समय है… फरिश्ते बन विचरण करें…

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समय के साथ बहुत कुछ बदला हुआ अब स्वीकार करना ही पड़ेगा। और लोगों ने स्वीकार कर भी लिया है। मनुष्य के जीवन में कुछ चीज़ें ऐसी उतर गई हैं कि वह विरोध कर ही नहीं रहा। जैसे- शराब, भ्रष्टाचार, लीव इन रिलेशनशिप, हिंसा, बीमारी के इलाज के नाम पर लूट। डॉक्टर जब पर्चा लिखता है तो कभी-कभी तो लगता है कि ये सब गलत है, पर सब झेल रहे हैं। कुल मिलाकर कहें तो बहुत कुछ गलत धीरे-धीरे सही मान लिया गया। ऐसे में निजी रूप से अपने चरित्र को बचाना चाहिए। आज हम हैं, कल हम भी नहीं रहेंगे। हमारी राख पर कितने ही लोग गुज़र जायेंगे। हमारी चिता बुझेगी, उससे पहले दूसरे मुर्दे तैयार हो जायेंगे। फिर छोड़कर क्या जायेंगे! विश्वास कीजिए, छूटेगा तो सिर्फ चरित्र। सद्चरित्र से किये हुए कार्य याद किये जायेंगे। हालांकि कृत्य तो बुरे भी याद किये जाते हैं, पर वे नीचे संसार में ही स्मरण रहेंगे। यदि पीछे अच्छे कार्य छोड़ गये तो संसार के लोगों को तो याद रहेंगे ही, संसार बनाने वाला भी याद रखेगा।
जबकि हम सभी को मालूम है कि हमें एक दिन जाना है। हम बहुत भाग्यशाली हैं कि हमें कैसे जाना है, ये ज्ञान का प्रकाश व ज्ञान देने वाला दाता भी हमारे साथ है। इस समय पर हमारा दायित्व है कि हम संसार में ऐसे रहें जैसे कि फरिश्ते। फरिश्ते की मुख्यत: क्वालिटीज़ हैं कि वे स्वयं हल्के होंगे व उनके संपर्क में आने वालों को भी हल्का कर देंगे। माना कि वे दूसरों को एक तरह से देते हैं। जो आज संसार की हालत है उसमें उनका कृत्य देने का होगा। दूसरा, वे परमात्मा का संदेश भी देंगे व उनके द्वारा सौंपे हुए कार्य को निष्ठापूर्वक करेंगे। उन्हें कभी भी मान, अपमान, अभिमान, निंदा, स्तुति, घृणा, नफरत, ईष्र्या स्पर्श भी नहीं करेंगी। वे जैसे सिर्फ कठपुतली की तरह ही इस धरा पर हैं, नचाने वाला नचा रहा है। कार्य पूरा हुआ और वे डिटैच। शरीर में रहेंगे भी ऐसे जैसे कि शरीर रूपी कमरे में प्रवेश करके कार्य किया और उपराम। वे सदा रूहानी रूहाब में रहेंगे। अतीन्द्रिय सुख की अनुभूतियों में डूबे रहेंगे। कछुए की तरह परमात्मा द्वारा दिए हुए कार्य को किया और सर्व कर्मेन्द्रियों को समेट लिया। न उसके प्रभाव में और न आकर्षण में आएंगे। क्रमैं और मेरापनञ्ज के जम्र्स उनको छुएंगे भी नहीं। निमित्तपन का भान भी उन्हें नहीं रहेगा। कहते हैं ना, जैसे कि कर्मातीत। कर्म के लेप-छेप से परे। समय की मांग है, ऐसा फरिश्ता जो दूसरों का दु:ख, कष्ट हर ले और सत्य पथ पर चलने का मार्ग दिखाकर सभी को सुकून का एहसास कराए। तो हम सभी ऐसे कार्य के लिए ही यहाँ हैं। बेशक यहाँ पर चुनौतियां भी हैं, तो अवसर भी। क्योंकि हमारे साथ सबसे बड़ी उपलब्धि है स्वयं परमात्मा का साथ। जो दुनिया की कल्पना से भी परे है। बस इस अवसर का लाभ लेकर अपनी तकदीर की लकीर को जितना चाहे लम्बी खींच लें।
वर्तमान समय हमारे मन की शक्तियों को उस पर फोकस कर दें जिससे कि मन तृप्त हो जाये। कई बार होता है कि ये होना चाहिए, ये करना चाहिए, ऐसा सोचना चाहिए, पर समय पर जैसा होना चाहिए वैसा नहीं होता, अब ये शिकायत न रहे। लेकिन जो होना चाहिए वही हो, वैसा ही हो और उसी समय पर हो, ये आत्मविश्वास एवं संतुष्टता हमें महसूस होनी चाहिए। क्योंकि सर्वशक्तिवान अपना सर्वस्व लुटा रहा है, तो हम उसका सम्पूर्ण लाभ लें। तपस्या हमें यही करनी है। हमारे मन की शक्तियां शत् प्रतिशत उस श्रेष्ठ कार्य पर ही केन्द्रित हों। कहीं पर भी भटकाव, अटकाव व व्यर्थ में क्षीण न होती हो, ये हमें ध्यान रखना है। इसी देह में हमें फरिश्ता बनकर रहना है और अगले कदम में देवता के रूप में इस धरा पर आना है। इसी को ही तो कहते हैं, बाप और वर्से को याद कर, अतीन्द्रिय सुख में रह उड़ते रहें। ऐसे अपने को तपाकर चौबीस कैरेट सोने की तरह स्थिति बनाकर यहां विचरण करना है। है ना! ऐसा कत्र्तव्य करें जो जाने के बाद भी हमारे कत्र्तव्य जि़ंदा रहें, जो अनेकों को राह दिखाकर उनकी जि़न्दगी में सुकून लाये। ये सब तब होगा, जिनके बारे में आज विचार किया, जब वही लक्षण जीवन में होंगे। ऐसे सद्जीवन की सुगंध सदियों तक इस धरती पर बिखरती रहेगी। तो आप अपनी मनोस्थिति को ऐसी बनाने के लिए अपने आप को तैयार करें। ब्राह्मण तो हम हैं ही, अब सो फरिश्ता सो देवता बनना है। बस अब ये परमात्मा के महावाक्य कानों में गूंजते रहें और नज़ारे दिखते रहें।

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