तुम हरेक बच्चे को पुरूषार्थ करना है तख्तनशीन बनने का न कि तख्तनशीन के आगे रहने का। तख्तनशीन तब बनेंगे जब अब समीप बनेंगे। जितना जो समीप होगा उतना समानता में रहेगा। तुम बच्चों के नैनों को कोई देखे तो उनको मुक्ति-जीवनमुक्ति का रास्ता दिखाई दे। ऐसा नयनों में जादू हो। तो आपके नैन कितनी सेवा करेंगे! नैन भी सर्विस करेंगे तो मस्तिष्क भी सर्विस करेगा। मस्तिष्क क्या दिखाता है, आत्माओं को? बाप। आपके मस्तिष्क से बाप का परिचय हो ऐसी सर्विस करनी है। तब समीप सितारे बनेंगे। जैसे साकार में बाप को देखा मस्तक और नैन सर्विस करते थे। मस्तिष्क में ज्योति बिंदु रहता था, नैनों में तेज त्रिमूर्ति के याद का। ऐसे समान बनना है। समान बनने से ही समीप बनेंगे। जब आप स्वयं ऐसी स्थिति में रहेंगे तो माया क्या करेगी, माया स्वयं खत्म हो जायेगी। तुम बच्चों को रेग्यूलर बनना है। बापदादा रेग्यूलर किसको कहते हैं? रेग्यूलर उनको कहा जाता है जो सुबह से लेकर रात तक जो कत्र्तव्य करता है वह श्रीमत के प्रमाण करता है। सब में रेग्यूलर। संकल्प में, वाणी में, कर्म में, चलने में, सोने में, सबमें रेग्यूलर। रेग्यूलर चीज़ अच्छी होती है। जितना जो रेग्यूलर होता है उतना दूसरों की सर्विस कर सकता है। सर्विसएबुल अर्थात् एक संकल्प भी सर्विस के सिवाए न जाए। ऐसे सर्विसएबुल और कोई सबूत बना सकते हैं। सर्विस केवल मुख की ही नहीं लेकिन सर्व कर्मेन्द्रियां सर्विस करने में तत्पर हों। जैसे मुख बिज़ी होता है वैसे मस्तिष्क, नैन सर्विस में बिज़ी हो। सर्व प्रकार की सर्विस कर सर्विस का सबूत निकालना है। एक प्रकार की सर्विस से सबूत नहीं निकलता सिर्फ सराहना करते हैं। चाहिए सबूत, तो सबूत देने के लिए सर्व प्रकार की सर्विस में सदा तत्पर रहना है। सर्विसएबुल जितना होगा वैसा आप समान बनाएगा। फिर बाप समान बनाएगा।