चुनौतियों का सामना विवेक शक्ति से

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चुनौती हर एक के सामने आती है लेकिन किसी-किसी के लिए यही चुनौती अवसर के द्वार खोलती है और किसी-किसी के लिए यही चुनौती अवसर के द्वार बंद करती है और खूब पछाड़ती है। चुनौती के वक्त जो अपने मन को शान्त रख सकते हैं और सही निर्णय ले सकते हैं उनके लिए अवसर के द्वार खुलते हैं। लेकिन चुनौती के वक्त जो बहुत टेन्शन में रहता है, कन्फ्यूज़ रहता है, सही निर्णय नहीं ले पाता, स्वार्थ वश या किसी बात के प्रभाव वश अगर निर्णय लिया तो वो द्वार बन्द हो जायेंगे और वो पछाडऩे वाला अनुभव करेंगे। बाद में फिर अफसोस करना पड़ता है। क्या करें,उस वक्त मेरे ध्यान में ये बात आयी नहीं। फलाने ने मुझे ऐसा कहा इसलिए मैंने ऐसा किया। बाबा कहते कि तुमको किसी और के ऊपर ब्लेम(आरोप) लगाने नहीं लगाना। वास्तव में तुम खुद कितने कन्फ्यूज़ थे, कितने तनाव में थे इसलिए गलत निर्णय लिया। इसलिए आज तुमको पछाड़ती है। इसलिए चुनौती के वक्त अपने मन को शांत रखो, क्लीयर रखो।
दादी जानकी तीन शब्दा हमेशा कहती थीं- क्रक्लीन, क्लीयर और प्यूअरञ्ज। माइड को क्लीन रखो, स्वच्छ रखो। व्यर्थ बातों से भरो नहीं, उसको अस्वच्छ नहीं करो। निगेटिव बातों से अस्वच्छ नहीं करो। बुद्धि को क्लीयर रखो,स्पष्ट रखो। बुद्धि क्लीयर होनी चाहिए, कन्फ्यूज़ नहीं होनी चाहिए। और दिल प्यूअर हो तो मन स्वच्छ, बुद्धि स्पष्ट और दिल निर्मल(पवित्र)। जितना निर्मल और पवित्र रहेगा उतनी हर चुनौती को पार करना आसान होगा। दुनिया के अन्दर लोगों के सामने तभी अनेक प्रकार की चुनौती बढ़ जाती हैं जब देहअभिमान वश हो चलते हैं। इसीलिए जितना हम निर्माण होकर चलेंगे, निमित्त बन करके चलेंगे, बाबा करनकरावनहार ये समझते हुए चलेंगे तो समस्यायें खत्म हो जायेंगी। चुनौतियां पिछड़ जायेंगी। वो आपके सामने आ नहीं सकेगी।
बाकी एक चुनौती जो वर्तमान समय में हर ब्राह्मणों के लिए अपना सिर ऊँचा कर रही है। जो ध्यान देने योग्य बात है, वो है आज के समय में अनेक अपने आप को भगवान कहलाने वाले आ गये। बाबा मेरे में आता है। मम्मा मेरे में आती है। दादियां मेरे में आती है ये बहुत बड़ी चुनौती है। परख शक्ति नहीं होगी तो क्या होगा? फँस जायेंगे। शास्त्रों में एक बात आती है। कौन-सी बात आती है? पौंड्रक की कहानी आती है जो आपने सुनी होगी। जिसके पास ऐसी शक्ति थी कि वो कोई भी रूप धारण कर सकता था, और इसीलिए कहा जाता है कि उसने श्रीकृष्ण का रूप धारण कर लिया और श्रीकृष्ण द्वारिका से कहीं बाहर गये हुए थे। उस समय पौंड्रक श्रीकृष्ण का रूप धारण करके वहाँ आकर बैठ गये और सारे नगर में, द्वारका में सब लोग यही समझने लगे कि श्रीकृष्ण आ गये, द्वारिकाधीश आ गये। द्वारिकाधीश-द्वारिकाधीश करके उसकी जयजयकार भी बुला दिया गया। और सचमुच में जब श्रीकृष्ण आये। तो उसने उसको फ्रॉड(छल) बना दिया। उसका फ्रॉड सिद्ध कर दिया। लेकिन अन्त में सत्य, सत्य ही रहता है।
ठीक इसी समय अभी जैसे-जैसे अंतिम समय की ओर आगे बढ़ रहे हैं। ये बहुत बड़ी चुनौती ब्राह्मणों के लिए है, अब तीसरी बार यह झाड़ हिलने वाला है। कच्चे बच्चे सब जायेंगे। अच्छे-अच्छे बच्चे, ये शब्द कई बार साकार मुरली में सुना होगा। अच्छे-अच्छे बच्चे भी जायेंगे। उसमें आश्चर्य नहीं हो सकता क्योंकि परख शक्ति की कमी। उस पौंड्रक को पहचान नहीं सके। जो कहते बाबा-मम्मा आते हैं। हमें अच्छी पालना दे रहे हैं। इतनी अच्छी ज्ञान की बातें सुनाते हैं। अगर भगवान को आना ही था, तीसरा रथ लेना ही था तो इतना बड़ा यज्ञ जो भगवान ने बनाया, इतना विशाल वट(वृक्ष)जो बनाया। क्या यहाँ उसको तीसरा कोई रथ ही नहीं मिला! जो उसको बाहर वाले कोई आत्मा के अन्दर आना पड़े! सोचने की बात है। क्या यहाँ कोई पवित्र आत्माएं है ही नहीं!
जिस धरनी को भगवान ने अपनी शक्ति से सींचा, पवित्रता की शक्ति से सींचा बाबा मधुबन के अलावा कहीं और आया है? बाबा ने कहा, हाँ,जहाँ मधुबन बनायेंगे वहाँ बाबा आयेंगे। जानकी दादी एक बार बहुत पीछे बाबा के लगे थे। बाबा एक बार लण्डन आ जाओ, एक बार लण्डन आ जाओ। बाबा ने उस समय ये बात कही थी कि जहाँ मधुबन होगा वहाँ बाबा आयेगा। अब आज भगवान नगर-नगर घूम रहा है। क्या आज उसका कोई अस्तित्व नहीं? ऐसा हो सकता है कभी? विवेक को यूज़ करने की बात है। अगर कोई भी कहे कि हमारे पास भगवान आता है तो ये तो निश्चय की परीक्षा है ना! यही तो निश्चय को हिलाने वाली बात है। और जो कच्चे होंगे वो तो झडऩे ही हैं क्योंकि झाड़ बहुत वृद्धि को प्राप्त कर चुका है। भगवान वर्सा किनको देंगे? निश्चयबुद्धि विजयन्ती या संशयबुद्धि विनश्यन्ती?
मुझे याद आता है जब हम पहली बार आये मधुबन में, हिस्ट्री हॉल में बाबा मिलता था। छोटा-सा परिवार था। एक दिन छोड़ कर बाबा मिलता था। उसके बाद जैसे-जैसे वृद्धि हुई फिर दो दिन छोड़ कर, फिर हफ्ते में एक दिन, फिर सेंटर वालों से, फिर ज़ोन के हिसाब से, फिर भारत और विदेश वाले ये हो गया। मतलब जैसे-जैसे वृद्धि होती गई वैसे-वैसे बाबा का सभी से पर्सनली मिलने का समय भी पूरा होता गया। अगर बाबा को तीसरा रथ लेना ही था तो समेटना क्यों चालू किया? उसी समय से बाबा ने कहा था कि बच्चे ये अव्यक्त बापदादा का व्यक्त में मिलन कब तक! बाबा ने यहाँ तक इशारा दिया था कि बच्चे अव्यक्त बनकर के अव्यक्त मिलन मनाओ। जितनी देर तक मिलन मनाना चाहो मिलन मना सकते हो। जब बाबा ने पहले से ही हमारे अन्दर ये बीजारोपण किया कि बच्चे, बाबा कब तक आता रहेगा? अब आप लोग ऊपर आओ।

