हम सभी का जीवन हमेशा दो पहलुओं से ओत-प्रोत है। एक तो किसी का आना और दूसरा है किसी का जाना। आने और जाने का सिलसिला निरन्तर चलता है। जब कोई जुड़ता है तो मानसिक शांति हमको ऐसा लगता है कि मिलती है। लेकिन चले जाने के बाद उदासी आती है ऐसा हमको लगता है। आप इन दोनों बातों को बड़े ध्यान से देखेंगे, सोचेंगे तो आपको एक बात समझ में आएगी कि जब ये दोनों चीज़ें हो रही हैं इसके पहले मैं क्या था? पहले का मतलब है जब ये घटना घट रही थी तो उसके पहले हमारी मानसिक अवस्था क्या थी? तो हम पाएंगे कि शुरू में जब कोई नहीं जुड़ा था तो भी हम अकेलापन महसूस कर रहे थे। लेकिन जब कोई जुड़के चला गया तो भी हम अकेलापन महसूस कर रहे हैं।
तो इसका मतलब जो हमारी असली अवस्था है वो एकान्त और अकेलापन है ना! क्योंकि दोनों में कॉमन है- जुड़ा तो, नहीं जुड़ा,चला गया तो। दोनों स्थितियों में हम सभी बिल्कुल सिंगल हैं, अकेले हैं। अब आप देखो इस दुनिया में बीच-बीच में इन सब बातों से हमारा उमंग-उत्साह घट जाता है, प्रेम घट जाता है, भाव घट जाते हैं। क्योंकि इस मानसिक अवस्था को स्वीकार करने के लिए हम राज़ी नहीं हैं। हमें लगता है कि नहीं ये जीवन नहीं हो सकता, कोई तो चाहिए। किसी के साथ तो जीवन निर्वाह करना पड़ेगा,ऐसे थोड़े ही रह सकते हैं!
ऐसे ही दूसरी स्थिति में जब कोई चला जाये तो कहते हैं हमेशा तो कोई साथ होता नहीं। तो हम सब उसी अधूरेपन को दूर करने के लिए अलग-अलग हथकंडे अपनाते हैं। कभी हम किसी चीज़ के साथ जुड़ते हैं, कभी वस्तु, कभी यूट्यूब, कभी फेसबुक कभी जो भी है सिर्फ ये जताने के लिए कि मेरे साथ कोई है, मेरे एकान्त अकेलेपन को कोई दूर कर रहा है। लेकिन ये सही नहीं है कि जो अवस्था बार-बार आ रही है आपके जीवन में, आप दरअसल वही तो हैं। इसलिए मानसिक अवस्था, मानसिक उन्नति का जो सबसे बड़ा आधार है वो ये है कि इस बात को समझ जाना कि जीवन हमारा शुरू से अकेला ही रहा है। लेकिन अकेलापन को, प्यार से जीवन को स्वीकार करना इसकी ताकत हमारे अन्दर बहुत कम है।
परमात्मा निराकार शिव बाबा, शिव पिता हम सबको आकर ये बात रोज़ समझाते हैं कि तुम आत्माएं अकेले आये थे, अकेले जाना है। लेकिन वो बात सहजता से समझ इसलिए नहीं आती क्योंकि हम सबसे पहले ये बात स्वीकार करने को राज़ी नहीं कि सच में हम अकेले ही हैं जीवन में। हमारे आस-पास लोग जुड़ते ज़रूर हैं लेकिन जायेंगे ज़रूर। तो मानसिक उन्नति वहीं से शुरू हो जाएगी जब हम सबसे पहले उस बात को स्वीकार कर लेंगे, मान लेंगे, अपने अन्दर ढाल लेंगे कि हमारे जीवन में सबसे ज्य़ादा ज़रूरी है इस बात को मानना कि अकेलापन हमारा कोई दुर्भाग्य नहीं है, हमारा कोई अधूरापन नहीं है। बल्कि ये हमारा सौभाग्य है, हमको ये बात समझ में आ रही है कि किसी के होने या न होने से मैं आत्मा भरपूर नहीं हूँ, ऐसा नहीं होता, मैं आत्मा हूँ ही भरपूर। अकेले थे, अकेले हूँ, अकेले जाना है। इस अवस्था को स्वीकार करने से जीवन में हमारे हर पल, हर क्षण उन्नति होती रहेगी। और हमको लगेगा कि हम कुछ कर रहे हैं, मानसिक रूप से, शारीरिक रूप से, शाब्दिक रूप से, सामाजिक रूप से। क्योंकि अवस्था अगर एक दिन में बदल जाती है तो बहुत कुछ बदल जाता है ना।
इसलिए इस बात को समझ के इसको जीवन में उपयोग करना ही हमारे जीवन का लक्ष्य होना चाहिए। इसलिए मानसिक अवस्था को समझना, अकेलेपन को समझना, एकान्त को समझना मानसिक उन्नति ही है।



