प्रश्न : मैं सीए हूँ पर मेरा न ही जॉब में मन लग रहा है और न ही योग में। तो मुझे समझ नहीं आ रहा है कि अपने जीवन में क्या डिसीज़न लूं? ज्ञान मार्ग में बहुत आगे जाना चाहती हूँ पर प्रोग्रेस भी नहीं हो रही है।
उत्तर : सीए वालों को काम ज्य़ादा करना पड़ता है ना। इनकी सारे ब्रेन की जो एनर्जी है वो उस जॉब में खत्म हो जाती है। और मैं एक बात बहुत बार कह रहा हूँ कि योग अभ्यास के लिए भी ब्रेन को बहुत एनर्जेटिक, बहुत एफिशिएंट(कुशल)होना ही चाहिए। इसलिए योग में मजा नहीं आ रहा है। और योग में मन नहीं लगता तो फिर मन दुविधा में आ ही जाता है। इधर जाऊं या उधर जाऊं! लेकिन उधर जाने में भी बहुत सुख नहीं है। मैं तो हज़ारों केस देख रहा हूँ। उधर जाकर भी लोग बहुत पछता रहे हैं। आप इतना करो, आप अपनी जॉब को ऐसे सेट करो, मैनेज करो कि सवेरे आप उठ सकें। खुली हवा में चले जाना। छत हो तो छत पर चले जाना। अच्छा चिंतन करना, बाबा से दो बातें करना और दिन के लिए कुछ प्लैन बना लेना, कुछ अच्छे पुरूषार्थ का। कुछ दिन ये करने से मन स्पिरिचुअलिटी से भरपूर हो जाएगा और ये समस्या खत्म हो जाएगी।
प्रश्न : मेरी सोच ये है कि आज के टाइम में हर लड़की को फाइनेंशली भी इंडिपेंडेंट होना चाहिए। पर बाबा जो नौकरी की टोकरी न उठाने की बात करते हैं कुमारियों को, तो क्या मेरी ये बात बाबा की श्रीमत के अगेंस्ट है?
उत्तर : अब भगवान क्या कहता है और मनुष्य क्या सोचता है। क्योंकि पैसा ऐसी चीज़ है जिससे मनुष्य अपने को भरपूर और इंडिपेंडेंट महसूस करता ही है और इनका विचार भी ठीक है। लेकिन भगवान तो कहता है जब मैं आया हूँ, तुम्हें बड़ी-बड़ी से जॉब दे रहा हूँ और खज़ाने तो इतने दे रहा हूँ कि ये सब खज़ाने तो सब छोटे लगते हैं। हमारी कितनी बहनें अच्छी-अच्छी जॉब छोड़कर या अच्छी-अच्छी क्वालिफिकेशन लेकर सेवाओं में लग गई हैं। धन की उन्हें कोई कमी नहीं हो रही है। एक जगह की बात मैं आपको बताता हूँ, पूना के एक सेंटर पर मैं गया। बहनों ने कहा कि दादी आ नहीं रही हैं तो आप ओपनिंग कर दो। चार बहनें थी, छोटी-छोटी सी दिख रही थी। तो मैंने कहा कि अरे बहनों का परिचय तो करा दो, जो इंचार्ज थी। परिचय होने लगा तो एक ने बीटेक किया, एक ने एमटेक किया और एक ने एमबीए किया। उनमें भी एक सीए थी। मैंने कहा अरे आप इतने पढ़े-लिखे समर्पित हो गये। मैंने ऐसे ही कहा कि जॉब क्यों नहीं करती हो, इतनी अच्छी क्वालिफिकेशन तुम्हारे पास, यहाँ रहकर क्या करोगी? मुस्कुराने लगी कि जॉब करके छोड़ के आ गये हैं। यही जीवन है। यही सच्चा जीवन है। डिलाइटफुल (आनंदमय) लाइफ। तो देखिए उन्हें कोई कमी नहीं है, सुन्दर मकान बना लिया है। और जब हम सेवा करते हैं तो बाबा हमें कोई कमी रहने नहीं देता है।
प्रश्न : मेरे पास दो बच्चे हैं और दोनों ही मानसिक रूप से अपंग हैं। उनका मन ठीक से कार्य नहीं करता या ब्रेन ठीक से कार्य नहीं करता। तो इसके लिए क्या समाधान हो सकता है? बहुत सारे इलाज हमने कराये हैं लेकिन दोनों बच्चों की हालत ज्यों की त्यों बनी हुई है।
