संगमयुग पर आत्मा का सर्वोच्च लक्ष्य है- परमात्मा समान बनना। परन्तु यह केवल ज्ञान सुनने या याद करने से नहीं होता, बल्कि सात सूक्ष्म अभ्यास द्वारा आत्मा स्वयं को दैवी चेतना में स्थिर करती है। ये सात अभ्यास वही हैं, जो हमें मानव से देवता और साधक से विश्व कल्याणकारी बनाते हैं।
कुछ भी प्राप्त करने के लिए स्पष्ट लक्ष्य का होना ही पर्याप्त नहीं होता बल्कि उसकी नींव का आधार सत्यता का होना भी आवश्यक है। साथ ही अभ्यास भी होना ज़रूरी है तभी हम न सिर्फ लक्ष्य को प्राप्त कर पाते हैं बल्कि जीवन में संतोष और आनंद भी होता है। उसके लिए जानते हैं अभ्यास के कुछ टिप्स:-
- 1. आत्म स्मृति का अभ्यास -‘मैं आत्मा हूँ’ हर परिवर्तन की जड़ में यही पहला अभ्यास है। जैसे ही आत्मा देह से अलग होकर अपने ज्योति-बिन्दु स्वरूप में टिकती है, वह तुरंत हल्कापन, पवित्रता और शान्ति का अनुभव करती है। बाबा कहते हैं-”बच्चे, शरीर से नहीं, आत्मा से सोचो, बोलो और कर्म करो। ” सुबह अमृतवेला, भोजन के समय, चलते-फिरते हर क्षण यह स्मृति रखो कि ”मैं ज्योति स्वरूप आत्मा, इस शरीर का चालक हूँ।” यह अभ्यास आत्मा को परमात्मा से जुडऩे के योग्य बनाता है।
- 2. परमात्म संयोग-”मेरा बाबा” की याद परमात्मा समान बनने की शक्ति केवल योग की अग्नि में प्राप्त होती है। जब आत्मा प्रेम से बाबा को याद करती है तो वह उसकी शक्तियों का पात्र बन जाती है। यह स्मृति केवल ध्यान नहीं, बल्कि एक जीवंत सम्बन्ध है। बाबा कहते हैं-‘बच्चे, जब तुम मुझे याद करते हो तो तुम्हारा हर संकल्प शक्ति की किरण बन जाता है।” निरंतर यह भाव रखो-”मेरा बाबा, मैं तेरा हूँ, और तू ही मेरी सर्वशक्ति का स्त्रोत है।”
- 3. पवित्र दृष्टि और वाणी का अभ्यास परमात्मा की दृष्टि सदा कल्याणकारी होती है। समान बनने के लिए हमें भी प्रत्येक आत्मा में शिवबाबा की संतान ये देखना सीखना है। किसी के दोष पर दृष्टि न रखकर उसके गुण पर ध्यान देना, और हर शब्द में स्नेह, मर्यादा और शुभकामना रखना-यही दिव्य दृष्टिकोण है। ”वाणी वह बनाओ, जिससे किसी की आत्मा ऊँची उड़ान भरे।”
- 4. निरहंकारी सेवा का अभ्यास परमात्मा समान बनने का अर्थ है- सेवा में सदा दाता भाव रखना। सेवा करते समय यह भाव रहे-”मैं कुछ नहीं करता, बाबा कराते हैं।” जब अहंकार मिटता है तो सेवा में सफलता, नम्रता और आकर्षण बढ़ता है। बाबा कहते हैं-”सेवाधारी बनो, मालिक नहीं।” यह अभ्यास आत्मा को सदा हल्का और आनंदमय बनाए रखता है।
- 5. स्व-स्थिति की स्थिरता का अभ्यास परमात्मा कभी परिस्थितियों से प्रभावित नहीं होता, वह सदा स्थितप्रज्ञ रहता है। समान बनने के लिए हमें भी परिस्थितियों में अपने मन को स्थिर रखना है। ” परिस्थितियाँ परीक्षा है, पर तुम्हारा मन शिक्षक के सामने स्थिर रहना चाहिए।” अमृतवेला के समय ”स्थिर मन” का अभ्यास-”मैं शांत सागर की लहरों में विलीन हूँ।” यह अभ्यास आत्मा को अचल-अडोल बनाता है।
- 6. शुभ संकल्पों का अभ्यास समान बनने का अर्थ है-हर विचार कल्याणकारी हो। जहाँ कोई क्रोध करे, वहाँ दुआ दो; जहाँ कोई नकारात्मक बोले, वहाँ स्नेह का शब्द दो। ”संकल्प ही बीज है-जैसा बीज, वैसा फल।” दैनिक अभ्यास करें-आज मैं केवल शुभ संकल्प ही बोऊँगा।” धीरे-धीरे ये संकल्प आपकी मनोशक्ति का भंडार बना देेंगे।
- 7. निरंतर कृतज्ञता और आनंद का अभ्यास परमात्मा समान आत्मा सदा आनंदित होती है, क्योंकि वह हर परिस्थिति को ‘बाबा का वरदान” मानती है। कृतज्ञता का भाव हृदय में रखने से मन सदा स्नेह और शक्ति से भरता है। ”धन्य हूँ मैं, जो स्वयं परमपिता ने मुझे चुना है।” हर दिन बाबा को धन्यवाद दें-”धन्यवाद बाबा, जो तूने मुझे यह दिव्य जीवन दिया।”
इन सात अभ्यासों द्वारा आत्मा धीरे-धीरे परमात्म समान बनने की स्थिति में पहुँचती है। यह कोई दूर का स्वप्न नहीं, बल्कि हर दिन का जीवन अभ्यास है। जब आत्मा इन गुणों में टिकती है- वह स्वयं ”शान्ति, प्रेम और शक्ति” की जीवंत मूर्ति बन जाती है। ”बाबा के बच्चे वही हैं जो बाबा जैसा बनते हैं।”




