आप सब जानते हैं कि आज दुनिया में दु:ख, अशान्ति बढ़ रही है, क्यों बढ़ रही है? कारण तो हरेक के अपने-अपने होंगे लेकिन टोटली अगर हम देखें तो सभी का सम्बन्ध परमात्मा पिता से टूटा हुआ है। ऐसे पिता को हम पहचानकर याद करें, योग लगायें, तो दु:ख, अशान्ति से छूट सकते हैं।
सभी यह तो समझते ही हैं कि पवित्रता बहुत अच्छी चीज़ है। अपवित्रता दु:ख का कारण है और पवित्रता सुख का कारण है। तो हर एक क्या पसंद करता है, सुख या दु:ख? सुख ही पसंद करता है ना! यूँ तो सुखी रहते भी होंगे, लेकिन सदा सुखी रहें, कोई भी बातें आये लेकिन मेरे सुख को कोई ले जा नहीं सकता क्योंकि हम बच्चे किसके हैं? हम परमात्मा को पिता कहते हैं, तो हम उनके बच्चे हैं। लेकिन आज उस बाप को भूलने के कारण ही दु:ख आता है। मनुष्य चाहता तो यही है कि हम सदा सुखी रहें और सहज ते सहज साधन है परमात्मा की याद मन में हो, बस, क्योंकि तन से तो भिन्न-भिन्न कार्य करना पड़ता है, मनुष्य जीवन है, तो जीवन के लिए कर्म तो करना ही पड़ता है। लेकिन हमारी मूल चीज़ है, जीवन की विशेषता – सुख और शांति। वो हमारी रहे, उसके रहने के लिए प्रयत्न तो सब करते हैं लेकिन हमारे जन्म-जन्म के पिता, अविनाशी सुख दाता, शान्ति दाता हैं, उसको हम भूलते क्यों हैं? लौकिक पिता की याद सूक्ष्म में होती ही है। ऐसे ही परमात्मा जो हमारा सदा का पिता है, अविनाशी है, तो अविनाशी पिता को भूलना नहीं चाहिए लेकिन भूल जाता है इसलिए बीच-बीच में परमात्मा मेरा पिता है, यह स्मृति पक्का करो तो दु:ख के टाइम उसकी याद आने से कभी टेन्शन व गुस्सा नहीं आयेगा। परमात्मा तो ऐसे मददगार हैं, जिस समय आपको जो चाहिए उस समय हाजि़र हो जाता है क्योंकि हम उनके बच्चे हैं और वो हमारा पिता है। पिता के नाते से भी हमारा हक लगता है, पिता के पास जो है वो ज़रूर बच्चे को देना ही पड़ेगा। इसीलिए ऐसे पिता को याद करना, हमारा प्यार भी है और फर्ज भी।