एक अद्भुत रहस्य जो हमने सुना तो है लेकिन उस समय काल से सम्बन्धित घटना को सही रूप में जाना नहीं। कहते हैं कि ब्रह्मा ने सृष्टि रची, परमात्मा शिव के निर्देशन में। मैंने स्वयं इनके मुख्यालय में जाकर देखा है कि कैसे ब्रह्मा(दादा लेखराज ) ने छोटी-छोटी बालिकाओं को तपस्वी बनाकर आने वाली स्वर्णिम दुनिया के योग्य बनाया। ये मैंने अपने अन्तर्मन से जाना और समझा कि ब्रह्मा जी का रहस्य क्या है। प्रस्तुत है – उनसे पूछे गए सवाल पर उन्हीं की राय, उन्हीं के ही शब्दों में।
रिपोर्टर : यहां पर दादा लेखराज कृपलानी को प्रजापिता ब्रह्मा कहा गया है। क्या वो ब्रह्मा है?
संत: ब्रह्मा, अब यहां भी एक थोड़ा-सा जो समझ का फेर है वो बताते हैं आपको। अब देखिए भगवान शिव एक हैं, पूरी सृष्टि के रचयिता हैं। उनके आगे तीन भाग कर दिए गए, क्या- ब्रह्मा, विष्णु और शंकर। आप देखेंगे कि ब्रह्मा भी किसी की तपस्या में लीन है। साथ ही साथ देखिए विष्णु भी किसी ना किसी की तपस्या में लीन है। चाहे वह राम का रूप ले-ले या कृष्ण का रूप ले-ले, भगवान शिव का तप तो वो भी कर रहे हैं। उनकी पूजा कर रहे हैं और अगर आप शंकर को देख रहे तो शंकर भी त्रिशूल हाथ में लिए हुए और बैठे हैं ध्यान में किसी के। तो तीनों किसके ध्यान में बैठे हैं? वो शिव के ध्यान में बैठे हैं। जो सृष्टिकर्ता भी है। उसने अपने कार्य को तीन भागों में बांट दिया। और तीनों को कह दिया कि तुम सृष्टि को बनाओ… ठीक है व प्रजापिता ब्रह्मा कहला गए, पालने वाले विष्णु हुए और संहार कत्र्ता शंकर हो गए। अब आपने पूछा कि इन महाराज ने यानी कि दादा लेखराज कृपलानी जी ने अपने आपको प्रजापिता ब्रह्मा घोषित किया,नहीं। इन्होंने नहीं किया…ना।
यह पुरानी बात है, सन् 1936 में इन्होंने देखा बड़े ध्यान में जब चले गए, बेचैनी हुई और उस ध्यान में इन्होंने प्रलय को देखा। प्रलय में बम फट रहे हैं, लोग आपस में लड़ रहे हैं, मारकाट मची हुई है। यानी कलियुग का इन्होंने आगे आने वाला समय देखा। भाई-भाई को मार रहा है। रिश्ते तार-तार होते चले जा रहे हैं। आयु लोगों की बहुत कम हो गई है यानी सृष्टि का विनाश उन्होंने अपनी खुली आंखों से देखा। कोई गरीब तो थे नहीं, बचपन से ही हीरों के बड़े पारखी थे, हीरों के व्यापारी थे। कलकत्ता तक इनका व्यापार था। उस समय कराची सिंध प्रांत जो आज पाकिस्तान में है वहां ये पैदा हुए थे। 1876 में पैदा हुए थे। 1936 में इनको प्रलय का साक्षात्कार हुआ और वहीं पर साथ ही साथ जब एक बहुत गहन अंधकार होता है, तो एक सूर्योदय की किरण जब निकलती है तभी निकलती है, गहन अंधकार की बात है। भीतर इनके एक साक्षात्कार हुआ… किसका? भगवान शिव का साक्षात्कार किया इन्होंने। शिव ने इन्हें प्रेरणा दी कि बेटा उठ, कुछ कर। नई सृष्टि का सृजन कर। तो इन्होंने अपने साथ नारी शक्ति को लिया। नारी भी क्या छोटी-छोटी बालिकाएं इनके साथ। और क्या बनाया इन्होंने ओम मंडली। ये पहले प्रजापिता ब्रह्माकुमारी नाम नहीं था, पहले ओम मंडली नाम था। ओम का उच्चारण करना, शिव का उच्चारण करना, भजन करना, कीर्तन करना यही इनका कार्य था। और इन्होंने कहा कि चरित्र जो श्रीराम का चरित्र था, जो श्रीकृष्ण का चरित्र था वो वाला चरित्र सब अपनाएंगे। वही गुण अपनाएंगे और इन्होंने एक-एक गुण स-चरित्रता, आचरण शुद्ध होना चाहिए, सभी से प्रेम करना चाहिए, मीठी वाणी बोलनी चाहिए। बस, यह करते-करते, एक-एक गुण डालते-डालते क्योंकि बच्चों में गुण चले जाते हैं। फिर इन्होंने सोचा कि क्या किया जाए इसके बाद? ये छोटी-सी मंडली है, इस मंडली को बड़ा रूप देना है। तो इन्होंने सारा व्यापार अपना कलकत्ता में अपने पार्टनर पर छोड़ दिया। आ गए लौट के, भारत का पार्टीशन हो गया, हिंदुस्तान पाकिस्तान बन गया। अब भारतवर्ष में उन्होंने 1950 में वहां से कुछ बालिकाएं साथ में आई। जिन्हें आज लोग दादियों के नाम से जानते हैं। वो साथ में आ गई, पैसा था उनके पास। क्योंकि हीरों के व्यापारी थे, गरीब नहीं थे। उन्होंने माउण्ट आबू में आके जो आज यहां पर इनका समझिये कि अंतर्राष्ट्रीय हेड क्वार्टर बन चुका है। वहां पर माउण्ट आबू में इन्होंने स्थान लिया और वहीं पे एक विश्व विद्यालय की स्थापना की।