देखो… आ गया वो तारनहार…परमात्मा शिव निराकार

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हम सभी विद्वान हैं, पढ़े-लिखे हैं, समझदार हैं, तो निश्चित रूप से बातों को समझ लेते हैं लेकिन हमारा उसमें अपना मत ज़रूर होता है। हम कभी उदासीन या बिल्कुल बराबर तरीके से, समान तरीके से उस बात को नहीं समझते हैं। हम सोचते हैं कि ये मेरा सोचना है, ये मेरा अनुभव है ऐसा कहते हैं लेकिन जो भी धर्म, शास्त्र, पुराण, उपनिषद आदि लिखे गए परमात्मा के बारे में, जिसमें परिचय भी दिया गया। उस परिचय को अगर हम उसी हिसाब से समझने का प्रयास करें तो निश्चित रूप से वो परिचय सही अर्थ से निकल कर सामने आयेगा और कुछ कह जायेगा। जिसकी हम तलाश कर रहे हैं कि परमात्मा कौन है, वो कैसा है, कलियुग क्या है, उसका अंत, उसके अन्दर की भावना क्या है, ये सारी बातें समाहित हो जायेंगी।

गुरू ग्रंथ साहब ने की निराकार की पवित्र महिमा : गुरू ग्रन्थ साहब ने देखो क्या कहा, सिक्खों केपवित्र ग्रंथ गुरू ग्रंथ साहब के जपजी साहब ने एक बहुत प्रसिद्ध पंक्ति है, जो परमात्मा के होने का अहसास कराती है। उसमें लिखा है- एकामाई, जगत विआई, तीन चेले परवान, इक संसारी, इक भंडारी, इक लाये दिवान अर्थात् एक ईश्वर को माँ की उपाधि दी गई। एकामाई, एक माँ से तीन चेले जिनको कहा जाता सृष्टि का निर्माण करना, उसकी पालना करना, उसका विनाश करना। उसी को हिन्दु धर्म में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का टाइटल मिलता है, संदर्भ मिलता है। तो आप देखो कि अन्य धर्म भी परमात्मा को एक माँ के रूप में देख रहे हैं, एक ईश्वर के रूप में देख रहे हैं, इसीलिए उसमें सिक्खों के दसवें गुरू, गुरू गोविन्द सिंह ने बोला है कि दे बर मोहे शिवा ईहे, शुभ कर्मन ते कभुं न टरूं। तो वहाँ भी शिव का नाम लेते हैं। तो परमात्मा निराकार ने ज़रूर यहाँ आकर वो कार्य तो किया होगा ना, तभी तो नाम लिया जा रहा है। चाहे वो कोई भी संदर्भ क्यों न हो। तो हर धर्म बोल रहा है कि परमात्मा निराकार, ज्योतिबिन्दु ईश्वर को एक माना। एक ईश्वर माना।

क्या कह गये निराकार के बारे में गोस्वामी तुलसीदास : तुलसीदास जी कहते कि ‘बिनु पग चलै सुनै बिनु काना। कर बिन कर्म करै विधि नाना’। ‘आनन रहित सकल रस भोगी, बिनु बानी वक्ता बड़ जोगी’। परमात्मा का वर्णन किया कि पैर नहीं फिर भी चलता है, कान नहीं है फिर भी सुनता है, आनन अर्थात् जिसकी इन्द्रियां नहीं हैं, लेकिन सारे रसों का रसास्वादन करता है, और वाणी नहीं है फिर भी सबसे बड़ा स्पीकर है। इतना सुन्दर वक्ता है। तो न हाथ है, न पैर हैं, न कान हैं, न मुख है, तो किसका वर्णन किया स्वामी जी ने? उस निराकार परमात्मा का वर्णन किया।
कलियुग की मनोदशा का अंतिम वर्णन उत्तर कांड में : एक लाइन आती है कि ‘कलिकाल बिहाल किए मनुजा, नहिं मानत कोई अनुजा-तनुजा’ अर्थात् जब कलियुग का अंत होगा, कलियुग का समय आयेगा उस समय मनुष्य की स्थिति इतनी बेहाल होगी कि वो बहू और बेटियों के अन्दर भी अन्तर नहीं कर पायेगा। बेटी, बहू, बहन को नहीं पहचान पायेगा। उस समय परमात्मा का दिव्य अवतरण होगा। तो ये सारे धर्म, शास्त्र एक ही बात बोल रहे हैं कि परमात्मा ऐसे समय में आयेगा। क्या आपको नहीं लगता है कि ये वो समय है! तो अपनी बुद्धि और अपनी शक्ति को थोड़ा-सा अगर हम प्रयोग करेंगे तो निश्चित रूप से हम जान पायेंगे कि शायद ये वही समय है।
सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच:।।

सर्वधर्मों के लिए परमात्मा ईश्वर एक है। गीता के अध्याय 18, श्लोक 66 में परमात्मा ने कहा है कि साकार मनुष्य जगत के सर्व धर्मों को परित्याग कर मुझ एक ही परमात्मा ईश्वर की शरण में आओ। तब मैं परमात्मा तुम आत्मा को सर्व पापों से मुक्त करूंगा, तू शोक मत कर। तो ये भी परमात्मा ने बोला है कि सर्व धर्मों का परमात्मा सिर्फ मैं हूँ, निराकार ज्योतिबिन्दु स्वरूप हूँ। और यही परमात्मा हमसे आह्वान भी कर रहे हैं।

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