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बेगूसराय: राजयोगिनी दादी प्रकाशमणि जी की 18वीं पुण्यतिथि के अवसर पर, सभी ब्राह्मण परिवार भावपूर्ण श्रद्धां‍जलि दी

बेगूसराय (बिहार): बेगूसराय ब्रह्माकुमारीज सेवाकेन्द्र पर सम्पन्न राजयोगिनी दादी प्रकाशमणि जी की 18वीं पुण्यतिथि के अवसर पर, सभी ब्राह्मण परिवार भाई-बहनों ने दादी जी के कर्तव्य को याद करते हुए भावपूर्ण श्रद्धां‍जलि दी।

 बेगूसराय ब्रह्माकुमारीज सेवा केंद्र की संचालिका बी.के. कंचन कहा कि –”दादी जी की महानता थी – सादगी, निश्चिंतता और परमात्मा पर पूर्ण विश्वास। उन्होंने कहा की दादी प्रकाशमणि जी “रूहानी मातृत्व” की प्रतिमूर्ति थीं। वे सभी को सदा अपनापन, स्नेह और सहारा देने वाली थीं।

18 जनवरी 1969 को जब ब्रह्मा बाबा ने अपना शरीर त्यागा, तब ईश्वरीय कार्य की विशाल जिम्मेदारी दादी जी के कंधों पर आ गई। लेकिन उन्होंने कभी किसी प्रकार का डर या असमर्थता अनुभव नहीं की। दादी जी की विशेषता थी – वे कभी कठोर वचन नहीं बोलती थीं। वे सदा शांत, सरल और विनम्र रहीं। दादी जी के नेतृत्व में सेवाएँ विश्वभर में 140 देशों तक फैलीं। लाखों लोगों ने उनकी प्रेरणा से जीवन को नया आयाम दिया। उन्होंने “विश्व नवीकरण” का महान संदेश हर कोने में पहुँचाया।

विश्वभर के अनेक मंचों, सम्मेलनों और शिखर-वार्ताओं में वे ईश्वरीय ज्ञान का संदेश देती रहीं। उनका जीवन वास्तव में सादगी, मातृत्व और आत्मिक शक्ति का प्रतीक था।

यही दादी जी का स्लोगन था। निमित्त भाव, निर्माण भाव, निर्मल वाणी ही सच्चे जीवन की पहचान हैं। दादी जी ने हर कार्य को इसी दृष्टिकोण से सम्पन्न किया।

किसी ने दादी जी से पूछा – “आपको इतनी बड़ी जिम्मेदारी निभाने की शक्ति कहाँ से मिलती है?”
*दादी जी ने सहज उत्तर दिया – “जब परमात्मा साथ है तो सब सहज है।”
उनका जीवन एक जीवंत उदाहरण था कि किस प्रकार आत्मिक शक्ति, सादगी और निश्चिंत स्थिति के आधार पर संसार के विशाल कार्य सम्भव हो सकते हैं।

कभी-कभी लोग आश्चर्य से दादी जी से कहते –
“दादी, अगर हम आपकी जगह होते, तो इतनी बड़ी जिम्मेदारी का बोझ देखकर भाग जाते!” इस पर दादी जी बहुत सहजता से उत्तर देतीं – “यह जिम्मेदारी मेरी नहीं, परमात्मा की है। मैं तो केवल एक निमित्त हूँ। जब तक हम स्वयं को कर्ता मानते हैं, तब तक बोझ लगता है। लेकिन जब परमात्मा को कर्ता मान लेते हैं, तब जीवन सहज, हल्का और निश्चिंत हो जाता है।”
यही उनका सबसे बड़ा संदेश था – कर्तापन छोड़कर, परमात्मा को कर्ता मानकर जीवन जीना।

दादी प्रकाशमणि जी का जीवन एक प्रेरणा है।
उन्होंने हमें सिखाया कि –
1 निर्मल दृष्टि, वाणी और संकल्प से जीवन सुंदर बनता है।
2 परमात्मा को कर्ता मानकर जीने से जीवन सहज और निश्चिंत हो जाता है।
उनका जीवन हम सबके लिए यह प्रेरणा देता है कि साधारण में भी असाधारण उपलब्धि सम्भव है, यदि हम सच्चे अर्थों में आत्मिक शक्ति और परमात्मा पर भरोसा रखें।

सभा में उपस्थित हुए शहर के गणमान्य लोग –
रंजन अग्रवाल, भूषण अग्रवाल, रवीन्द्र झा, चन्द्र किशोर सिंह, संजय सिंह– एवं सेवा केन्द्र के भाई-बहनों ने श्रद्धांजलि दी।

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