मैं कौन, मेरा कौन बस ये दो शब्द… कोई कन्फ्यूज़न नहीं

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मेरी भावना यह है कि हर एक बाबा का बच्चा समान है। हमारी दृष्टि, वृत्ति में ज़रा भी भेद-भाव न हो। ड्रामा अनुसार मुझ आत्मा को बाबा ने इस शरीर में क्यों बिठाया है, वो जानता है, मुझे दिखाता है तू क्यों बैठी हो! हर दिन, हर सेकण्ड जो बीता, जो कल होगा देखा जायेगा।
जब ‘मैं’ शब्द कहती हूँ तो उस ‘मैं’ में ज़रा भी देह अभिमान की निशानी न हो। थोड़ा भी देह अभिमान की निशानी भिन्न-भिन्न फीलिंग में ले आती है। देही अभिमानी की फीलिंग ईश्वरीय स्नेह में सम्पन्न बनाती है। हमारी देही अभिमानी स्थिति होगी तो सर्वशक्तिवान बाप को हमें सर्व शक्तियों से सम्पन्न बनाना सहज हो जाता है। सर्वशक्तिवान बाप की शक्ति से हमारे अन्दर कोई भी कमी न हो। संगम पर बैठे हैं, यात्रा पर हैं, तैयारी नहीं कर रहे हैं। यात्रा पर हैं, आगे जहाँ जा रहे हैं और जो लेके जा रही है, यहाँ से उपराम होते जा रहे हैं। यहाँ मेरा कोई काम नहीं है, फीलिंग यह है। कोई पीछे रह न जाये, उसका भी कोई फिक्र नहीं है, पर ऐसी कोई विधि आत्मा को पार कराके, खींच करके लेेके चले। उमंग-उत्साह के पंखों से पंछी के समान उड़ायें। तो एक सेकण्ड में रियलाइज़ करो कि रियल्टी और रॉयल्टी क्या है?
बाबा जैसी एक्टिविटी और किसी की है ही नहीं। बाबा नॉलेजफुल है, पॉवरफुल है, ऑलमाइटी अथॉरिटी है। तुमको क्या करना है? जैसे बाबा कहते हैं किसी भी प्रकार की चिंता का नाम निशान नहीं है क्योंकि पता है करनकरावनहार बाबा है। बाबा क्या करता है, वो अनुभव मेरे से कराता है। किसी को भी नचाता है, यह नहीं देखता है कि इसकी आयु बड़ी हुई है, पता भी नहीं है आयु क्या होती है!
मैं कहती हूँ यह बहुत अच्छी आनंद लायक बात है कि मैं कौन हूँ, मेरा कौन है, सारी लाइफ के अन्दर जब से बाबा की बनी हूँ, पहले भी दुनिया में मोह-माया क्या होती है, मुझे पता नहीं था। धन,सम्बन्ध में कोई आकर्षण नहीं थी, पर बाप कौन है, मैं कौन हूँ यह दो शब्दों की बात है, कोई कन्फ्यूजन नहीं। तो प्लीज़ मँूझो मत, न आपको देखकर कोई मूँझ, इससे बड़ा पुण्य का खाता जमा होगा, इसके लिए सदा मौज में रहना, चित्त को शान्त रखना। जब तक चित्त शान्त नहीं रहेगा तब तक मन भी शान्त नहीं होगा। चित्त व बुद्धि में कोई प्रकार की स्मृति नहीं है। तो यह सब बातें इसलिए बता रही हूँ कि जिस किसी को भी कुछ खास परिवर्तन अपने पुरुषार्थ में लाना हो तो आज की घड़ी वो है।
यह रूहानी, ईश्वरीय आकर्षण खींचके मिलन मनाती है, यह मेरा स्वागत नहीं कर रहे हो अपने भाग्य का स्वागत कर रहे हो। इतनी अच्छी बातें हैं, वह तभी अन्दर काम करेंगी, जब देह-अभिमान वाली बातों में जाने का संस्कार न हो।
