परमात्म ऊर्जा

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आवाज़ से परे की स्थिति प्रिय लगती है या आवाज़ में रहने की स्थिति प्रिय लगती है? कौन-सी स्थिति ज्य़ादा प्रिय लगती है? क्या दोनों ही स्थिति इक_ी रह सकती हैं? इसका अनुभव है? यह अनुभव करते समय कौन-सा गुण प्रत्यक्ष रूप में दिखाई देता है?(न्यारा और प्यारा) यह अवस्था ऐसी है जैसे बीज में सारा वृक्ष समाया हुआ होता है, वैसे ही इस अव्यक्त स्थिति में जो भी संगमयुग के विशेष गुणों की महिमा करते हो वह सर्व विशेष गुण उस समय अनुभव में आते हैं। क्योंकि मास्टर बीजरूप भी हैं, नॉलेजफुल भी हैं। तो सिर्फ शान्ति नहीं लेकिन शान्ति के साथ-साथ ज्ञान, अतीन्द्रिय सुख, प्रेम, आनन्द, शक्ति आदि-आदि सर्व मुख्य गुणों का अनुभव होता है। न सिर्फ अपने को लेकिन अन्य आत्मायें भी ऐसी स्थिति में स्थित हुई आत्मा के चेहरे से इन सर्व गुणों का अनुभव करती हैं। जैसे साकार स्वरूप में क्या अनुभव किया? एक ही समय सर्व गुण अनुभव में आते हैं। क्योंकि एक गुण में सर्व गुण समाये हुए होते हैं। जैसे अज्ञानता में एक विकार के साथ सर्व विकारों का गहरा सम्बन्ध होता है, वैसे एक गुण के साथ मुख्य गुणों का भी गहरा सम्बन्ध है। अगर कोई कहे कि मेरी स्थिति ज्ञान-स्वरूप है, तो ज्ञान स्वरूप के साथ-साथ अन्य गुण भी उसमें समाये हुए ज़रूर हैं। जिसको एक शब्द में कौन-सी स्टेज कहेंगे? मास्टर सर्वशक्तिवान। ऐसी स्थिति में सर्व शक्तियों की धारणा होती है। तो ऐसी स्थिति बनाना- यह है समानता, सम्पूर्णता की स्थिति। ऐसी स्थिति में स्थित होकर सर्विस करती हो? सर्विस करने के समय जब स्टेज पर आती हो तो पहले इस स्टेज पर उपस्थित हो फिर स्थूल स्टेज पर आओ। इससे क्या अनुभव होगा? संगठन के बीच होते हुए भी अलौकिक आत्मायें दिखाई पड़ेंगी। अभी साधारण स्वरूप के साथ-साथ स्थिति भी साधारण दिखाई पड़ती है। लेकिन साधारण रूप में होते असाधारण स्थिति व अलौकिक स्थिति होने से संगठन के बीच जैसे अल्लाह लोग दिखाई पड़ेंगे। शुरू-शुरू में भी ऐसी स्थिति का नशा रहता था ना! जैसे सितारों के संगठन में विशेष सितारे होते हैं, उनकी चमक, झलक दूर से ही न्यारी और प्यारी लगती है। तो आप सितारे भी साधारण आत्माओं के बीच में एक विशेष आत्माएं दिखाई दो। जब कोई असाधारण वस्तु सामने आ जाती है तो न चाहते हुए भी सभी का अटेन्शन उस वक्त खिंच जाता है। तो ऐसी स्थिति में स्थित हो स्टेज पर आओ जो लोगों की निगाह आप लोगों की तरफ स्वत: ही जाये। स्टेज सेक्रेटरी परिचय न दे लेकिन आपकी स्टेज स्वयं ही परिचय दे। क्या हीरा धूल में छिपा हुआ भी अपना परिचय खुद नहीं देता है? तो संगमयुग पर हीरे तुल्य जीवन अपना परिचय स्वयं ही दे सकता है। अभी तक की रिज़ल्ट क्या है? मालूम है? अभी किस तुल्य बने हो? भाषण आदि जो करते हो उसकी रिज़ल्ट क्या दिखाई देती है? वर्तमान समय में जो नम्बरवन प्रजा कहें वह भी कम निकलते हैं। साधारण प्रजा ज्य़ादा निकल रही है। अभी साधारण रूप में असाधारण स्थिति का अनुभव स्वयं भी करो और औरों को भी कराओ। बाह्यमुखता में आने के समय अन्तर्मुखता की स्थिति को भी साथ-साथ रखो- यह नहीं होता। या तो अन्तर्मुखी बनते हो या तो बाह्यमुखी बन जाते हो। लेकिन अन्तर्मुखी बनकर फिर बाह्यमुखी में आना – इस अभ्यास के लिए अपने ऊपर व्यक्तिगत अटेन्शन रखने की आवश्यकता है। बाह्यमुखी की आकर्षण अन्तर्मुखता की स्थिति से ज्य़ादा होती है। इसका कारण यह है कि सदैव अपने श्रेष्ठ स्वरूप व श्रेष्ठ नशे में स्थित नहीं रहते। इसलिए स्थिति पॉवरफुल नहीं होती है।

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