प्रश्न : सतगुरू बिगड़ी को बनाते हैं, हमारी बिगड़ी को भी क्या वो बनायेंगे? और इसके लिए हमें क्या करना होगा?
उत्तर : पहली चीज़ यही लोगों की कि स्थूल दृष्टि रही है कि काम बिगड़ गया, बिज़नेस बिगड़ गया, बच्चे बिगड़ गये, और कोई उलझने आ गईं उसको ठीक कर दें परमसद्गुरू, ये काम भी उनकी ओर से होता है। लेकिन पहली बात तो ये थी कि हमारा जीवन ही बिगड़ गया। हमारी मानसिक स्थिति बिगड़ गई। हमारी प्युरिटी नष्ट हो गई, मनोविकारों ने हमारे चारों ओर घेराव डाल लिया है। ये बिगड़ी, पहले परमात्मा इस बिगड़ी को बनाते हैं। यानी हमें, यानी मनुष्यात्ओं को, अपने बच्चों को ठीक करते हैं, सुधारते हैं। जब हममें सुधार आ जाता है तो हममें वो पॉवर आ जाती है कि हम अपनी बिगड़ी को बना सकें। और अगर हममें वो पॉवर नहीं आई तो हम योगयुक्त होकर, परमसद्गुरू की मदद प्राप्त करके बिगड़ी को बना लेते हैं। यहाँ हमें बहुत अच्छी साधनायें करनी होंगी। क्योंकि जैसे मैं बार-बार कहता आ रहा हूँ कि कोई मनुष्य अपनी बिगड़ी को लेकर अपने गुरू के पास जाता है, गुरू अपनी शक्ति से वो बात ठीक कर देता है। लेकिन कल फिर उसकी बिगड़ जाती है फिर वो गुरू के पास जाता है, फिर बिगड़ जाती है फिर वो गुरू के पास जाता है। तो एक तरह से ये कमज़ोरी हो गई और गुरू भी कहाँ तक मदद करेगा! कहेगा कि तुम रोज़ ही बिगाड़ कर आ जाते हो, बस पूरा हो गया आपका काम। परमसद्गुरू हमें ऐसा कर देता है- शक्तिशाली बन जाओ, एक तो तुम्हारी बिगड़े ही नहीं और अगर मान लो तुम्हारा भाग्य बिगड़ गया तो उसको तुम ठीक करना जानते हो। वो हमें आर्टिस्ट बना देता है। तुम्हारे चित्र में कोई गड़बड़ाहट आ जाये तो तुम मेरे पास दौड़े न आओ। खुद ही ठीक कर लो।
प्रश्न : गुरू का निंदक ठौर न पाये ऐसा कहा जाता है, कि अगर गुरू की निंदा की तो हमें तीनों लोकों में कहीं भी ठिकाना नहीं मिलेगा। इसीलिए कई लोग डरते हैं कि हमने एक गुरू किया हुआ है यदि हम दूसरे के पास जायेंगे, ज्ञान सुनेंगे, बैठेंगे तो हमारे गुरू की निंदा हो जायेगी और हमें कहीं ठौर नहीं मिलेगा। तो इस बात को थोड़ा स्पष्ट करें।
उत्तर : वास्तव में इस बात से डरने की बात नहीं है। बहुत से लोग अनेक गुरू भी करते हैं, कि हमें एक गुरू से एक तरह की प्राप्ति हुई और दूसरे गुरू से दूसरे तरह की प्राप्ति हुई। इसमें गुरू की निंदा या ग्लानि होने जैसी कोई बात ही नहीं है। इसमें डरने की बात नहीं। लेकिन भगवान का मामला सामने आ गया हो कि वो परमसद्गुरू बनने को तैयार है, और वो उसी रूप में इस धरा पर आ गया है तो उसे ही अपने परमसद्गुरू के रूप में अपना लेना चाहिए। रही बात निंदा की तो निंदा तो ये है कि हम किसी अच्छे व्यक्ति के गुरू के शिष्य हों और हम बुरे काम करते रहें। मान लो अच्छे गुरू का शिष्य है और शराब पीता है तो लोग कहेंगे कि देखा उसके गुरू ने उसे ये भी नहीं