बदलाव को स्वीकार करने का पहला कदम है स्वीकार्य

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दुनिया में आज असुरक्षा की बीमारी सबसे बड़ी बनती जा रही है। असुरक्षा की भावना घरों में भी है, दफ्तर में भी है और सेवा के क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है। असुरक्षा में हम औरों को आगे बढ़ता हुआ नहीं देख पाते हैं। पर अध्यात्म हमें यह सिखाता है कि हम जितना औरों को आगे बढ़ाएंगे उतना ही खुद भी आगे बढ़ जाएंगे।

जीवन में यह बात हमेशा याद रखिए कि जब कोई किसी के बारे में बोलता है, तो वास्तव में अपने व्यक्तित्व के बारे में बता रहा होता है। तो हम उससे दूसरे को नहीं, लेकिन सुनाने वालेे को जान जाते हैं। क्योंकि जो सुनाएगा वो अपने नज़रिए से सुनाएगा। दूसरे के अंदर विशेषता न भी हो लेकिन देखने वाले के अंदर अगर वो नज़र है, तो वो अच्छा-अच्छा ही देखेगा। दूसरे के अंदर अगर विशेषता हो लेकिन हमारे अंदर अच्छा देखने की नज़र न हो तो हम कभी -कभी दूसरों के बारे में बहुत कड़वी बातें कह जाते हैं। जब भी किसी का परिचय सुनाएं तो एक चीज़ हमेशा याद रखें कि वो उनके नहीं बल्कि अपना व्यक्तित्व दर्शा रहे हैं।
युवा इस बात को भी समझें कि क ोई कॉलेज सही मायनों में आपका व्यक्तित्व निर्माण नहीं कर सकता, वो सिर्फ आपको पढ़ा सकता है। व्यक्तित्व कैसा बनाना है, यह हमें ही तय करना है। वो सिर्फ हमें राह दिखा सकते हैं। युवाकाल हमारे जीवन का स्वर्णिम समय होता है। हमारे वायब्रेशन्स से ही लोगों के आधे दु:ख दूर हो जाते हैं। हमें इन वर्षों में यह देखना है कि किसका हम पर क्या असर पड़ता है और मुझे कैसा बनना है। कुछ लोगों से हम मिलते हैं, तो हमें उनसे मिलकर मज़ा नहीं आता है। उस समय हम यही सोचते हैं कि काश इनसे नहीं मिलते तो अच्छा रहता। वहीं, इसके अलट कुछ लोग ऐसे होते हैं, जिनसे मिलने के लिए हम दिन भर इंतज़ार करते हैं क्योंकि वो प्यार से बात करते हैं।
युवा अभी अपने जीवन के सबसे आसान दौर में चल रहे हैं। अभी तो वह वो वाले दौर मेें भी नहीं गए हैं जहाँ इतना पे्रशर है, टारगेट है, कम समय है, घर भी संभालना है, काम भी करना है। अभी तो क ोई प्रेशर नहीं उनके ऊपर। जब कोई प्रेशर नहीं है तब गुस्सा आता है तो आप स्वयं को उस स्थिति में देखो, तब आपको कितना गुस्सा आएगा। समाधान पर विचार करें। परिस्थितियों को पहले स्वीकार करें, फिर उन पर अपनी प्रतिक्रिया दें। हालात को इतने प्यार से स्वीकार करें, जैसे कि आपने खुद वैसा ही चाहा था। कल्पना करें कि हमारे जीवन में संयोग से कोई बड़ी बात आई है, हमें उसे चुनौती बनाते हुए पार करना है। उस चुनौती को पार पाना भी अपने आप में एक यात्रा है। उस यात्रा में कभी कुछ घंटे, कभी कुछ दिन, कभी कुछ साल लगते हैं। कभी-कभी वो चुनौती हमारे जीवन का हिस्सा बन जाती है।
जीवन में कुछ परिस्थितियां ऐसी आती हैं जिसका आगे कोई समाधान नहीं दिखता। लेकिन अधिकांश परिस्थितियां आज नहीं तो कल ठीक हो जानी हैं, हां संघर्ष का दौर लंबा चल सकता है। हमारे जीवन में जो बात आई, कई बार हम उसे दुर्भाग्य कह देते हैं, कोई हादसा, कोई बड़ी बात। उस बदलाव को स्वीकार करने का पहला कदम स्वीकार्य है। क्योंकि ज्य़ादातर कभी कोई बात आती है तो हमारा मन प्रश्नों में चला जाता है। जब चित्त प्रश्नों से भर जाएगा तब मन की स्थिति प्रसन्नचित्त नहीं रहती है। जहाँ हमें उस समस्या का समाधान दिखने वाला है, वो हमें नहीं दिखेगा, क्योंकि हमारे मन में हलचल हो रही है।
हर, बात का पहले मन पर असर पड़ता है, फिर शरीर पर भी असर पड़ता है। आज बात एक होती है अगर हमने उसका पूरी ताकत से सामना नहीं किया तो दूसरी समस्या हम खुद पैदा कर देते हैं। मन दर्द में चला गया, भय में चला गया, असुरक्षा में चला गया, तो उस मन को डिप्रेशन हो जाता है। कई बार किसी के रिश्ते में उतार-चढ़ाव आता है, उसका प्रभाव इतना बड़ा पड़ता है कि किसी को डिप्रेशन हो जाता है किसी का बीपी बढ़ जाता है, किसी को हार्ट अटैक हो जाता है। कई बार हम युवाओं में देखते हैं कि उन्होंने डिसाइड किया था कि उनके जीवन में क्या होगा। मतलब करियर में वो कै से चलेंगे, आगे क्या बनें। वो जो सोचा था कि जीवन की स्क्रिप्ट ऐसी चलेगी।
जो चाहा था वो नहीं मिलता तो लोग अपने आपको भी कुछ कर लेते हैं या हताश हो जाते हैं। पर ध्यान रखिए, जीवन के घटनाक्रम आपस में जुड़े होते हैं। एक कदम कई सारी समस्याएं खड़ी कर देता है, इसलिए जीवन में अगर कोई बात आए तो पहले उसे स्वीकारें, फिर कोई बात को फेस करें, उस बात से प्रभावित ना हो जाएं। स्वीकार्य की कमी बहुत सारे समस्याओं का कारण बन जाती है।

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