मुख पृष्ठब्र.कु. उषाकर्म और परमार्थ दोनों का बैलेंस ज़रूरी..

कर्म और परमार्थ दोनों का बैलेंस ज़रूरी..

पिछले अंक में आपने पढ़ा कि नाहाजि़र रहने पर भी केस जीत गए तो क्या कहेंगे? बाबा ने किया। यही कहते हैं ना कि बाबा ने किया। लेकिन कैसे किया बाबा ने? सर्वधर्म परित्यज्य, एक बाबा की शरण में आये तब बाबा ने काम किया। अब आगे पढ़ेंगे…
अब अठारहवें अध्याय में सर्व धर्म लेकिन कोई नहीं सोच पाता कि जब उस ज़माने में महाभारत के समय ना मुस्लिम थे, ना सिक्ख थे, ना ईसाई थे फिर भगवान ने कौन से धर्म की बात कही? ये कोई सोचता ही नहीं है। लेकिन हर इंसान के कितने धर्म हैं जिसके प्रति वो प्रतिबद्ध है। अगर वो कमिटमेंट मेरा पहला बाबा के साथ हो तो कहेंगे कि हाँ पहला धर्म मैंने बाबा के साथ निभाया। तो बाकी के धर्म को बाबा सम्भाल लेता है। इसलिए गीता में सफलता का सूत्र बताया सर्वधर्म परित्यज्य, मामेकम शरणम रज। तब सफलता सहजता से अनुभव होगी और ये स्वीट साइलेंस का जो सुकून मिलता है वो तभी मिलेगा। लेकिन इसका मतलब ये भी नहीं है कि लाइफ में इम्बैलेंस करें।
कर्म और परमार्थ दोनों का बैलेंस लेकर चलना है। व्यवहार और परमार्थ दोनों का बैलेंस लेकर चलना है। बैलेंस जीवन में बहुत ज़रूरी है। ये धर्मों को भी निभाने में बैलेंस बहुत ज़रूरी है। सर्व सम्बन्ध हमारे बाबा के साथ हों। लेकिन दुनिया के साथ जो सम्बन्ध निभाने का बैलेंस है वो भी हमें मेंटेंन करते हुए चलना है। ये नहीं कि नहीं अभी छोड़ दो इन सबको। छोडऩा भी नहीं है, इसीलिए हमेशा मिसाल दिया जाता है- एक तो कमल पुष्प, दूसरा गुलाब का पुष्प। पहला क्या बनना है? गुलाब के पुष्प और कमल के पुष्प में क्या अंतर है? लेकिन पहला क्या बनना है कमल या गुलाब? अच्छा कैसे बनेंगे गुलाब? कमल का इसलिए कहा क्योंकि कमल की गृहस्थी बहुत बड़ी होती है। लेकिन उसके बावजूद भी न्यारा है और उसकी पंखुडिय़ां इतनी कोमल कि कोई कीचड़ भी ठहर नहीं सकता। तो इसी तरह शुरू में जब हम बाबा के पास आते हैं तो कमल की तरह। रहना सबके बीच में है, बैलेंस से चलना है। उनका कीचड़ हमारे पर न लगे। इतना न्यारा और प्यारा होकर रहना है।
लेकिन फिर कमल के साथ-साथ पुरूषार्थ है हमारा गुलाब बनने का। गुलाब जो है ना वो भले जैसे कहा कि खाद से वो खुशबू देता है, कांटों के बीच में रहता है लेकिन एक गुलाब जब सम्पूर्ण खिल जाता है, खिलने के बाद उसकी पंखुडिय़ां झड़ जाती हैं, वो पंखुडिय़ां छोड़ देता है लेकिन कमल पंखुडिय़ां छोड़ता नहीं है। वो न्यारा-प्यारा ज़रूर है, अपनी पंखुडिय़ों पर कीचड़ लगने ही नहीं देता है। नीचे हो जाता है। तो पहले कमल होते हैं, कमल बनते हैं और फिर कमल के बाद हमारा पुरूषार्थ है गुलाब बनने का। जो एकदम ऐसे न्यारे हो जायें धीरे-धीरे सारी रेस्पॉन्सिबिलिटी को भी हमने निभाकर उसको भी पूरा कर सम्पन्न कर दिया। किसी को नाराज़ भी नहीं किया। सम्पूर्ण खिला हुआ रहे। अपनी खुशबू भी फैलाई। लेकिन सम्पूर्ण खिल करके सारी पत्तियों को झड़ करके बीच का जो बुर रह गया माना अशरीरी हो गया। तो ये स्वीट साइलेंस है।

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