक फील के साथ कोई चीज़ हम करते हैं तो हमारे अन्दर चला जाता है। तो फिर वो हमारे संस्कारों में आकर हमारे से वही सारी चीज़ें कराता है जो आप चाहते हैं। तो हमारा अन्तरमन, हमारे चेतन मन के साथ काम करता है लगातार। जैसे अगर मैं कोई भी चीज़ को चेतना के साथ करना शुरू करूंगा तो हर दिन जैसे मैंने आज वो काम किया तो कल वो अवचेतन मन हो जायेगा, सब्कॉन्शियस हो जायेगा। फिर आज कुछ अच्छा किया, अगर हर रोज़ कुछ अच्छा-अच्छा करता जाता हूँ तो हर दिन वो हमारा अन्तरमन बनता जा रहा है। और हर दिन जो हमारा अन्तरमन बनता है वही संस्कार ही तो हमें सुख देते हैं। तो क्यों न हम अपने मन में चैतन्य रूप से, कॉन्शियसली इस बात को डालें, बार-बार डालें कि मैं ये हूँ- मैं पॉवरफुल हूँ, मैं शक्तिशाली हूँ, मैं अच्छा हूँ। लेकिन एक फील के साथ डालना। जैसे आज पानी और भोजन का उदाहरण दिया। उसको फील करके जब डालेंगे तो धीरे-धीरे वही मन आपका बहुत शक्तिशाली आपसे व्यवहार करायेगा। और उसी बात को इतना ज्य़ादा आप अनुभव करने लग जाओ जैसे ये हमारा जीवन है।
तो अन्तरमन कुछ नहीं है। हमारा चेतन मन ही हर दिन अन्तरमन हो जाता है। तो चेतन मन ही कभी अन्तरमन है, कभी अन्कॉन्शियस माइंड है, कभी सब्कॉन्शियस माइंड है, कभी कॉन्शियस माइंड है। कॉन्शियस माइंड ही सबकुछ है। और कॉन्शियस माइंड से भी ऊपर एक चीज़ है उसे कहते हैं कॉन्शियसनेस। तो जब मैं एकदम चैतन्यता के साथ जीना शुरू करूंगा, अलर्टनेस के साथ जीना शुरू करूंगा तो हमारा अन्तरमन क्या हमारा जीवन ही बदल जायेगा। तो इस तरह से इस बात को हम इस्तेमाल करके अपने जीवन को बदल सकते हैं।

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