पानी को जब तक 212 डिग्री तक गर्म करके भाप न बनाया जाये तब तक इंजन अपनी जगह से हिल नहीं सकता और न ही गाड़ी को खींच सकता है।
इच्छा रखने मात्र से लक्ष्य हासिल नहीं होता। लक्ष्य को पाने के लिए अपनी शक्तियों को पहचानें और समग्र शक्ति लगाकर उसे प्राप्त करने का प्रयत्न करें। कल पर टालने की आदत के वश न हों। जो अपने लक्ष्य को कल पर डाल देते वे सदा दुर्बल बने रहते।
यहां तक कि 210 डिग्री तक भी गर्म करने से इंजन नहीं चल सकता और न ही गाड़ी खींची जा सकती है। इसी प्रकार अनेक लोग अपने जीवन की गाड़ी को गुनगुने पानी के साथ चलाने की कोशिश करते हैं। बहुत हुआ तो उबलते पानी से चलाने का प्रयत्न करते हैं। लेकिन फिर भी प्रगति नहीं हो पाती। वे आगे नहीं बढ़ पाते। वास्तव में उनके इंजन में लगे बॉयलर में पानी 200 या 210 डिग्री रह जाती है। इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि उनका उत्साह कार्य के प्रति उतना तेजस्वी नहीं हो पाता जितना होना चाहिए। उत्साह मंद होने पर कार्य में सफलता नहीं मिल सकती। उसी प्रकार जिस तरह गुनगुना पानी इंजन नहीं चला सकता, उसी प्रकार जब तक कोई व्यक्ति किसी कार्य में अपनी आत्मा को सम्पूर्ण रूप से नहीं लगा देता, अपनी सम्पूर्ण जीवन-शक्ति को किसी कार्य में नहीं देता तब तक उसे किसी भी प्रकार की सफलता अथवा उपलब्धि की आशा नहीं करनी चाहिए। महान बनने वाले इंसान कहीं न कहीं औरों को प्रेरित करने के लिए, कुछ करने के लिए कार्य में अपनी समस्त शक्ति नियोजित कर देते हैं। कुछ बनने के लिए इतना ही पर्याप्त नहीं कि आपकी इच्छा वैसा बनने की हो। उसके लिए आपको अपनी समग्र शक्ति को एकत्र करके एक लक्ष्य पर केंद्रित करना होगा। हर व्यक्ति को अधिकार प्राप्त है कि वह जिस वस्तु को चाहे, उसकी इच्छा करे लेकिन उसे प्राप्त वही कर पाता है जिसका शारीरिक एवं मानसिक संतुलन सही हो।
केवल इच्छा मात्र से ही कुछ नहीं हो सकता। इच्छा करना और कर्म करने में आकाश-पाताल का अंतर है। इच्छा गुनगुना पानी है जो जीवन की गाड़ी को लक्ष्य तक नहीं पहुंचा सकती। लेकिन वही गुनगुना पानी जब 212 डिग्री पर गर्म होकर खौलने लगता है यानी आप अपने उद्देश्य के प्रति समग्र शक्ति लगाकर प्रयत्न करने लगते हैं तो आपकी गाड़ी अपने लक्ष्य तक अवश्य पहुंच जायेगी।
जो जीवन में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं, यदि आपके जीवन का उद्देश्य महान है तो आपको उसे सर्वोपरि रखना चाहिए तथा उसकी तुलना में सभी इच्छायें तुच्छ हो जानी चाहिए। ध्यान रहे कि जीवन का उद्देश्य आपका सर्वश्रेष्ठ सिद्धांत होना चाहिए। जीवन में उसकी सत्ता सर्वोपरि होनी चाहिए। ऐसा होने पर ही आपकी शक्ति बढ़ सकेगी और परिणामत: आपके जीवन की गाड़ी बढ़ती जायेगी। जो भी व्यक्ति अपने जीवन के उद्देश्य को निश्चित कर लेता और उसके लिए सदा उत्साहित बना रहता है, उसमें एक ऐसी शक्ति पैदा हो जाती है जिसे रचनात्मक, क्रियात्मक अथवा निर्माणात्मक सृजन शक्ति कह सकते हैं। ऐसा कर्मठ व्यक्ति ही श्रेष्ठ बन पाता है। लक्ष्य के बिना, कोई उद्देश्य के बिना व्यक्ति मौलिक अथवा रचनात्मक कर्ता नहीं बन सकता। और जब तक व्यक्ति एकनिष्ठ होकर अपने मन को किसी एक बिंदु पर एकाग्र नहीं करता तब तक उन्नति के पथ पर अग्रसर नहीं हो सकता और न ही अपने जीवन के उद्देश्य को प्राप्त कर सकता है।
अत: व्यक्ति को चाहिए कि वो अपने काम-धन्धे को ठीक वैसा ही रखे जैसा एक कलाकार अपनी सर्वोत्तम कृति को अपनी ही प्रतिमूर्ति समझता है और उसके विषय में बातचीत करके स्वयं को गौरवान्वित अनुभव करता है। जितनी संतुष्टि इस बात से होती है, उतनी अन्य किसी बात से नहीं होती। परंतु खेद की बात है कि अनेक लोगों को अपने पेशे में तनिक भी रुचि नहीं होती और बड़ी सरलता से उन्हें उस धन्धे से अलग किया जा सकता है। ऐसे अनेक नवयुवक हैं जो अपने पेशे या धन्धे में ठीक प्रकार से कार्य करते दिखते हैं परंतु उन्हें कभी भी किसी अन्य काम-धन्धे में लगाने के लिए भडक़ाया जा सकता है। इसका कारण यही है कि वह हर समय उसी दुविधा में पड़े रहते हैं कि जिस कार्य में लगे हुए हैं क्या वह ठीक है? क्या वह उसमें लगकर लाभ उठा सकते हैं? नहीं ना! आप सोचें, आप जो कर रहे हैं वो सम्पूर्ण शक्तियों को एकत्र कर लगन से, रुचि से कर रहे हैं, अगर हाँ है तो सफलता मिलनी निश्चित है।