परमात्मा हमेशा एक बात कहते हैं कि अगर तुम एकाग्र होकर एक के साथ सम्बन्ध जोड़ो तो तुम्हारी रूहानियत बढ़ेगी। और सिर्फ परमात्मा के जुडऩे से ही बढ़ेगी। और वो पवित्रता जो होगी वो परमानेंट होगी।
हम सभी एक अच्छा एफर्ट करने वाले हैं, पुरूषार्थ करने वाले हैं। और कई बार मन में ये प्रश्न भी आता है कि पुरूषार्थ लम्बे समय से चलता है लेकिन सभी के साथ हमारा वो सम्बन्ध, वो रिश्ता नहीं जुड़ता या जुड़ पाता है जैसा हम चाहते हैं। तो जैसे ऋषि-मुनि बहुत दूर जंगलों में रहते थे। लेकिन वो दूर से रहते हुए भी सबसे बड़े आराम से जुड़े होते थे। कैसे जुड़े होते थे? कहते थे कि उनकी तरंगे, उनका एक-एक वायब्रेशन हमारे पास पहुंचता है ऐसा सबको अनुभव होता था। तो उन्होंने सिर्फ ब्रह्मचर्य व्रत को धारण नहीं किया साथ ही साथ अपने मन का शुद्धिकरण भी किया, तपस्या की।
ये कई बार का आपका अनुभव होगा, दिखाते भी हैं कि उनके सामने बहुत सारे हिसंक पशु भी बड़े आराम से आकर बैठ जाते थे। क्योंकि उनके मन के अन्दर उनके मन के भावों में सबके प्रेम था, करूणा थी, दया थी। तो जो एक सम्पूर्ण पवित्रता की डेफिनेशन दी जाती है, सम्पूर्ण पवित्रता की परिभाषा सबको सिखाई जाती है उसमें एक चीज़ शामिल होनी ही चाहिए कि क्या सच में मेरे अन्दर के भाव सभी के लिए समान हैं, सभी के लिए बराबर हैं! क्योंकि जब सभी के समान और बराबर होगा तो हरेक आत्मा, हरेक रूह हमसे रूहानियत फील करेगी। तो रूहानियत का आधार हम सबके अन्दर, वो है पवित्रता। उसका बीज है पवित्रता। पवित्रता को सिर्फ शरीर के साथ जोडऩा वो सिर्फ एक संयम का नाम है। लेकिन पवित्रता का गहरा उदाहरण उसके मन के भावों के साथ जुड़ा हुआ है। जैसे परमात्मा हम सबको रोज़ सिखाते हैं कि हम सभी संकल्प और स्वप्न में भी किसी के साथ कोई ऊपर-नीचे का व्यवहार न करें। मतलब कर्म से ब्रह्मचारी, संकल्प से भी ब्रह्मचारी।
अब यहाँ पर ब्रह्मचारी शब्द सही रूप से उस बात की व्याख्या नहीं कर पाता लेकिन इसको परमात्मा दूसरे शब्द में कहते हैं कि जो हम सबके आइडल हैं जिसको हम प्रजापिता ब्रह्मा बाबा कहते हैं, उनके आचरण पर चलना, ब्रह्माचारी होकर रहना ये ब्रह्मचर्य है। हम सबके जीवन का जो आधार होगा वही आधार तो हमको आगे बढ़ायेगा ना! इसीलिए हम सबका जो सम्पर्क है सबसे, वो अलग-अलग है। किसी से परसेन्टेज वाइज बहुत अच्छा है। किसी से परसेन्टेज वाइज बहुत कम है। जैसे किसी के साथ मेरा सौ प्रतिशत गहरा रिश्ता है, किसी के साथ 85 प्रतिशत, किसी के साथ 75 प्रतिशत है। तो उसका आधार क्या है? तो जितना ज्य़ादा हमारे अन्दर एक प्रतिशत बाल के बराबर भी अगर कोई ऐसे भाव न हों तब वो व्यक्ति सम्पूर्ण वायब्रेशन, सम्पूर्ण तरंगें हमसे कैच कर सकता है। और आपको बताते हुए अच्छा भी लगता है इन सभी बातों को कि जब हम सभी ये चीज़ें कर रहे होते हैं ना तो धीरे-धीरे हमारे अन्दर की शांति बढऩी शुरू हो जाती है। अन्दर की शांति का जो आधार है वो भी रूहानियत ही है। वो भी अन्दर के भाव की सच्ची पवित्रता ही है। एक दिन की बात नहीं है ये लगातार करने की बात है।
हम दूर बैठें भी इन बातों से दुआयें कमा सकते हैं। आपको कहीं-कहीं जंगल में नहीं जाना है, किसी के पास नहीं जाना, सिर्फ रूहानियत, सिर्फ अपने भाव बदलने हैं। उसका आधार है, तन, मन से सम्पूर्ण पवित्र। तो मन की पवित्रता ही आज थोड़ी-सी कम है, इसीलिए आज हमारे सम्बन्ध सभी से चाहे डायरेक्टली, चाहे इनडायरेक्टली, चाहे प्रत्यक्ष, चाहे अप्रत्यक्ष, से सही रूप से नहीं जुड़ पा रहे। इसीलिए जो दुआ का खाता है हमारा, जो दुआयें चाहिए उन दुआओं के लिए हमें अलग से प्रयास करना पड़ता है। जैसे हम कभी योग में बैठें तो चलो बहुत अच्छी बात है। बहुत अच्छा अनुभव हो वो भी बहुत अच्छी बात है, लेकिन नैचुरल हो जाये वो हमारे लिए, उससे अच्छा कुछ है ही नहीं। इसलिए सबसे पहले है एक परमात्मा के साथ जो हमारा सम्बन्ध है, सम्बन्ध को आप ऐसे समझ सकते हैं कि कोई भी सम्बन्ध जब हम उसकी तलाश कर रहे थे तो आप सबके अन्दर भी होता है ना कि कोई ऐसा सम्बन्ध हो जिससे मैं बात कहूँ, या कोई बात करूं तो सिर्फ उसी के पास रहे और कहीं न जाये। वो विश्वास, वो अन्दर का भाव, वो रिश्ता हम चाहते हैं और वो सिर्फ परमात्मा के साथ ही हो सकता है। इसलिए परमात्मा हमेशा एक बात कहते हैं कि अगर तुम एकाग्र होकर एक के साथ सम्बन्ध जोड़ो तो तुम्हारी रूहानियत बढ़ेगी। और सिर्फ परमात्मा के जुडऩे से ही बढ़ेगी। और वो पवित्रता जो होगी वो परमानेंट होगी। उससे जो आपका सम्बन्ध किसी से भी जुड़ेगा वो हमेशा से रहेगा, जुड़ेगा। उसमें कोई स्वार्थ नहीं होगा, वो नि:स्वार्थ भाव वाला होगा। और सब उसको एप्रीशिएट भी करेंगे और सब उसको एन्जॉय भी करेंगे। तो चलो आज इस रूहानियत को बढ़ाते हैं और सम्पूर्ण पवित्रता को समझकर उसको धारण करते हैं।