अच्छी बातों को जो यूज़ करते हैं, वह कभी किसी संस्कार स्वभाव के वश नहीं होते। गीता में भी है कि इसका दोष नहीं है, यह स्वभाव के वश है इसलिए कभी किसी के स्वभाव संस्कार का वर्णन नहीं करना, नहीं तो वो भी संस्कार के बारे में सोचना, वर्णन करना यह भी स्वभाव हो जायेगा, इसलिए स्व को सम्भालो। यह हार्ट बड़ा वीक है, एक सेकण्ड में हर्ट हो जाता है। फिर इसे हील करना मुश्किल है। सबसे नाज़ुक है हार्ट। हर्ट(दर्द) का भी कनेक्शन हार्ट से है।
आज आप सब इतने खुशी में हैं, मैं भी खुश हूँ तो इस प्रकार से खुशी में रहना, खुशी बांटना भगवान ने भाग्य दिया है। कभी भी न खुश होना माना जो दिया है, वो वापस ले लेगा, चला गया वापस, नहीं आयेगा फिर। अभी समय बहुत नाज़ुक है जितना भगवान भोलानाथ है, उतना धर्मराज भी है। समर्पण जीवन में ट्रस्टी और विदेही तो समर्पण की खुशियां मनाओ क्योंकि ईश्वर का समर्पण हो गये। कोई इन्सान को समर्पण नहीं हुए हैं इसलिए किसी के दबाव या झुकाव में आ नहीं सकते। वन्डरफुल ईश्वर है, हम भी भाग्यशाली हैं, हमको और बातों के लिए सोचने व बोलने के लिए टाइम ही नहीं है। तभी तो कभी बाबा के सामने जाओ, बाबा के सामने बैठो तो गुम ही जायेंगे। तो बाबा को देखते-देखते बाबा जैसे बनो। इसके लिए हमारे अन्दर कोई भी कमी-कमज़ोरी को खत्म करने की लगन हो, तो बाबा की दृष्टि से वो कभी कम होते-होते खत्म हो जायेगी। बाबा ने एक मुरली में कहा तुम भी ऐसे टॉवर बन जाओ तो सबका ध्यान जायेगा। तो नॉलेज, लव, प्युरिटी पॉवर से भरपूर रहो तो पॉवर के मुआफिक खींचता है।
अभी समय थोड़ा है, संकल्प में प्युरिटी, पीस, लव, नॉलेज हो तो समय और श्वास सफल हो जायेगा। ऐसे समय में अगर मुझे और कोई की बात याद आयी तो बाबा याद नहीं है। यह बड़ी महीन बात है, भले कोई 50 साल से ज्ञान सुना है, पर अभी ज्ञान बड़ा महीन हो गया है। योग रियली ऐसा है, जो अब लगता है राजाई संस्कार बन रहे हैं। राजयोग से राजाई संस्कार है। थोड़ा भी घटिया संस्कार न हो। सेवा क्या है, राजाई संस्कार हो। रियल्टी की राजाई से भासना में रहना, सबके लिए यह जो सेवार्थ भावना, पैदा होना, समर्पण हुए फिर देखते हैं, मन-वाणी-कर्म श्रेष्ठ है तो योगी माना विदेही और ट्रस्टी बन सकता है। जो होने वाला है वो हुआ ही पड़ा है, संगम का समय है कराने वाला बाबा है। बोलो मत। देखो, बाबा को साथी बना करके, साक्षी हो रहने का वरदान मिला हुआ है। बाबा साथी है, मुझे इशारे से चला रहा है। कराने वाला वो है, निमित्त करने वाली मैं हूँ। निमित्त भाव है इसकी गहराई में जाना।