अगर बाबा ही नीचे आता रहेगा तो स्थिति कभी नहीं बनेगी। इसलिए बाबा ने कहा था, बच्चे आप ऊपर आओ और आप ऊपर आयेंगे तो आपकी स्थिति बनती जायेगी। फरिश्ते स्थिति बनेगी, वहाँ से निराकारी स्टेज में जाना आसान होगा क्योंकि ब्राह्मण सो फरिश्ता सो देवता। तो ब्राह्मण सो फरिश्ता बनना है। लेकिन माया अपना पौंड्रक का रूप धारण करके आयेगी। अगर पहचाना नहीं तो क्या होगा? खींच ले जायेगी। और जब लास्ट में सत्यता सामने आयेगी तब कितना पश्चाताप होगा सोचने की बात है! ये सबसे बड़ी चुनौती आज हर एक ब्राह्मण के सामने है कि आपके पास भी लोग आयेंगे कि बाबा ने तीसरा रथ लिया है, वहाँ बहुत अच्छी पालना बाबा दे रहे हैं, वहाँ चलो। माया खीचेंगी बहुत ज़ोर से तो क्या करेंगे? अरे माया को थप्पड़ मारो अभी। बाप को अपनी पीठ नहीं दिखाओ। हम सच्चे हीरे हैं बाबा के। और सच्चे हीरे कभी बाबा को पीठ नहीं दिखा सकते। माया को अभी तलाक देना है, बाबा को तलाक देेने का विचार भी नहीं आना चाहिए। ये है निश्चय बुद्धि विजयन्ती। और सबसे बड़ी बात अगर भगवान को तीसरा रथ लेना था तो लास्ट में 2017 में बाबा से पूछा गया कि बाबा अभी आगे? बाबा ने कहा समाप्ति वर्ष। नहीं तो बाबा उसी समय बता देता कि तीसरा रथ अब ये होगा। लेकिन नहीं कहा, समाप्ति कर दिया बाबा ने। और तब से ही बाबा का अव्यक्त पार्ट हो गया था। बाबा ने जो समय दिया है अभी भी थोड़ी कमी-कमज़ोरी अपने में है, उसको पुरूषार्थ करके बाबा की लिफ्ट की गिफ्ट लेकर उन्हें निकालें। माया के इस भ्रम में कभी फँसना नहीं है। परखने की शक्ति को बढ़ाकर आगे बढ़ें, इनके पीछे अपनी जीवन को नष्ट नहीं करना है। ठीक है? याद रखेंगे?

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