मुख पृष्ठब्र. कु. सूर्यमन की बातें - राजयोगी ब्र.कु. सूरज भाई

मन की बातें – राजयोगी ब्र.कु. सूरज भाई

प्रश्न : क्या एक कुमारी के लिए ज़रूरी है कि वो समर्पित होकर ही सेवा करे? क्या अपने परिवार के बीच रहकर सेवाएं नहीं की जा सकती? भाग्य नहीं बनाया जा सकता?
उत्तर : सब किया जा सकता है। कुछ बहनें समर्पित हो जाती हैं। ये वो आत्माएं हैं जिन्होंने भक्ति में भगवान को कहा है कि जब आप इस धरा पर आओगे तो हम आप पर अर्पित होंगे। तो वो रह नहीं सकती बिना अर्पित हुए। उनका वायदा है भगवान से। अब भगवान भी खींचने लगता है उन्हें। और उनकी अंतरात्मा भी उन्हें बार-बार कहेगी समर्पित हो जाओ। बाकी घर में रहकर भी सेवाएं की जा सकती हैं। बहुत कन्यायें कर रही हैं। जॉब में रहकर भी सेवाएं की जा सकती हैं। लेकिन जॉब के लिए बस यही है कि बाहर गन्दा कलियुगी माहौल है। अगर आप अपने को बहुत प्रोटेक्ट करना जानती हैं, अपने को बहुत पॉवरफुल बना लेती हैं तो उसमें भी कोई दिक्कत नहीं है।

प्रश्न : शादी न करने पर मदर-फादर बहुत बुरा कहते हैं। समाज भी बहुत बुरा कहता है, अपमानित करता है। जहाँ पर हम जॉब करते हैं वहाँ पर भी लोग टॉन्ट करते हैं तो ऐसी स्थिति को कैसे हैंडल करें?
उत्तर : ये सब होता है, क्योंकि उनके पास ज्ञान नहीं है। उनको पवित्रता का महत्व नहीं पता है। प्युरिटी मनुष्य की शक्ति है। प्युरिटी मनुष्य की एक ब्यूटी और पर्सनैलिटी है। ऐसे जिनको पता नहीं है तो वो तो कहेंगे ही लेकिन इसको सभी बहनें समझ लें, अगर आप देवी बन जाएं तो सारा संसार आपको मान देगा। आपको ये बाबा का महावाक्य नहीं भूलना है। जो बच्चे स्वमान में रहते हैं। सम्मान उनके पीछे परछाई की तरह आता है। ऐसी बहुत सारी कन्यायें हैं जिनकी स्थिति बहुत श्रेष्ठ रही है। परिवार को वो ज्ञान में ले आई, कहना नहीं पड़ा। ज्ञान में नहीं भी चले लेकिन लडक़ी को छुट्टी दी। और कई तो कन्यायें बताती हैं कि हमारे माँ-बाप ने कहा कि तुम तो हमारे घर में देवी हो। हमारे घर की शान हो। हम तुम्हें नहीं कहेंगे कि तुम शादी करो। तुम्हारी जैसी इच्छा है वैसे रहो। ये अपनी स्थिति पर डिपैंड करता है। और ये सबसे अच्छी स्थिति है। इससे अच्छा और क्या हो सकता है।

प्रश्न : मैं और मेरे पैरेंट्स ज्ञान में हैं और मेरे भाई-भाभी नहीं हैं। मुझे पता है कि वे भविष्य में पैरेंट्स का ध्यान भी नहीं रखेंगे, तो क्या मुझे पैरेंट्स के पास रहकर ही पुरूषार्थ करना चाहिए ताकि उनकी देखभाल भी हो जाए, या मैं समर्पित हो जाऊं?
उत्तर : अगर इनके पैरेंट्स इनके सहयोगी हैं तो इनका परम कत्र्तव्य है कि पैरेंट्स को समय दें और थोड़ा-थोड़ा सेवाओं में भी लगें। अगर भाई-भाभी पैरेंट्स का ध्यान नहीं देंगे तो जैसा आजकल प्राय: होता है तो ये इनका परम कर्तव्य है कि मन से शिवबाबा को अपना जीवन समर्पित कर दें। और देखिए ये कर्म की सूक्ष्म गति है, वो माँ-बाप की सेवा करे तो वो ये समझ लें कि ये भी परमात्म सेवा है। अर्पित कर दें बाबा को। बस, सारी जो सेवाएं हैं यज्ञ सेवा में गिनती हो जाएंगी।
प्रश्न : जब भी मैं बाहर जाती हूँ तो मुझे शुद्ध भोजन की समस्या होती है। ऐसे में क्या मैं बाहर का हल्का भोजन जो बिना लहसून-प्याज का होता है, वो ले सकती हूँ? क्योंकि बाहर जाकर भोजन बनाना संभव नहीं हो सकता।
उत्तर : बिल्कुल ऐसा किया जा सकता है। सात्विक भोजन लें और उसको दृष्टि देकर सात बार संकल्प करें मैं परम पवित्र आत्मा हूँ बस, फिर भोजन स्वीकार करें। क्योंकि कईयों के काम ऐसे होते हैं जो भोजन नहीं बना सकते। तो इससे इज़ी हो जायेगा।

