सागर जैसा दिल था उनका… चेहरे पर थी झलक पवित्रता की

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उनके प्रशासन की चहुं ओर प्रशंसा होती…, जब वे चलती तो हज़ारों के होठों पर मुस्कान झलकने लगती…, जब वे मुरली सुनाती तो सबके मन मयूर नृत्य करने लगते …, जब वे फैसले देती तो उसमें विश्व कल्याण की भावना दृष्टिगोचर होती और जब वे योग में बैठती तो प्रभु-प्रेम की तरंगें चहुं ओर अनुभव होती… जिनका अभाव आज सभी को अत्यधिक महसूस होता है। सब बहुत कहते हैं कि काश आज वे होतीं। जिनकी पुण्य तिथि 25 अगस्त सम्मुख है। प्रस्तुत हैं उनके जीवन की कुछ महानताएं। उनकी ममतामयी बातें…

बात ५ दशक से भी ज्य़ादा पूर्व की है। माउण्ट आबू, हमारे मुख्यालय में 50 पत्रकार प्रथम बार आये। दादी जी ने शाम के समय सभी का स्वागत किया और इतनी प्यार भरी वाणी बोली कि अगले दिन 20 अखबारों में छपा… ”प्यार की प्रतिमूर्ति दादी प्रकाशमणि”।
वे सबको अपनेपन की भासना देती थीं। उनकी दृष्टि ही ऐसी थी कि ये सब हमारा परिवार है। इसमें सब खुश रहें। संगठन में अनेक लोग गलती भी करते थे परंतु उनका शिक्षा देने का तरीका अति स्नेहपूर्ण था। हम भी तब छोटे थे, हम भी कई गलती करते थे, परंतु दादी ने कभी डांटा नहीं, बल्कि सिखाने की दृष्टि से प्रेरक बोल बोले।
इस बात के लिए वे बहुचर्चित थीं कि वे प्रेम की प्रतिमूर्ति हैं। उनके चेहरे पर सदा प्रेम व खुशी की झलक देखी जा सकती थी। उनकी प्रसन्न मुद्रा के कारण कोई भी उनसे सहज ही मिल लेता था। यद्यपि वे ब्रह्माकुमारीज़ की चीफ थीं, परंतु उनके प्रशासन में डर नहीं प्रेम था।

वे ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित थीं…
ब्रह्माबाबा उन्हें ज्ञान की बुलबुल कहते थे। वे सफल वक्ता व श्रेष्ठ चिंतक थीं। उनके चहुं ओर अनेकों ने प्रकाश की झलक देखी थी। उनकी वाणी बड़ी ही प्रभावशाली थी। सब गर्व करते थे कि हमारी चीफ श्रेष्ठ स्पीकर हैं।
ज्ञान सुनाना तो सभी को आता है, परंतु ज्ञान-स्वरूप जीवन बनाना- वे इस कला में पारंगत थीं। वे कहती थीं कि हमारा जीवन ज्ञान दर्पण है, इसमें सभी को अपने चरित्र की तस्वीर दिखनी चाहिए। हमने सदा ही उन्हें ज्ञान की मस्ती में मग्न देखा। यही कारण था उनकी वाणी में प्रभाव का। जब वे ईश्वरीय महावाक्य सुनाती थीं तो वे सहज ही हृदयंगम हो जाती थीं।

सागर जैसा दिल था उनका…
वे तब से संस्था की मुख्य प्रशासिका थीं जब यज्ञ साधारण था अथवा धन-सम्पन्न नहीं था। परंतु इस महान यज्ञ में वे अति उदारता से ब्रह्मा भोजन कराती थीं, क्योंकि ये हमारा विषय था। हम देखते थे कि खिलाने-पिलाने में राजाओं जैसा दिल था उनका। प्रति वर्ष सभी को पूरे वर्ष के वस्त्र मिलते थे, उसमें सबको खुश करती थीं। लिस्ट लेती थीं कि किसको क्या चाहिए, ताकि उनके परिवार में किसी को कोई तंगी न हो।
वे ईश्वरीय विश्व विद्यालय की सभी टीचर्स को कहती थीं कि बड़ा दिल रखो। बड़ा दिल रखोगे तो भण्डारे भरपूर रहेंगे। अपने साथियों को खुश रखो, उनकी दुआओं से सेवाएं बढ़ेंगी। जहाँ भी कुछ खर्च करने की बात आती, तो वे इकोनॉमी तो अवश्य सिखाती थीं परंतु दिल खुला रखती थीं।

हमने देखा इस धरा पर सम्पूर्ण पवित्र आत्मा को…
इन आँखों से दादी प्रकाशमणि के रूप में सम्पूर्ण पवित्र आत्मा को देखने का सौभाग्य मिला। उनकी दृष्टि निर्मल, वाणी सुखद और वृत्ति अति कल्याणकारी थी। उनके मुख की चमक उनकी पवित्रता की झलक थी। वे निष्पाप थीं और कर्मठ थीं।
ऐसी पवित्र आत्माएं इस वसुंधरा पर वरदान होती हैं। उनका पुनर्जन्म भी ऐसे महान श्रीमानों के घर हुआ जो पानी भी प्रभु-अर्पण करके पीते हैं, जिनका प्रांगण सात्विक है और स्वयं भाग्य विधाता ने उन्हें महान कत्र्तव्यों के लिए वहां भेजा है। हमने देखा कि उनकी पवित्रता के समक्ष ही अनेक महामण्डलेश्वर, महात्माओं के शीश भी झुकते थे।

बुद्धि तैयार होती है उनकी महानताओं को अपनाने के लिए…
वे महान थीं। महान मनुष्य में जो महान धारणाएं होती हैं, उन्हें अपनाने को मन करता है। वे पूर्णतया संतुष्ट थीं, निरहंकारी थीं, हर्षितचित्त थीं, किसी का भी अवगुण या किया हुआ बुरा व्यवहार उनके चित्त पर नहीं रहता था। उनके मन में किसी के लिए भी बदले का भाव नहीं देखा गया। हमने देखा उन्हें सभी को क्षमा करते। वे नम्रता व मृदुता की प्रतिमूर्ति थीं। उनका व्यवहार योग्य था। सभी छोटी-बड़ी टीचर बहनें उनसे मिलकर महसूस करती थीं कि वे हमारी हैं और हमें कभी भी ज़रूरत पड़े तो दादी जी हमारे साथ रहेंगी। उनकी छत्रछाया में वे अपने को सुरक्षित महसूस करती थीं।
वे दयावान थीं, किसी के आँसू नहीं देख सकती थीं। स्वयं परम-शिक्षक परम-आत्मा ने भी उनकी महिमा करते हुए कहा था कि वे ‘मैं-पन’ से मुक्त सदा निमित्त, निर्मान भाव में रहने वाली निर्मल चित्त थीं। वे ऐसी प्रशासक थीं जो सभी का बहुत ध्यान रखती थीं। वे सरल स्वभाव सम्पन्न सहज योगी थीं। अपने सम्पूर्ण संगठन की प्रसन्नता का बहुत ख्याल करती थीं। आज सभी उनके इस आचरण को स्मरण कर उनका अभाव महसूस करते हैं। ये महानताएं मनुष्य को महा मानव बनाती हैं। हम भी उन्हें जीवन में अपनायें। यही उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि है।

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