मन की बातें

प्रश्न : क्या नष्टोमोहा का मीनिंग ये है कि हमें किसी की भी परवाह नहीं करनी चाहिए? चाहे हमारे परिवार वाले किसी भी सिचुएशन में हों। कृपया इसका हल बतायें, इसका मीनिंग बतायें कि नष्टोमोहा का सही अर्थ क्या है?

उत्तर : कई लोग वास्तव में नष्टोमोहा का ये गलत अर्थ समझ लेते हैं कि हमें बच्चों की ओर केयर नहीं करना है। हमें काम-धंधे की भी केयर नहीं करनी है। हमें इस रिलेशन की ओर ध्यान नहीं देना है अन्यथा मोह हो जायेगा। ऐसा नहीं है। हमें सबकी केयर करनी चाहिए। हमें अपने कत्र्तव्यों का अच्छी तरह निर्वाह करना चाहिए। बिल्कुल ये नहीं कि बच्चे हैं और आप उनकी पढ़ाई पर ध्यान न दें, कि जैसा चाहे पढ़ लेंगे हमें क्या, हमें तो नष्टोमोहा बनना है। ये नष्टोमोहा की गलत डेफिनेशन है। कई लोग ऐसा सीख लेते हैं पता नहीं कहाँ से कि कोई बीमार व्यक्ति है, तुम उसकी केयर कर रहे हो क्यों करते हो, तुम्हारा मोह हो जायेगा उससे, क्यों करते हो? ये गलत है। हमें केयर करनी चाहिए। प्यार देना चाहिए। इसको कोई मोह माने या कुछ भी माने परन्तु ये मनुष्य की जि़म्मेदारी है, उसका परम कत्र्तव्य है। पहली बात तो ये, ये केयरलेस होना किसी भी तरह से कल्याणकारी नहीं है। हम सबके लिए आत्मिक भाव अपनायें। सभी आत्माएं हैं। चाहे बच्चे हैं, पति है, पत्नी है और सम्बन्धी हैं। सम्बन्ध तो हैं ही वो तो इंटर्नल हैं। उनको कैसे भुलाया जा सकता है। उसको हम इग्नोर नहीं कर सकते। लेकिन सब आत्माएं हैं। ये फीलिंग अगर हम बढ़ाते चलें तो ये मोह नष्ट होगा। और जैसे-जैसे हममें योग की शक्ति बढ़ेगी, आत्मिक शक्ति बढ़ेगी तो ये मोह नष्ट होगा, और मोह की जगह ले लेगा नि:स्वार्थ प्रेम, आत्मिक प्रेम। ये लोग मोह को छोडऩे के चक्कर में प्रेम को भी छोड़ देते हैं। तो ये एक बहुत बड़ी गलती हो जाती है। एक रूखापन आ जाता है। ये बिल्कुल गलत है।

प्रश्न : मैं ईश्वरीय विश्व विद्यालय से 2014 अगस्त से जुड़ा हुआ हूँ और जब से मैं जुड़ा हूँ तो काफी परिवर्तन मेरे अन्दर आया है। पहले मुझे गुस्सा बहुत ज्य़ादा आता था, ड्रिंक करना, तम्बाखू का सेवन करना, वो भी मैंने छोड़ दिया है। मैं जॉब में था तो जॉब के बाद मेरी इच्छा हुई कि मैं बिज़नेस करूं, तो मैंने अपने कज़न के बिज़नेस में अपना पैसा लगा दिया लेकिन थोड़े समय के बाद कज़न ने मुझे उसमें से पैसा देने के लिए मना कर दिया कि मुझे बहुत लॉस हुआ है, तो ये पैसा मैं तुम्हें नहीं दे सकता। फिर से मैंने दूसरे एक साथी के साथ अपना बिज़नेस की शुरूआत की तो वहाँ से भी मुझे ऐसा ही धोखा मिला। तीसरी बार फिर से सोचा कि मैं बिज़नेस की शुरूआत करूं इस बार मैंने इन लॉज से, और मेरी पत्नी ने कुछ सेविंग्स की थी उससे कुछ लिए और मैंने अपनी पत्नी को साफ-साफ नहीं बताया, थोड़ा झूठ भी बोला ताकि वो मुझे पैसा मिल सकें। अब इस बार भी मुझे धोखा मिल गया और उन्होंने मुझे पैसे देने से इन्कार कर दिया और अब ऐसी स्थिति है कि मेरे पास कुछ भी नहीं है, जॉब भी नहीं है, बिज़नेस भी नहीं है?

