अभिमान… सब बुराइयों का मूल
प्रत्यक्षता केवल कल्प वृक्ष या त्रिमृर्ति समझाने से नहीं होगी। यह तो पहला लेसन है- शिवबाबा का परिचय देने का। लेकिन दूसरे को यह महसूस हो कि हमने जो योग सीखा है उससे हमारी लाइफ में क्या परिवर्तन आया है? जैसे किसी को विजि़टिंग कार्ड देते हैं, उसमें लिखा होता है कि क्या डिग्री प्राप्त की है, क्या ऑक्यूपेशन है, वैसे आपका चेहरा या पर्सनैलिटी ही विजि़टिंग कार्ड हो।
पिछले अंक में आपने पढ़ा कि बाबा कहते हैं यहाँ सेवा का ताज पहनेगा, वहाँ राज्य का ताज पहनेगा। लेकिन सेवा के ताज के साथ अगर लाइट का ताज नहीं होगा, तपस्या का ताज नहीं होगा, त्याग का ताज नहीं होगा तो वहाँ राज्य का ताज नहीं मिलेगा। इसलिए त्याग पर ध्यान देने की बहुत ज़रूरत है। अब आगे पढ़ेंगे…
इसी प्रकार से तपस्या भी चाहिए। चलते-चलते हमारा जीवन ऐसा न हो जाये, जो हम समझें कि हमने तो बहुत योग लगा लिया है। कलियुग में मनुष्य का स्वभाव बन गया है कि कोई भी काम बहुत कर लेने के बाद वह ऊब से जाते हैं, बोर हो जाते हैं। जो व्यक्ति मस्ती में झूम रहा होता है उसकी चलन से, नैनों से, उसकी वाचा से लगता है कि वह व्यक्ति किस मस्ती में है और जो तपस्वी होगा उसके चेहरे से, नयनों से लगेगा। बाबा की याद नयनों में समाई होगी तो जो नयन होंगे, उसकी जो मुस्कुराहट होगी, उसके चेहरे पर जो झलक होगी, उसके मुख से जो वचन निकलेंगे, जिस प्रकार वे रॉयल-वे में चलेंगे, उससे शिवबाबा की प्रत्यक्षता होगी। प्रत्यक्षता केवल कल्प वृक्ष या त्रिमृर्ति समझाने से नहीं होगी। यह तो पहला लेसन है- शिवबाबा का परिचय देने का। लेकिन दूसरे को यह महसूस हो कि हमने जो योग सीखा है उससे हमारी लाइफ में क्या परिवर्तन आया है? जैसे किसी को विजि़टिंग कार्ड देते हैं, उसमें लिखा होता है कि क्या डिग्री प्राप्त की है, क्या ऑक्यूपेशन है, वैसे आपका चेहरा या पर्सनैलिटी ही विजि़टिंग कार्ड हो। आप बोलें, न बोलें, आपका चेहरा बोले। जैसे बाबा की बायोग्राफी में हम बताते हैं कि सैंकड़ों-हज़ारों व्यक्ति जा रहे हों, बाबा भी उनके बीच में जा रहे हों तो लोगों का ध्यान जायेगा कि ये व्यक्ति विशेष हैं। जो भी व्यक्ति बाबा से या मम्मा से मिला, बाबा-मम्मा उन्हें युनिवर्सल लगे। बाबा-मम्मा के चित्र को ही देखकर कइयों का जीवन बदल गया। तो ये है तपस्या का फल। जितना हम तपस्या करेंगे, साधना करेंगे, उतना हमारी सेवा में वह बल आयेगा। फिर जो हम बोलेंगे, नेत्रों से हम निहाल करेंगे, बाबा को याद करके लोगों को आन्तरिक सुख देंगे, सेवा का सुख देंगे, सेवा का जो अन्तिम फल होगा, वह ये होगा।
जैसे डॉक्टर इंजेक्शन लगाता है तो पहले नीडल को उबलते पानी मे साफ करता है तो जब योग में हम बैठते हैं, योगयुक्त होकर किसी को ज्ञान देना शुरू करते हैं तो एक प्रकार से अपनी आत्मिक सफाई हो जाती है। अगर उस नीडल को स्टरलाइज्ड न किया जाये, ऐसे ही इंजेक्शन लगा दिया जाये तो वह नुकसानदायक भी हो सकती है। उसमें इन्फेक्शन भी हो सकता है। इसलिए बाबा बोलते थे कि किसी को योगयुक्त होकर नहीं समझायेंगे तो आपके संस्कारों का दूसरों को इन्फेक्शन हो जायेगा।
तो बाबा का हमेशा यह कहना रहा कि हमेशा जब कोई बाबा का परिचय लेने आता है, योग सीखने आता है तो पहले दो मिनट स्वयं बाबा की याद में बैठो, आत्मिक स्थिति में बैठो। पहले स्वयं सोचो कि अब मैं सीट पर सेट हूँ, अब मेरी स्थिति अच्छी है तब बोलना शुरू करो। केवल वाचक ज्ञानी या पण्डित बनकर अगर किसी को समझाआगे तो उसका फल नहीं निकलेगा। अगर आप पहले स्वयं आत्मिक स्वरूप में स्थित होकर, शिव बाबा को याद करके, अपनी उस आनन्द की स्थिति में स्थित होकर बाबा की महिमा करेंगे तो उसके मन को वह लगेगी, उसको टच होगा, बाबा भी आपकी मदद करेगा, उस आत्मा का कल्याण हो जायेगा।