सिखाया। तो ये है गुरू की ग्लानि। और परमसद्गुरू की ग्लानि ये है कि उसने पवित्रता का मार्ग दिखाया, उसने प्युरिफिकेशन का मार्ग दिखाया तो हम उसपर चलते रहें। अगर हम उसको तोड़ते हैं तो वो सूक्ष्म रूप में जैसे सद्गुरू की निंदा होती है। और ठौर न मिलना माना उन आत्माओं की सद्गति नहीं होती। अगर किसी को अपने गुरू में बहुत अच्छी भावना है और उनका गुरू सचमुच ग्रेट है और उनको उनसे बहुत कुछ सुख, शांति, आनंद, प्रेम मिल रहा है तो उन्हें छोडऩे की कोई ज़रूरत नहीं क्योंकि वो भी भगवान की संतान हैं, वो भी अच्छे कार्यों में लगे हुए हैं। अब बात यही है कि उस गुरू के पास भगवान मिलन के लिए जाते थे तो जब भगवान मिलने आ गया हो तो उससे मिलना तो चाहिए ना! फिर गुरू के पास गये थे प्रभु मिलन के लिए, फिर प्रभु मिलन होने लगा तो कहें कि मैं तो गुरू के पास ही रहूँगा, प्रभु मिलन नहीं। तो फिर ये तो बहुत बड़ी मिस्टेक हो गई। तो भले ही गुरू को सम्मान दो, उनकी आज्ञाओं पर चलो, उनसे अपना नाता रखो, लेकिन परमसद्गुरू की दिखाई गई राह पर चलने से बहुत महान बन जायेंगे और सर्व श्रेष्ठ गति जिसको मुक्ति या जीवन मुक्ति कहते हैं उसके अधिकारी बनेंगे।
कई लोग ये बात भी उठाते हैं कि हमारे गुरू जो ज्ञान देते हैं वो ही ज्ञान हमें यहाँ दिया जा रहा है। वो भी हमें अच्छाई की ओर ले चलते हैं। यहाँ पर भी अच्छाई का मार्ग दिया जा रहा है तो लोग थोड़ा-सा डिफ्रेंस नहीं कर पाते कि जो ज्ञान वहाँ मिल रहा है वही तो यहाँ मिल रहा है तो फिर सबकुछ छोडऩे की क्या ज़रूरत है। बात सिर्फ ज्ञान मिलने की नहीं है। देखिये ज्ञान को कोई अगर गहराई से अध्ययन करेगा तो उनको पता चलेगा कि वहाँ जो ज्ञान दिया जा रहा था वो ज्ञान जहाँ समाप्त हो गया वहाँ से परमसद्गुरू का ज्ञान प्रारम्भ होता है। मोटे रूप से लोग देखते हैं कि वो भी कहते हैं कि विकारों को छोड़ो, अच्छे कर्म करो, यहाँ भी वही बात कही जा रही है। ये तो बाह्य स्वरूप है केवल ज्ञान, ईश्वरीय ज्ञान जो स्वयं भगवान दे रहे हैं। देखिए भगवान जब गाइड करेगा तो उनकी गाइडेन्स वो नहीं होंगी जो मनुष्य कर रहे हैं, वो उनसे सुपर क्वालिटी की हो जायेगी। इसलिए वो बात नहीं है, ज्ञान की बहुत अच्छी तरह स्टडी करें तो पता चलेगा कि बहुत गुह्य ज्ञान परमसद्गुरू से मिल रहा है उसे अपनाने से वो ज्ञान भी जो वहाँ मिल रहा था उसको जीवन में धारण करना सहज हो जाता है। बात यही होती है। मान लो वही ज्ञान दिया भी जा रहा हो तो कौन से ज्ञान को हम जीवन में अपना पा रहे हैं, किसकी आज्ञाओं पर चलकर हम अपने जीवन को निर्विकारी बना रहे हैं और किसकी आज्ञाओं पर चलकर हम वैसे के वैसे ही हैं। सुन तो रहे हैं कि शराब पीना बहुत खराब है लेकिन पीते ही जा रहे हैं। पीते हुए भी कह रहे हैं कि शराब पीना बड़ा खतरनाक है। तो ये अन्तर हमें स्पष्ट रूप से अनुभव करना होगा।