जैसे ब्रह्मा बाबा निमित्त बना तो पै्रक्टिकली मन-वाणी-कर्म से हमारे सामने आइने का रूप धारण किया है। बाबा ऐसा पॉवरफुल आइना है, उसमें देखने से ही हम बदल जाते हैं। इसमें मुख्य बात है जो स्वभाव बनाया हुआ है, उसको चेंज करने की जब तक लगन नहीं है तक तक कोई भी परिवर्तन नहीं कर सकता है। बाबा चाहता है, बाबा को और कोई इच्छा नहीं है। बाबा कहता है तुम्हारे ऊपर सिर्फ ऊंच पद पाने की जिम्मेवारी है, मैं साथ दूँगा। जो भी सेवा है वो सच्चाई, नम्रता से करेगा तो सेवा में सहयोगी बनेगा, बनायेगा। तुम अगर बाबा को हाँ जी कहते हो, तो बाबा भी तुम्हें सदा हाँ जी कहता है। हाँ जी कने का बहुत अच्छा सरल नेचर है। यह नेचर सहयोग देने और सहयोग लेने में बहुत अच्छा काम करती है। सार रूप में भावार्थ यह है, कोई कर्मबन्धन नहीं, कोई हिसाब-किताब नहीं, कोई चिंतन नहीं, ऐसा निश्ंिचत रहने का, निश्चित भावी पर अडोल रहने का, बाबा से मिला हुआ वरदान बहुत काम करता है। शान्ति से सुख-शान्ति और प्रेम की दुनिया स्थापन करनी है तो वो कर रहा है। सारी दुनिया में सबको इंतज़ार है।
दिमाग ठण्डा, स्वभाव सरल उनका रहता है, जिन्हें पॉजिशन और पैसा कुछ नहीं चाहिए – दादी जानकी जी बाबा कितना बारी मीठे बच्चे, मीठे बच्चे कहता है तो हमें भी बाबा को कितना बारी मीठा बाबा, मीठा बाबा कहना चाहिए! मुरली पढ़ते सुनते लगता है कि बाबा कितनी मेहनत करता है हमको बनाने के लिए, जो कोई देखके कहे तुमको ऐसा कितने बनाया? ऐसा बनाता है और रिटर्न कुछ नहीं कर सकते हैं, बनके दिखाते हैं बाबा को। जो कोई मनुष्य आत्मा नहीं बना सकता है। वो पतितों को पावन बनाने वाला है और हम कभी पतित बनते हैं, कभी पावन बनते हैं। अभी हमको ऐसा बनाया है जो उनकी हीरे की मूर्ति बनाकर सोमनाथ के मन्दिर में पूजते हैं।
तो एवरहैप्पी, एवरहेल्दी रहना हो तो ऐसे अलबेले या लापरवाह नहीं रहना क्योंकि बाबा कहते हैं याद में ऐसे रहो, सब कुछ भूल याद करो। सब कुछ भूल याद करेंगे तो आखिर वो घड़ी आ जाती है नष्टोमोहा…। कहीं भी कोई भी देह-सम्बन्धियों में अथवा अपने विचारों में भी मोह न हो। मोह दु:खदाई है। मोह स्मृति-स्वरूप बनने नहीं देता है। बाबा ने मनमनाभव का वरदान दे दिया फिर बुद्धि को कहता है मध्याजी भव। लक्ष्य को सामने रखो(लक्ष्य सोप है) भले ज्ञान पानी, अमृत मिलता है फिर भी सोप के बिगर सफाई नहीं होगी। भले ज्ञान सुनेंगे सुनायेंगे, अच्छा लगता है, मन शान्त हो जाता है। मनमनाभव होने से अंग अंग शीतल हैं, योगी के अंग शीतल है। शीतल शब्द बहुत अच्छा है, शीतला देवी का पूजन है। कोई भी प्रकार की गर्म नेचर नहीं है, शीतल नेचर है। अपने संग के रंग में हमारे सारे पाप खलास कर दिये हैं तब तो इतने शीतल हैं। तुम्हारी कृपा से सुख घनेरे…।
तो मनन चिंतन में कोई चिंता फिकर नहीं है, चिंतन में ले लो राम, चिंता मेरी तब मिटेगी। कार्य भले करो निश्चिंत रहो ना। पूछताछ काहे को करें, बाबा को कराना है तो ऑटोमेटिकली आज दिन तक आपेही होता आया है। मुझे तो बाबा ने सदा ही फ्री रखा है, जहाँ जैसे रखा है वहाँ हाजि़र रही हूँ तो इसमें बहुत आनंद है। इज़ी राजयोग मेरे लिए है, राजयोग इज़ी तब लगता है जब बाबा से इज़ी हूँ, बाबा जहाँ रखे जो चाहे सो करावे। भक्ति में भी कहते हैं जो हरी की इच्छा। अन्दर