उत्तर : पहले तो मैं इनकी अच्छी स्थिति के लिए इनको बधाई दूंगा, इन्होंने बहुत कुछ छोड़ भी दिया ज्ञान मिलने से। बहुत अच्छा परिवर्तन किया है। लेकिन इन्होंने एक गलती कर दी जो जॉब छोड़ कर बिज़नेस की ओर गये। मैं समझता हूँ कि बिज़नेस इनका फील्ड नहीं है। बिज़नेस के लिए बहुत अनुभव चाहिए। तेज-तराक लोग ही बिज़नेस में सफल होते हैं। भोले लोगों का काम वहाँ नहीं है। ये निश्चित रूप से भोले हैं, ये सब जगह लगाते रहे। अब इनको तीन मास मैं कहना चाहूँगा शांत करें अपने मन को। और योग अभ्यास करें, अच्छी साधना करें। मैं इनको राय दूंगा कि ये बिज़नेस फील्ड को छोड़ कर जॉब को अपनायें। रोज़ सवेरे-शाम तीन मास एक-एक घंटा बहुत अच्छा अभ्यास करें। सवेरे लें मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ, मैं विघ्न विनाश हूँ। अमृतवेला करें आत्मशुद्धि के लिए। इसके अलावा ये दो घंटे करने होंगे। इस योग बल से इनके विघ्न नष्ट होंगे। और शाम को जब योग अभ्यास करें तो मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ, सफलता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है। इस स्वमान को सात बार याद करके फिर योगाभ्यास करें तो इनको सफलता मिलेगी। इनका जो बन्द द्वार है वो खुल जायेगा। ऐसा अगर ये अपनायें तो जो काले बादल इनके जीवन पर छाए हुए हैं वो हट जायेंगे। ये अपने निश्चय को डाँवाडोल न करें। ये न सोचें कि बाबा ने मेरे साथ ये क्या कर दिया। शिवबाबा कुछ नहीं करता है। मनुष्य के अपने कर्म, उसका अपना भोलापन, कहीं-कहीं उसकी गलतियां, उसको डूबो देती हैं। अन्यथा इनको तभी समझ व सम्भल जाना चाहिए था जब इनको पहली बार धोखा मिला। ये थोड़ा लिखा-पढ़ी करके ही करना चाहिए। पैसा ऐसी चीज़ है जो हर व्यक्ति के इमान को डूला देता है। अभी जो हो गया है उसको तीन मास के लिए एक तरफ रखकर अच्छी साधनायें करें तो इनका मार्ग फिर से खुल जायेगा, मुझे पूर्ण विश्वास है।

प्रश्न : मैं पठानकोट,पंजाब से हूँ। मेरी समस्या ये है कि मैं अच्छे से ध्यान नहीं लगा पाता। मेरी जॉब किसी और सिटी में है, कभी मैं छुट्टी पर आता हूँ तो तब सेंटर पर जाता हूँ। तब मेरी स्थिति ठीक रहती है। लेकिन जब मैं फिर से बाहर जाता हूँ तो मेरी स्थिति वैसी की वैसी हो जाती है, ध्यान नहीं लगा पाता हूँ। क्या करूँ?

उत्तर : राजयोग में ध्यान को एकाग्र करना ये एक अच्छी साधना है। और इसके लिए मनुष्य को निरंतर अपनी पालना करनी पड़ती है। अभी ये दूर रहते हैं इन्हें वहाँ कोई साधन नहीं मिलता है, तो मैं इनको कहूँगा कि पीस ऑफ माइंड टीवी का प्रयोग करें। और रोज़ अपनी पालना करें। देखिए मान लो ये हफ्ते के बाद या एक मास के बाद दो-चार दिन घर जाते हैं तो एक मास में इनके अन्दर बहुत सारे निगेटिव थॉट्स आ जायेंगे। जो इनके माइंड को अस्थिर करते रहेंगे। एकाग्रता होगी ही नहीं। बहुत सारी चीज़ों की छाप- कर्म की छाप, उसमें आने वाली समस्याओं की छाप, दूसरे के व्यवहार की छाप, हमारे सब्कॉन्शियस माइंड में जाती ही रहती हैं। इसलिए इन्हें ईश्वरीय महावाक्य तो रोज़ सुनने ही चाहिए। अगर ये सेंटर जाकर नहीं सुन सकते तो टीवी के माध्यम से, नेट के माध्यम से अपनी पालना रोज़ करनी चाहिए। रोज़ माइंड को सुन्दर विचार मिल जायें। ये फूड ऑफ माइंड है, ये फूड ऑफ इंटेलेक्ट है। इसको ज़रूर खाना चाहिए। तब इनकी बुद्धि से जो और निगेटिविटी है वो रोज़ हटती रहेगी। सारा दिन का बोझ समाप्त होगा। अव्यक्त मुरली के लिए हम बताते हैं, दो-चार किताब खरीद लें और रात को एक अव्यक्त मुरली पढ़कर ही सोयें। रात को इनके विचार सुन्दर हो जायेंगे। जो निगेटिव इफेक्ट इनके अन्दर आया है वो समाप्त हो जायेगा। फिर सुबह चार बजे उठें, देखें कितनी अच्छी योग की कॉमेंट्री उसपर आ रही है। उससे योग अभ्यास करें। तब इनका ध्यान एकाग्र होगा। थोड़ी प्रैक्टिस भी करते रहें, कर्म में भी अच्छा अभ्यास करें। अशरीरी होने का अभ्यास, स्वमान की पै्रैक्टिस, पाँच स्वरूपों की प्रैक्टिस, ये अपने कर्म क्षेत्र पर ही करते रहें। जब ये ऐसा करेंगे तो इनकी एकाग्रता बढ़ती जायेगी।

