कितने न भाग्यशाली हम जो परमात्म श्रेष्ठ मत को समझ पाये…!

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बाबा की श्रीमत को जब हम मानते हैं स्वीकार करते हैं, मानना सिर्फ बुद्धि तक नहीं.. सुनना, समझना, स्वीकार करना माना मानना पर सबसे आगे का महत्त्वपूर्ण कदम है- उस अनुसार चलना।

बाबा(परमात्मा) हमें कहते हैं कि जो कुछ पढ़ा है, सुना है वो भूल जाओ। मैं जो कहता हूँ, मैं जो सुनाता हूँ वही सुनो। क्यों बाबा हमें ऐसे कहते हैं क्योंकि केवल परमात्मा ही सत्य है और केवल परमात्मा ही आकर सारे सत्य हमारे सामने स्पष्ट करते हैं। जीवन के अनेक पहलू हैं और हर पहलू के सम्बन्ध में दुनिया वालों के सामने चाहे आत्मा के बारे में हो, परमात्मा के बारे में हो, लोक-परलोक, जन्म-मरण, सुख-दु:ख, कर्म-कर्मफल, पुरुषार्थ-प्रालब्ध, स्वर्ग-नर्क, जितनी भी बातें हैं उनके सामने अनेक मत हैं। इसलिए बाबा कहते हैं कि भटक रहे हैं, धक्के खाते हैं हमें कितना बाबा का शुक्रिया मानना चाहिए और अपने आप पर भी नाज़ होना चाहिए कि हमने येे समय, संगम का कल्याणकारी समय पहचान लिया।
जब भगवान आकर सत्य ज्ञान देते हैं, श्रीमत देते हैं, सद्बुद्धि देते हैं इसलिए बाबा का आना, हमें ज्ञान देना, श्रीमत देना यही बाबा की सबसे बड़ी कृपा हम बच्चों पर है। और हम बच्चों को इसलिए भी अपने ऊपर नाज़ होना चाहिए कि भगवान की श्रीमत सबको सुनाई जा रही है लेकिन हम वो विशेष आत्मायें हैं, ड्रामा की हीरो पार्टधारी आत्मायें हैं, भाग्यशाली आत्मायें हैं जिन्होंने भगवान की श्रेष्ठ मत को परख लिया और अपने जीवन के लिए स्वीकार कर लिया। ये कुछ दिनों के लिए नहीं, कुछ घटना के सम्बन्ध में नहीं, कुछ प्रॉब्लम में हैं इसलिए नहीं लेकिन बाबा सत्य है, उनकी श्रीमत सत्य है, उसपर चलने में हमारा कल्याण है ये बात समझकर हमने उनको जीवन के लिए स्वीकार कर लिया है।
तो बाबा स्वयं निराकार है लेकिन उनका प्रत्यक्ष रूप श्रीमत के रूप में हमारे सामने है, मुरली(ज्ञान) के रूप में हमारे सामने है क्योंकि मुरली के द्वारा हमें स्पष्ट श्रीमत का ज्ञान मिलता है इसलिए शास्त्रों में, भक्ति में भी मुरली का इतना जादू और महत्त्व दिखाया गया भागवत के अन्दर, क्योंकि भगवान जब प्रैक्टिकल संसार परिवर्तन का कार्य करने आते हैं तो वो हम साधारण मनुष्य आत्मायें जिसका गोप-गोपी के रूप में गायन है उनके जीवन का परिवर्तन श्रीमत, मुरली के द्वारा करते हैं इसलिए हमारे जीवन में मुरली का विशेष महत्त्व है। क्योंकि जितनी गहराई से हम मुरली सुनते हैं, पढ़ते हैं, समझते हैं, उतना सहज रूप से हम उनको फॉलो करते हैं, तो बाबा का बनना या बाबा का हाथ पकडऩा माना श्रीमत को मानना। और बाबा की श्रीमत को जब हम मानते हैं स्वीकार करते हैं, मानना सिर्फ बुद्धि तक नहीं.. सुनना, समझना, स्वीकार करना माना मानना पर सबसे आगे का महत्त्वपूर्ण कदम है- उस अनुसार चलना। क्योंकि ड्रामा के अन्दर ये सिद्धांत है, ये विधि है बाबा हमें जो कहेंगे, हमें बतायेंगे, समझायेंगे लेकिन हम अनुसार चलेंगे तो प्राप्ति का अनुभव करेंगे।
ड्रामा का नियम ये नहीं है कि जैसा सोचना वैसा पाना, जैसा करना वैसा पाना। इसलिए श्रीमत बुद्धि तक सीमित न रहे कर्म में आयेे, आचरण में आये, नित्य जीवन में धारण हो तब कहा जायेगा कि प्रैक्टिकल में बाबा का हाथ पकड़ा है। इसलिए बाबा कहते हैं कि बाबा से सच्चा प्यार है तो उस प्यार का प्रमाण है कि बाबा जो कहते हैं वो करना, इसलिए बाबा कहते हैं कि मुरली से प्यार माना मुरलीधर से प्यार। अगर मैं किसी से कहूँ कि मुझे आपसे बहुत प्यार है लेकिन जो आप कहेंगे वो मैं मानूंगी नहीं। तो उसको प्यार थोड़े कहा जायेगा! वो शब्दों का प्यार हो गया, वो दिखावे का प्यार हो गया सिर्फ भावना हो गई लेकिन प्रैक्टिकल नहीं। बाबा से प्यार माना जो बाबा कहते हैं उस अनुसार चलना।

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