प्रश्न : आज दुनिया बहुत मॉडर्न हो गई, मैं बहुत छोटी हूँ, जब बाहर जाते हैं जो हमारे साथी हैं हम उनके साथ खाना-पीना नहीं करते। या उनके साथ पिक्चर नहीं देखते आदि-आदि। तो जो फ्रेंड्स हैं वो हमें अन्डर एस्टिमेट करते हैं और ऐसे में हम लॉ फील करते हैं, तो ऐसे में क्या किया जाए?
उत्तर : ये बात है लेकिन अगर आप अपने अच्छे स्वमान में रहेंगी तो वो आपको फॉलो करेंगे। कोई एप्रीशिएट करेगी कि इसका जीवन देखो, चेहरे पर खुशी और संतोष झलकना चाहिए। आपके चेहरे पर रूहानियत झलकनी चाहिए। तो फिर आपको ऐसा फील नहीं होगा। बाकी आप अपने में ले आती हैं ये मानों, सब खाना खा रहे हैं और ये नहीं खा रही हैं तो ये अपने में फील करने लगती हैं कि ये क्या सोचेंगे? मेरा कैसा जीवन है। कोई किसी के लिए कुछ नहीं सोचता। वो अपना ही एन्जॉय करते हैं। बल्कि एप्रीशिएट करेंगे कि इनका जीवन देखो कितना त्यागभरा है, इसलिए इनके जीवन में शांति है। इनके जीवन में संतोष है। तो अपने स्वमान को बढ़ाना है। बस सुपीरियरिटी कॉम्प्लेक्स देता है वो स्वमान। इतनी सुपीरियरिटी नहीं कि हमें इगो आ जाये। लेकिन स्वमान हमें इन तरह की फीलिंग से मुक्त कर देता है। हम उनके लिए प्रेरणा स्रोत बन जाएंगे। और इसके लिए ज्य़ादा सोचो नहीं। इन्हें थोड़े भगवान मिला है,भगवान तो आपको मिला है। त्याग भरा जीवन तो आपका है, आपको उनकी तरफ जाने की ज़रूरत नहीं। उनको आपके पीछे आने दो। हमें उनसे कटऑफ भी नहीं होना है। लेकिन आपको इस त्याग के साथ थोड़ा व्यावहारिक हो जाना चाहिए। मिलना-जुलना, उनसे अच्छी तरह बातें करना, उनको एप्रीशिएट करना। कभी-कभी क्या होता है कि जो ज्ञान वाले हैं जब उनको लगता है कि हम तो अलग-अलग से हैं तो पूरे ही अलग हो जाते हैं। व्यावहारिक भी नहीं रहते। लेकिन सोशलाइजेशन जिसे कहते हैं ना उसमें थोड़ा एक्सपर्ट हो जाना चाहिए। तो भले आप नहीं खा रहे उनकी चीज़ें, लेकिन उसमें से कुछ चीज़ें आपको खा लेनी चाहिए, मैं राय दूंगा, सबके साथ आप बैठो कुछ ऐसी भी चीज़ें होती हैं जो आप खा सकती हैं। बातचीत करते रहो, हँसते-बहलते रहो, तो ना उनको लगेगा कि वो आपसे अलग हैं और ना आपको लगेगा कि वो इनके बारे में कुछ सोच रहे हैं।

RELATED ARTICLES

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

Most Popular

Recent Comments