बाबा को हम सदैव अपने सामने लाते रहें, बाबा की मूर्त में ही सम्पन्नता दिखाई दी। उसकी निशानी यह है कि स्वयं अशरीरी स्थिति में रहते थे। जब बाबा झोपड़ी में बैठते थे तो जब भी कोई बाबा के सामने जाता था तो बाबा की दृष्टि मिलते ही उनको पूछना भूल जाता था। एकदम बाबा की मूर्त से अशरीरीपन का अभ्यास ऑटोमेटिकली हो जाता था। तो साकार बाबा के सामने जाने से ही जो पूछना-कहना होता था वो एकदम भुला करके ऐसे साइलेंस में अशरीरी स्टेज पर ले जाता था। यह प्रैक्टिकल अनुभव हम सभी ने किया है।
तो ज्ञान, शक्तियां और गुण तो हैं ही हमारा खज़ाना लेकिन चौथा बाबा ने अटेन्शन दिलाया है- सबसे बड़ा खज़ाना है समय का। यह जो संगम का समय है- यह सबसे बड़ा खज़ाना है क्योंकि कोई भी प्राप्ति, कोई भी कर्म समय अनुसार ही होती है। सुबह से लेकर हमारी जो भी दिनचर्या चलती है वो समय के आधार पर चलती है। तो अगर समय के खज़ाने को सही रीति से विधिपूर्वक हम कार्य में लगाते हैं, तो हमारा सारे कल्प का भविष्य निश्चित हो ही जाता है क्योंकि यह संगम का समय, एक सेकण्ड 5 हज़ार वर्ष की प्रालब्ध का आधार है और कोई भी युग में हमारी प्रालब्ध नहीं बन सकती। यही संगम का समय है जिसमें हमारी चढ़ती कला होती है। तो संगम समय पर राज्य अधिकारी बनने से भविष्य में भी राज्य अधिकार निश्चित है ही फिर भक्तिकाल में पूज्य भी ज़रूर बनना ही है। भले द्वापर से गिरना शुरू करते हैं लेकिन हमारा पूज्य रूप तो कायम होता है। हम सब पूज्य ज़रूर बनने वाले हैं लेकिन जैसे यहाँ पुरुषार्थ में नम्बर हैं वैसे पूज्य में भी नम्बर हैं।
किसी किसी, बड़े बड़े मन्दिरों में रोज़ हर कर्म का यादगार पूज्य के रूप में विधिपूर्वक पूजा जाता है। और कहीं-कहीं ऐसा नहीं होता है। मंदिरों में भी फर्क है। यह सारा फर्क इस संगम समय के पुरुषार्थ और प्राप्ति के ऊपर है। तो हमको देखना है कि सबसे बड़ा खज़ानों का आधार जो समय का खज़ाना है उसको हम कितना और कैसे यूज़ करते हैं? क्योंकि बाबा का है कि अब नहीं तो कब नहीं का पाठ पक्का करना है। एक सेकण्ड में कुछ भी हो सकता है, अचानक होगा तब तो माला में नम्बरवार होंगे। तो अचानक होना है, उसके कारण बाबा कहता है- संगम के एक-एक सेकण्ड का अटेन्शन हो। ऐसे ही साधारण रूप में इसे न गंवायें। ऐसे ही साधारण रीति से हमारा दिन बीता तो वहाँ भी साधारण ही बनना पड़ेगा। तो अपनी लगन में मगन और अपनी कमाई जमा करने में मस्त रहें।
ज्ञान माना यह नहीं कि सिर्फ हमने समझ लिया फिर भी बाबा कहते ज्ञानी तो बने लेकिन अभी पॉवरफुल नहीं बने हैं। बाबा से प्यार का सर्टिफिकेट तो हम सबने ले लिया, प्यार नहीं होता तो छोड़के आते क्यों? इसलिए प्यार में तो पास हैं। हम कोर्स करा सकते हैं, बड़ी बड़ी जगहों पर भाषण कर सकते हैं, बुद्धि में सारी नॉलेज है रचता रचना की, लेकिन ज्ञान माना समझ। ज्ञान का अर्थ ही है समझ। तो समझ सिर्फ बोलना, ज्ञान वर्णन करना नहीं है। समझ हर कर्म में चाहिए, मानो हम संकल्प करते हैं उसमें भी समझ चाहिए – राइट है या रॉन्ग है। हम फालतू