सुबह की शुरुआत तीन संकल्प के साथ….

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कई कहते हैं कि मुझे क्रोध बहुत आता है। ये रियलाइज़ेशन कि मुझे क्रोध आता है और मुझे इससे मुक्त होना है, ये रियलाइज़ करना बहुत सुंदर बात है किसी भी आत्मा के लिए। बहुत लोग तो कहेंगे कि ये मुझे तंग करते हैं इसलिए मुझे गुस्सा आता है मैं क्या करूं! दूसरे कहेंगे क्रोध तो करना ही पड़ेगा, इसके बिना तो काम नहीं चलता संगठन में। कोई कुछ और कारण बतायेंगे। लेकिन ये रियलाइज़ करना कि क्रोध बहुत बुरी चीज़ है, ये हमारी आंतरिक शक्तियों को नष्ट करने वाला है, इसे हमें छोडऩा है, ये बहुत सुंदर बात है। सेल्फ रियलाइज़ेशन है ये। छोडऩे के लिए हमें शक्तियां भी चाहिए और विधि भी चाहिए। एक छोटी-सी विधि है… सवेरे उठने के पहले एक-दो मिनट में ही करनी होगी। उठे, बाबा को गुड मॉर्निंग की और तीन संकल्प कर लेना… मैं विजयी रत्न हूँ, क्रोध मुक्त हूँ, शांत हूँ। इसे पाँच बार कर लेना। विजय होगी, क्रोध से मुक्त होंगे, शांति बढ़ जायेगी। लेकिन करना है उठते ही, ये बात अंडरलाइन कर लें सभी। बाद में नहीं कि स्नान कर के, तैयार होकर फिर कर लेंगे। उसका इफेक्ट बहुत कम होगा।

अपने इमोशन्स पर विजय पानी है
सबसे बड़ी चीज़, विजय में सबसे पहले हमारी जो विजय होती है वो है काम और क्रोध पर। श्रीमद्भगवद्गीता के तीसरे अध्याय में ये एक श्लोक बहुत पॉवरफुल है, हे अर्जुन! जो योगी काम और क्रोध के वेग को रोकने में समर्थ है, वो ही सच्चा योगी है। जिसने दोनों पर विजय प्राप्त कर ली, इमोशनल विजय भी है ये। वो पॉवरफुल आत्मा है, वो श्रेष्ठ योगी है। आज से पहले भी, डेढ़-दो हज़ार साल से अनेक ऋषि-तपस्वियों ने काम, क्रोध को जीतने के लिए मेहनत की। लेकिन एक यथार्थ विधि न होने के कारण कुछ जीत पाये, किसी परसेंटेज तक जीत पाये, कुछ फेल हो गये। विधि है सर्वशक्तिवान से शक्तियां लेना। बिना इसके कोई मनोविकारों को परास्त नहीं कर सकता। ज़बरदस्ती कोई सोच ले मुझे पवित्र रहना ही है, मुश्किल काम होगा। लेकिन अगर शक्तियां प्राप्त कर लेंगे तो खेल हो जायेगा। ये मनोविकारों के अंश बीज सहित नष्ट होने लगेंगे। योग एक अग्नि है जो विकारों के बीज को नष्ट कर देती है। तो सभी बहुत सुंदर इस यात्रा पर आगे बढ़ेंगे। इमोशन्स को भी जीतना, काम-क्रोध को भी जीतना। एक सुंदर अभ्यास सभी रोज़ किया करेंगे…।

पाँच स्वरूप का अभ्यास व अनुभूति रोज़ करें आप सभी ने सुना है मुरलियों में, बाबा ने बहुत साल से, लगभग तीस साल पहले से पाँच स्वरूपों का अभ्यास करने पर बहुत ज़ोर दिया। कभी कहा, आठ बार करो सारे दिन में, कभी कहा बारह बार करो। जब-जब बाबा आये, इन अभ्यासों पर विशेष अटेंशन दिलाया। क्यों, क्योंकि अगर हम इस स्मृति में आते हैं कि मैं देवकुल की पवित्र आत्मा हूँ… देवकुल में… देवयुग में… ढाई हज़ार वर्ष तक मैं सम्पूर्ण निर्विकारी थी…।

श्रेष्ठ स्थिति से बदल जायेगी परिस्थिति
समय जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है, अनेक उल्टी बातें संसार में घटित हो रही हैं… कुछ आत्माओं के साथ ब्राह्मणों में ऐसा भी हो रहा है कि पहले वो बहुत अलबेले रहते हैं और जब परिस्थिति घेरने लगती है तब उन्हें श्रेष्ठ पुरुषार्थ की याद आती है। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। आत्मा खाली हो जाती है, निगेटिविटी का शिकार हो जाती है। और ये निगेटिविटी, उल्टे संकल्प, कमज़ोर संकल्प, व्यर्थ संकल्प सारा खेल बिगाड़ देते हैं। इसलिए सभी को परिस्थिति आने से पहले ही बहुत अच्छी स्थितियों का अभ्यास करते रहना है। कर रहे हैं बहुत, और बढ़ाना है। ताकि स्वस्थिति के प्रभाव से परिस्थितियां पहले ही नष्ट हो जायें।
ये बाबा की बात जो हमारे पास स्लोगन में लिखी है, सभी को अपने घर में ये स्लोगन लिखकर रख लेना चाहिए। क्रस्वस्थिति श्रेष्ठ होगी तो परिस्थितियां बदल जायेंगी।ञ्ज बहुत बड़ा रहस्य है वायब्रेशन्स का। बहुत भारी इफेक्ट है वायब्रेशन्स का। यदि स्थिति श्रेष्ठ है और कोई परिस्थिति आती भी है तो हम विजयी हो जाते हैं। जल्दी परिवार को भी सम्भाल लेते हैं। कई माताओं को मैं देखता हूँ, परिस्थितियों में इतनी अच्छी स्थिति वो रखती हैं, पूरे परिवार को सम्भाल लेती हैं। ये बहुत अच्छी बात है। इसलिए पहले से ही ये जो हमारी निगेटिविटी है, व्यर्थ विचार हैं, जल्दी परेशान होने का संस्कार है, गहरी चिंताओं में डूब जाने का संस्कार हैं, जिसको डॉक्टर आजकल एंग्ज़ाइटी कह रहे हैं। इसपर विजय पानी है। इसमें ज्ञान का बल हमें बहुत ज्य़ादा मदद करता है। इसलिए जहाँ योग लगाने की बात हम सब करते हैं, हमें चारों ही सब्जेक्ट पर बहुत ध्यान देना चाहिए।

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