प्रश्न : मैं सुनीता हूँ, अमृतसर से। मैं 28 वर्ष की हूँ और मैं ट्यूशन पढ़ाती हूँ। पिछले कुछ समय से मेरे साथ कुछ ऐसा हो रहा है कि सारे दिन, सुबह से रात तक मन के सामने एक फिल्म सा चलता रहता है। और ये फिल्म बहुत निगेटिव होता है। उसमें बहुत ज्य़ादा अश्लील चीज़ें जैसे दिखाई देती हैं। जिससे मेरा मन बहुत बेचैन हो जाता है। अशांत हो जाता है। कुछ वर्ष पहले ऐसा बिल्कुल भी नहीं था। अब ये होने लगा है। इसके लिए मुझे क्या करना चाहिए?

उत्तर : मैं अपने सभी साथियों को, भाई-बहनों, सभी दर्शकों को ये बात कहता रहता हूँ और सावधान करना चाहता हूँ कि हम कलियुग के उस पीरियड में पहुंच चुके हैं सब जानते हैं कि ये कलियुग चल रहा है और हम सब जानते हैं कि ये एंड ऑफ कलियुग है। ये कलियुग बदलने वाला है। अब हम चलते-चलते वहाँ पहुंच गये हैं बहुत केयरफुली जानने की बात है। जहाँ हमारे अन्दर के संस्कार प्रगट होने लगें हैं, किसी ने भी जो भी बैड कर्म किए हैं गन्दी चीज़ें की हैं देखी हैं सुनी हैं, जो हमारे अन्तरमन में समायी थी वो अब जगने लगी हैं। बहुतों को ये बैड फीलिंग हो रही है कि वो चाहते नहीं हैं लेकिन ऐसी चीज़ें सामने आ रही हैं। अब ये इनको पढ़ाना भी है ऐसी चीज़ें सामने आती रहेंगी तो इनकी एकाग्रता नष्ट हो जायेगी। इनका फ्यूचर भी खराब हो जायेगा। कोई स्टूडेंट इनके पास आयेगा नहीं। फिर जब मनुष्य सोता है, सोने जाता है फिर वो फिल्म ऐसी घूमने लगती है। इस फिल्म को नष्ट करने के लिए ही बहुत अच्छे राजयोग की अग्नि अपने अन्दर जलानी पड़ेगी। क्योंकि ये चीज़ें हमने भरी हैं किसी और ने नहीं। कुछ लोग भर रहे हैं अभी भी उनको बहुत पछताना पड़ता है जब उनकी दयनीय स्थिति हो जाती है ना मानसिक, बहुत पछताते हैं कि हमने अपने जीवन में ये क्या-क्या कर लिया इसलिए मैं अपने युवक साथियों को कहूँगा कि अपने जीवन में इन सबसे बचें। अगर अपने भविष्य को सुन्दर देखना है, अगर कुछ करना है अपने जि़ंदगी में तो इन सब गंदगी से अपना नाता तोड़ दें। इनको ये सब फीलिंग हो रही है। तो इनको वही अभ्यास जो हम बता आये हैं चर्चा कर रहे थे जब इनको ऐसी फीलिंग होने लगे तो तुरंत 21 बार याद करें मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ। अच्छी तरह तीन मिनट लगायें। मेरे से शक्तियों की किरणें फैल रही हैं। पॉवरफुल औरा बनता जा रहा है मेरे चारों ओर। इसमें जैसे ये लीन हो जायें, तल्लीन हो जायें तो बहुत जल्दी वो चीज़ समाप्त होने लगेंगी। सवेरे-शाम पाँच-पाँच स्वरूपों का पाँच-पाँच बार ये अभ्यास करें, और स्वमान का भी अभ्यास बढ़ायें। बच्चों को पढ़ाते हुए आत्मिक दृष्टि से देखें। क्या होता है जो बच्चे होते हैं उनसे भी बहुत सारी निगेटिविटी मनुष्य को आती रहती है। लोग सोचते हैं कि बच्चे तो पवित्र हैं, वो तो बहुत भोले हैं लेकिन आजकल ये स्थिति बदली हुई है।तो उनसे आने वाली निगेटिव एनर्जी, इनकी निगेटिव एनर्जी को स्टिम्युलेट कर देती है। इसलिए ये जैसे ही बच्चों को पढ़ाये तो पहले बच्चों को आत्मा देखें और अच्छे स्वमान का अभ्यास करें और उसमें स्थित हो जायें। ताकि इनके चारों ओर एक पॉवरफुल औरा बन जाये जो उस बैड एनर्जी को रिफ्लेक्ट करता रहे। ये इनको ज़रूर करना चाहिए और विश्वास करना चाहिए कि जल्दी समाप्त हो जायेगी। थोड़ा मेडिटेशन पर ध्यान दें, अपने लिए थोड़ा समय दें, अच्छे साहित्य का अध्ययन भी करें।

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