को ही बढ़ाते रहते हैं, तो यह ज्ञान है क्या? समझ है क्या? तो सोच समझ के काम करना है इसको कहते हैं ज्ञानी तू आत्मा। ज्ञान, गुण और शक्तियां… इसके लिए भी बाबा ने खास यह इशारा दिया है कि समय अनुसार, समस्या अनुसार जिस शक्ति की आवश्यकता है वो काम में आ जावे। तो ज्ञानी माना हर संकल्प, हर कर्म सोच समझकर करें। अगर समझ के आधार पर हम काम करेंगे तो हमारे कर्म कभी भी विकर्म नहीं होंगे, सुकर्म ही होते रहेंगे।
ऐसे ही योग की शक्ति के स्वरूप का भी हमें चेक करना चाहिए कि जब भी हम योग में बैठते हैं तो योग माना हमारा मन उसमें एकाग्रचित्त होना चाहिए, वो होता है या नहीं, होता है तो कितना समय होता है? ये चेक करने की बात है क्योंकि एकाग्रता हमारे योग की विशेषता है। जब और जहाँ हम अपने मन को लगाने चाहें, जितना समय हम मन को जिस स्टेज में ठहराने चाहें उसमें ठहरा सकें जिसको हम कहते हैं कन्ट्रोलिंग पॉवर, रूलिंग पॉवर। जिस समय जो लक्ष्य लेके बैठो तो जैसा वक्त वैसा काम होना चाहिए अर्थात् पढऩे के समय पढ़ाई पढ़ो, खेलने के समय खेल खेलो। तो यह भी हमें चेक करना है कि योग माना मन एकाग्र हो और हमारा मन जितना एकाग्र रहता है उसमें विशेष प्राप्ति यह होती है कि हमारा निर्णय बहुत अच्छा होता है।
तो योग माना हमाने मन की एकाग्रता। अगर मन में प्रापित नहीं होती है, मानो फरिश्ते रूप में जो हल्केपन का अनुभव होना चाहिए, मन के संकल्प का भी और शरीर भान का भी हल्कापन, अगर वो नहीं होता है तो क्या हम कहेंगे कि हम फरिश्ते के अनुभव में रहे? इसलिए योग में यहचेक करना है कि जो संकल्प में लक्ष्य लेके बैठे वो हमार पूरा टाइम चला या योग के साथ बीच बीच में युद्ध भी चली? चली तो उसको योग में एड नहीं करेंगे। जैसे 15 मिनट योग हुआ और 15 मिनट युद्ध हुई, तो ऐसे ही गिनती की जायेगी।
तो आत्म अभिमानी बनके बाबा की याद करना बहुत इज़ी है, जिसे आत्म अभिमानी बनके बाबा को याद करने की आदत नहीं होगी, उसको बााब की याद ज्य़ादा समय नहीं ठहरेगी क्योंकि आत्मा का कनेक्शन परमात्मा से है। तो बाबा जिस विधि से योग करने को कहते हैं, उस विधि से हमारा योग हो तो येागी शक्ति जमा हो सकेगी और अगर योगी की शक्ति थोड़ी भी कम है तो खज़ानों से भरपूरता की खुशी व शक्ति फील नहीं होगी। युद्ध चलती रहेगी, मनन चलता रहेगा वो सब होता रहेगा लेकिन यथार्थ न होने कारण वर्तमान सन्तुष्टि नहीं होगी और भविष्य प्रालब्ध भी जमा नहीं होगी।
इसी रीति गुणों के लिए भी बाबा कहते हैं – हमारी चलन से, हमारे सम्बन्ध सम्पर्क से किसको भी गुणों की फीलिंग आये। जैसे ये बहुत शान्त रहते हैं, बातों में नहीं आते हैं यह रमणीक रहते हैं, यह थोड़ा गम्भीर रहते हैं, यह सब पता तो पड़ता है। तो इसी रीति से भी हम देखें एक तो हमारा जो भी कर्म होताह ै वे हर गुणों से सम्पन्न होता है? चलते फिरते मुझे अन्तर्मुखता के गुण की फीलिंग आती है? कोई काम नही है उस समय मैं एकदम बिल्कुल अन्तर्मुखी हो जाऊं तो यह अभ्यास है? हमारे गुण स्वरूप को देख दूसरे में गुणों को धारण करने की