निरंतर याद में न रहने का कारण

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ईश्वरीय नियमों का उल्लंघन करना… जब हम ईश्वरीय नियमों का उल्लंघन करते हैं तो शिव बाबा की याद भूल जाती है। शिव बाबा को भूलने से अन्य के प्रति घृणा आनी शुरू होती है। मानों किसी ने आपका काम बिगाड़ दिया, आपके रास्ते में उसने रूकावट डाल दी, किसी के सामने आपकी इनसल्ट कर दी अथवा कोई ऐसा नुकसान पहुँचा दिया तो आपको बार-बार उस व्यक्ति के प्रति रोष आता रहेगा, उसकी ही याद आती रहेगी और परमात्मा की याद से कोसों दूर चले जायेंगे। जिसके प्रति घृणा हो, द्वेष हो, वैर-विरोध हो वो भी ज्य़ादा याद आयेगा। जैसे किसी के प्रति आप की ज्य़ादा प्रीत होती है तो वो बहुत याद आयेगा और जिसके प्रति नफरत और ईष्र्या, द्वेष हो तो वो भी बहुत याद आयेगा। आमतौर पर व्यक्ति को ये दो ही याद आते हैं बाकी सब भूल जाते हैं।
बाबा कहते हैं, तुम्हारे दुश्मन कोई व्यक्ति नहीं है। जब तक अपने मन में यह नहीं सोचा है कि हमारे दुश्मन कोई नहीं है। कोई भी इन्सान हमारा दुश्मन नहीं है। अगर हमने कोई भी गलत अथवा उल्टा काम किया ही नहीं है तो हमारा कोई कुछ बिगाड़ ही नहीं सकता। किसी भी परिस्थिति में ठीक हमारे अच्छे कर्म कोई न कोई ऐसा रास्ता निकाल देंगे जिससे हम सुरक्षित निकल आयेंगे। हमारे नुकसान के लिए कोई भी निमित्त बना हो लेकिन असल में उस नुकसान का कारण है हमारे बुरे कर्म। इसलिए हमारे दुश्मन हैं बुराई, विकार। निमित्त कोई भी बन सकता है। आज वह बना है, कल दूसरे प्रकार के नुकसान के लिए और कोई बन सकता है। इसलिए हमारे अन्दर सबके प्रति शुभ-भावना और शुुभ कामना होनी चाहिए। हमें यही सोचना चाहिए कि हरेक का भला हो, हरेक का अच्छा हो। कर भला तो हो भला। यह हमारे जीवन का बुनियादी उसूल होना चाहिए। हम यह दृढ़ निश्चय करें कि हमें किसी के बारे में बुरा सोचना ही नहीं है, स्वप्न मात्र में भी बुरा नहीं सोचना है। बुरा सोचना माना दु:ख देना। कई सोचते हैं कि इसको छुरा मार दूँ। अब उसने बुरा सोचा, उसके पास उस समय छुरा नहीं है, और आदमी भी बैठे हैं इसलिए उसने मारा नहीं। वह मजबूर है। अगर उसके पास छुरा होता, वह जिसको मारना चाहता था वो अकेला होता और मारकर भाग निकलने के लिए साधन भी होता तो वह छुरा मार देता। इस प्रकार कोई आदमी पहले बुरा सोचता है, बाद में बुरा करता है। यह जो बुरा सोचना है, यही बुराई की जड़ है। किसी को दु:ख देने की बात तो दूर रह गयी लेकिन किसी को दु:ख मिले अथवा हम उसको दु:ख दें- ऐसा सोचना भी बहुत बुरा है। ऐसा सोचना ही नहीं है। जब हमारी ऐसी शुभ-भावना, शुभ कामना वाली वृत्ति होगी तब हमारी याद निरन्तर होगी।
जिसके प्रति घृणा और दुश्मनी होगी उसकी याद आती है, वैसे ही जिसके प्रति मोह होता है उसकी भी याद आती है। इसलिए ही बाबा कहते हैं, नष्टोमोहा स्मृतिर्लब्धा। यह हमारे पेपर का आखिरी प्रश्न है, इसमें हमें पास होना है। इसलिए नष्टोमोहा के साथ-साथ नष्टोघृणा भी हो जायें तब स्मृतिर्लब्धा सहज हो जायेंगे। भले ही आप में किसी के प्रति मोह नहीं है लेकिन उसके प्रति घृणा पैदा हो गयी तो जोश आ जायेगा, रोष आ जायेगा। जब भी उस व्यक्ति को आप देखेंगे, उसकी याद आयेगी तो आप में उबाल आ जायेगा। शिव बाबा की याद के बदले उस व्यक्ति की याद आ जायेगी। इससे कितना नुकसान हो गया! अगर उस व्यक्ति के बदले हमने शिव बाबा को याद किया होता तो हमारा भविष्य कितना ऊंचा बनता! कितनी बड़ी प्राप्ति होती! हमारे विकर्म विनाश होते!
अगर आप उस व्यक्ति को दुष्ट कहते हो, खराब कहते हो तो उसको क्यों याद करते हो? जब आप उसको अच्छा ही नहीं समझते हो, तो बुरे को क्यों याद करते हो? जब उस व्यक्ति को इन स्थूल आँखों से देखना ही नहीं चाहते हो तो मन की आँखों से क्यों देखते हो? किसी को बुरा समझ कर उसको याद करना और शिव बाबा को भूलना – यह बहुत बड़ा पाप करना है, यह जन्म-जन्मान्तर का शिव बाबा का वर्सा गंवाना है। यह बात भले ही बड़ी छोटी-सी है लेकिन बहुत भारी है। जिस प्रकार एक कमरे में अथाह धन-सम्पत्ति रखी हुई हो, कीमती चीज़ हो, करोड़ों नोटों की गड्डियां रखी हुई हों तथा किसी ने वहाँ एक जलती हुई सिगरेट का टुकड़ा फेंक दिया और उससे उस कमरे में आग लग गयी हो तो कितना नुकसान हो जाता है! इसी प्रकार घृणा ऐसी चिंगारी है जो हमारे ज्ञान को भस्म कर देती है। जिस प्रकार, बाबा की याद विकर्मों को दग्ध करती है वैसे ही घृणा और द्वेष, सुकर्म और ज्ञान को भूसा बना कर उसे भस्मीभूत कर देते हैं। इसलिए नष्टोमोहा के साथ नष्टोघृणा भी होना चाहिए तब हम स्मृतिर्लब्धा बन सकेंगे।

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