अपनी तैयारी ऐसे करें जो बाबा के साथ उड़ के जायें राजयोगिनी ब्र.कु.जयंती दीदी,अतिरिक्त मुख्य प्रशासिका,ब्रह्माकुमारीज़

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घर के गेट खोलने की चाबी… वैराग्य वृत्ति

बाबा कहते हैं कि यदि आपने प्रकृति को सुख दिया है मनसा सेवा द्वारा, आपने प्रकृति को अच्छे वायब्रेशन्स दिए हैं तो बिल्कुल कायदा बना हुआ है देना और लेना। आपने दिया प्रकृति को तो आपको प्रकृति ज़रूर सुख देगी रिटर्न में।

जैसा कि पिछले अंक में आपने पढ़ा कि हमें स्वर्ग बनाना है अपने संस्कारों द्वारा। तो इतनी रॉयल्टी के संस्कार, इतने दातापन के संस्कार, इतने कल्याणकारी भावना के संस्कार वो कब बनेंगे, परमधाम में नहीं बनेंगे। परंतु यहाँ ही बनाने होंगे। तो फिर वो स्वर्ग की स्थापना का कार्य सम्पन्न होगा।
मूर्ति तैयार न हो तो मन्दिर कैसे बनेगा! मन्दिर कितना भी सुन्दर हो परंतु उसमें मूर्ति खंडित हो तो कौन जायेगा उस मंदिर में? भावना ही नहीं बैठेगी। तो स्वर्ग तो है ही शिवालय। शिव का स्थापन किया हुआ इतना श्रेष्ठ मन्दिर। जिसमें चैतन्य देवताएं रहेंगे। तो आज हम उस स्वर्ग की दुनिया को, मैं कोई सोने-चांदी की बातें नहीं कह रही हूँ, कई लोग मूंझ जाते हैं, विदेश में कहते हैं कि क्या स्वर्ग में सिर्फ सोने-चांदी की बातें होंगी? मैंने कहा नहीं। पहले तो बाबा कहते कि अपने लक्ष्य को, लक्ष्मी-नारायण को देखो। उन्हों का कितना मीठा स्वरूप है, कितनी उन्हों की ऊंची स्थिति है, ये है स्वर्ग। हाँ फिर प्रकृति दासी है। बाबा कहते हैं कि यदि आपने प्रकृति को सुख दिया है मनसा सेवा द्वारा, आपने प्रकृति को अच्छे वायब्रेशन्स दिए हैं तो बिल्कुल कायदा बना हुआ है देना और लेना। आपने दिया प्रकृति को तो आपको प्रकृति ज़रूर सुख देगी रिटर्न में। और यदि बस चाहिए-चाहिए का संकल्प रख के हम प्रकृति की भी परवाह न करके, अपने लोभ वश बस लेते रहें, लेते रहें, तो प्रकृति को हमने कितना दु:ख दिया, कितना हैरान किया, तो फिर प्रकृति का रिटर्न भी हमें वो ही मिलेगा। स्वर्ग के सीन को सामने रखो। स्वर्ग के संस्कारों को सामने रखो तो फिर जो कुछ यहाँ छोडऩा है आप सहज उनसे छूट सकेंगे और फिर स्वर्ग के संस्कार अपने में वो आप धारण कर सकेंगे।
बाबा अभी ही ज्ञान, योग और शक्ति द्वारा कहते कि आप अनुभव करो कि वो मुक्तिधाम, शांतिधाम किस प्रकार से है। आप इस देह से न्यारे होकर उस संसार में एक सेकण्ड में उडक़े जाओ तो वो आपको फीलिंग आयेगी कि उस बेहद घर में कितनी अथाह शांति, कितनी पवित्रता की शक्ति, कितनी रोशनी है जहाँ कोई दीवार ही न नज़र आये। बिल्कुल आत्मा बीज रूप स्थिति में वहाँ हाजि़र है। तो जब मुझे वहाँ जाना है, जिस देश में जाना होता है तो उस देश में जाने के लिए तैयारी करते हैं। आपको मालूम है कि अगर आप गर्म मुल्क में जा रहे हैं तो आप वस्त्र उसी अनुसार लेंगे। कहीं सर्दी का मौसम है तो वहाँ के लिए उस अनुसार आप अपने वस्त्र तैयार करेंगे। इसी तरह से मुझे जाना है परमधाम। मुझे उस ग्रुप में आना है जिसे बाबा कहते हैं साथ-साथ चलेंगे, हाथ में हाथ मिलाकर चलेंगे, पीछे-पीछे मच्छरों-सा दृश्य नहीं आयेंगे। बाबा कहते हैं ना कि बारात होगी तो बारात के पीछे-पीछे आने वालों को क्या मज़ा!
हम तो चमकते हुए सितारे चलेंगे बाबा के साथ। परंतु चलना है तो अपनी तैयारी उतनी करनी है अभी से ही कि वो चमकदार सितारा बनें। तो फिर तैयार होंगे वहाँ चलने के लिए। चमक को डल करने वाले हैं फालतू संकल्प। आप सोचो कि अभी-अभी किसका चेहरा बहुत हर्षित है और अभी-अभी किसी को देखा तो उन्हों के चेहरे में कुछ फर्क पड़ गया। कभी पीला हो गया डर के कारण, कभी लाल हो गया क्रोध के कारण। कभी ग्रीन हो गया लोभ के कारण। क्योंकि जो दूसरे के पास चीज़ें हैं वो मुझे चाहिए। कुछ न कुछ रंग बदलता जाता है चेहरे का भी। तो जब देखते हैं कि संकल्प बिल्कुल चेहरे से नज़र आता तो फालतू संकल्प चलने से न सिर्फ चेहरे पर वो जैसे शैडो आ जाता, वो रौनक चली जाती, परंतु सचमुच आत्मा की जो चमक है वो भी कुछ कम पड़ जाती। तो मैं देखती हूँ कि अपने संकल्पों पर जितना हम ध्यान रखेंगे किस बात का भी असर नहीं होता। माया जब आती है और बाबा की याद में अपनी स्थिति को बनाकर रखा तो माया आपको नीचे खींच नहीं सकेगी, उसका असर नहीं आयेगा।
हम अपनी तैयारी ऐसी करें जो बाबा के साथ-साथ हम उड़ के जायें। तो आज ही मुझे ये देखना होगा कि कोई बात का, मनुष्य आत्मा की बातों का, मनुष्यों के व्यवहार का कोई भी कारण से उसकी छाया मेरे ऊपर न आये। छाया आई और मेरी रोशनी कम हो गई तो मेरी तैयारी और मुझे आगे करनी होगी। आत्मा बिल्कुल फ्री होकर अपना ऐसा पुरूषार्थ करे जो हम अपने को आज़ाद करते जायें, तो हम उड़ सकेंगे बाबा के साथ।

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