से सच्चाई और प्रेम की गंगा बहानी होती है भागीरथ के समान, तो ऐसे आप भी आनंद लो ना। थोड़ा देखो मेरा मस्तक कैसा है! तो बाबा जैसा है! जब तक वह अपने जैसा नहीं बनाता है तब तक छोड़ता नहीं है। भगवान पीछे उसके पड़ेगा जो सच्ची सजनी होगी, सगाई करते ही उसकी याद रहती है, पर शादी के बाद में भूल जाये तो? कोई कर्मबन्धन खींचता हो तो? बाप क्या करेगा! रोज़ मुरली में भागन्ती वालों को याद करता है, इनमें से कोई न जाये। जो गये हैं उसकी बात सुनाता है ताकि यह न जाये। पिताव्रत में सपूत बनना है, सपूत वह जो सबूत देवे। बाबा ने कहा बच्चे ने माना। बच्चा कहे हाँ जी, बाबा कहता मैं तुम्हारे साथ हूँ।
बाबा कहता है भारत को स्वर्ग बनाता हूँ और विश्व की सब आत्माओं से चुन करके उनको अपना साथी बनाता हूँ ताकि सारी विश्व स्वर्ग बन जाये। सिर्फ भारत थोड़े ही बनेगा, आधा कल्प नर्क कैसे बना है, वह तो जानते हैं। पाँच विकारों ने मायावी दुनिया में फंसा करके मजबूर बना दिया, मजदूर बिचारा मजबूर होकर काम करता है। पर अभी बाबा याद दिलाता है, तुम मास्टर हो, मालिक हो ईश्वर को देख खुश हो जाओ, एक एक प्रभु का प्यारा है सबसे न्यारा है तो एक जैसे नहीं हो सकते हैं, यह भेंट करना भूल है परन्तु हर एक न्यारा और बाबा का प्यारा है। पार्ट भी जो कल था वो आज नहीं है, न्यारा है। ड्रामा है ना।
तो चिंतन में ड्रामा और बाबा की नॉलेज ने घर कर लिया है इसलिए मंथन भी वही चलता है। बाबा कैसे इस तन में आता है, क्या करता है? मैंने तो देखा है, आप भी ऐसे अच्छी तरह से देखो, समझो, अनुभव करो तो कभी देह अभिमान का भूत आता नहीं है, सबको अच्छा लगता है। हमको तो गले लगाके अपना बनाया है। ऐसे प्यारे बाबा को कितना प्यार करना चाहिए। तो हमारी नज़र ऐसी हो जो मेरी नज़रों में जो होगा वही औरों को दिखाई पड़ता है। तो कर्म बड़े बलवान हैं, बाबा सर्वशक्तिवान है, याद रखो। अमृतवेले से मंथन ऐसे करो जो मक्खन भी मिले छाछ भी मिलेग। अगर मंथन करना नहीं आता है तो न रहता है मक्खन, न रहता है छाछ। ऐसा मंथन करने वाले सदा शीतल रह करके सर्वशक्तिवान से शक्ति लेकर बाप समान बनने की धुन में रहते हैं।
ज्ञान मार्ग में न कोई पॉजिशन चाहिए, न पैसा चाहिए, इससे जो फ्री रहते हैं उनका दिमाग ठण्डा रहता है, स्वभाव सरल रहता है, सहजयोगी हैं। न अधीन हैं, न किसी को अधीन बनाके रखा है। मैं मर जाऊं तो यह कहाँ से खायेगा? बाबा ने प्रैक्टिकल अपना मिसाल दिखाया, अव्यक्त हो करके भी ऐसी हमारी सम्भाल कर रहा है, वन्डरफुल है। किसी को यह फीलिंग नहीं है हमने साकार को नहीं देखा, ऐसी पालना अव्यक्त हो करके कर रहा है। फिर कहता है मैं नहीं करता हूँ, कराने में होशियार है। भगवान किसी का भाग्य बनाने में बहुत होशियार है। एक त्याग से भाग्य बनाया, दूसरा कर्म से भाग्य बन गया।

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