उत्तर : ये समस्या संसार में बढ़ती जा रही है। मानसिक रोग बहुत बढ़ रहे हैं। मुझे लोग कहते हैं कि पहले साइकेट्रीक डॉक्टर के पास कोई-कोई जाता था। अगर कोई जाता था तो छुप-छुप कर जाता था कि कोई देख ना ले। आजकल वहाँ भी भीड़ मिलने लगी है। अभी कोई मुझे बता रहा था तो मानसिक समस्याएं सचमुच बढ़ती जा रही हैं और इसका सीधा-सा कारण जो मैं बिल्कुल बिना हिचक के सभी को बताना चाहता हूँ। अति पाप कर्म। मनुष्य दूसरे को परेशान कर रहा है। हर्ट कर रहा है, सोने नहीं दे रहा है दूसरे को। टेंशन में ला रहा है, बुरे तरीकों से धन कमा रहा है। ये जो पाप कर्म हैं ये कहीं न कहीं ब्रेन को इफेक्ट कर रहा है। मन को बहुत दुर्गति की ओर ले जा रहा है। सच तो ये है कि अगर मनुष्य ने पाप कर्म छोड़कर पुण्य कर्मों की राह नहीं अपनायी, ये मानसिक समस्याएं समाप्त नहीं होंगी। देखो जिनके घर में जन्म लिया उन दोनों बच्चों ने तो उनसे भी उनके कार्मिक अकाउंट जुड़े हुए हैं। किसी जन्म में सबने मिलकर ये काम किए होंगे। अब उसके लिए भगवान से क्षमा-याचना करनी है और उन सबसे भी क्षमा-याचना करनी होगी जिन्होंने इनको कष्ट दिया, या जिनको इन्होंने कष्ट दिया है। दोनों चीज़ इम्र्पोटेंट हैं। इसके केस में प्राय ये है कि इनके द्वारा बहुतों को कष्ट मिला है। ये दोनों अगर क्षमा-याचना करें तो बहुत मदद मिल सकती है। अगर बच्चे छोटे हैं तो इनके माँ-बाप ये काम करेंगे। और बच्चों से क्षमा-याचना करेंगे क्योंकि इनका भी उनसे कार्मिक अकाउंट है। इन्हें राजयोग के पथ पर आ जाना चाहिए क्योंकि समस्या का यदि एक ज्वलंत समाधान चाहते हैं तो इन्हें दोनों बच्चों के लिए एक घंटा योगदान करना पड़ेगा रोज़। उन्हें पवित्र भोजन भी खिलाना पड़ेगा। एक घंटा एक बच्चे के लिए और दूसरा घंटा दूसरे बच्चे के लिए। मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ और जैसे शिव बाबा की किरणें मुझ में आ रही हैं। एक घंटा ये बहुत सुन्दर अभ्यास, और समर्पित कर दें उस आत्मा को, सकंल्प करें ये इसके लिए इससे क्या होगा धीरे-धीरे उसके ये विकर्म विनाश होंगे। जिनके कारण उनकी ये मानसिक स्थिति बनी है। दोनों बच्चों के लिए एक-एक घंटा। चार्ज करके दूध, पानी, भोजन जो भी उनको देना है उसमें भी यही विधि अपनायेंगे कि मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ। सात बार संकल्प करेंगे दृष्टि देकर लेकिन इनके ब्रेन को एनर्जी भी देनी है। दस मिनट सवेरे और दस मिनट शाम। फिर दूसरे के लिए भी यही दस मिनट सवेरे, दस मिनट शाम। चालीस मिनट चाहिए। माँ अगर डेडिकेट करे, अगर राजयोग के पथ पर आ जाये, अपनी शक्तियों को बढ़ाए तो उनके ब्रेन को एनर्जी देकर नॉर्मल किया जा सकता है। विधि हम बताते ही रहते हैं। हाथों को मलते हुए मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ, तीन बार याद करके उनके ब्रेन पर दोनों हाथ रखें। एक मिनट और इनसे इनका ब्रेन नॉर्मल हो जाये। फिर दुबारा दस बार ऐसे सवेरे-शाम। ये विधि अगर अपनाई जायें तो बच्चों की स्थिति में कुछ सुधार आ सकता है। अन्यथा क्या होगा जैसे-जैसे इनकी आयु बढ़ेगी, उनका हाल और बिगड़ेगा।