प्रेरणा आती है, उमंग-उत्साह आता है तो यह हो गया गुण दान। तो मैं अपने सम्पर्क द्वारा गुण दान कर रहा हूँ या कर रही हूँ? ये चेक करो। तो ज्ञान, गुण, शक्तियां और समय… यह चारों ही खज़ाने जो हैं, उससे अगर हम भरपूर रहें तो सम्पन्नता की स्टेज के अनुभवी हो गये। अगर इन चारों में से कोई भी एकाध खज़ाना कम है या नहीं है तो हम सम्पन्नता के स्टेज का अनुभव नहीं कर सकेंगे। कभी कभी करेंगे नैचुरल नहीं होगा।
ऐसे ही बाबा कहते हैं इन खज़ानों को जमा करने का साधन क्या है? हम अपने पुरुषार्थ से खज़ाने जमा करते हैं। दूसरा है – हम जो एक दो को स्वमान देते हैं, स्वमान में रहते हैं तो उस नि:स्वार्थ सेवा द्वारा हम पुण्य का खाता जमा करते हैं। और एक दो के साथ सेवा में भी नि:स्वार्थ रहते हैं, बेहद में रहते हैं तो हमें दुआयें मिलती हैं। तो एक है अपने पुरुषार्थ से,दूसरी हैं दुआयें, तीसरा है पुण्य। यह तीन प्रकार से हम अपने खज़ानों को जमा कर सकते हैं। तो यह चेक करो। इसकी चाबी है निर्मान और निमित्त भाव। तो सम्पन्नता को हम इन बातों को चेक करें। निमित्त भाव में मैं पन और मेरापन खत्म हो जाता है क्योंकि करावनहार बाबा है, मैं तो ट्रस्टी हूँ। सिर्फ घर-गृहस्थी वाले ही ट्रस्टी नहीं है। कोई भी हमारी डयूटी है तो भी हम ट्रस्टी हैं, मालिक तो हमारा बाबा है हम निमित्त हैं। तो निमित्त भाव में निर्मानता भी आती है। उनकी वाणी भी निर्मल होती है। तो एक निमित्त भाव में यह तीनों प्राप्तियां होती हैं। तो निमित्त भाव खज़ाने जमा की चाबी है। तो खज़ानों को जमा करके सम्पन्नता को धारण करना है, उसके लिए यह अटेन्शन हमको रखना है।
फिर है सम्पूर्णता, यह सभी बातें अगर हमारे में हैं, सर्व खज़ाने हमारे पास जमा है तो नैचुरल है हमारे में सम्पूर्णता आयेगी। तो कर्म में जब हम आते हैं तो निमित्त भाव, नि:स्वार्थ भाव हो, दूसरा अगर हम अपने को सम्पूर्ण बनाते हैं, तो अशरीरी और डबल लाइट का अनुभव करें। बीच बीच में मैं अशरीरी आत्मा हूँ, इस अभ्यास को करना बहुत ज़रूरी है क्योंकि अन्त में हमें अशरीरी होकर घर जाना है। तो हमें अपनी अवस्था को चेक करना है। सम्पूर्णता माना सब खज़ाने सम्पूर्ण पूरे हों, परसेंटेज ठीक हो। तो अनुभव के ऊपर आप अटेन्शन ज्य़ादा हो। अनुभवी बनों तो कभी भी नीचे ऊपर नहीं हो सकते हैं। चाहे कितना भी कोई गिराने की कोशिश करे लेकिन अनुभव की अथॉरिटी वाला अपने अनुभव में रहता है। तो इसी रीति से सम्पूर्णता की दो स्टेज हमने सुनाई एक अशरीरी भव के वरदान को प्रैक्टिकल में लायें। दूसरा फरिश्ता, डबल लाइट अनुभव में आयें। जो भी भिन्न भिन्न प्रकार का बोझ आता है वो फरिश्ते रूप में बिल्कुल डबल लाइट बन जाये। तो यह है सम्पूर्णता की स्टेज।
तीसरी बात है समानता, वो तो सभी जानते हैं बाबा के समान बनना है। हमार वायदा है हम आपके सामने बनके ही शरीर छोड़ेंगे। अभी से समानता लाते रहेंगे तो बाबा जैसा समानता लाना, इसके लिए बाबा जिस विधि से चला वो विधि 100 प्रतिशत राइट है या वो रास्ता राइट है तब तो मंजि़ल पर पहुंचा अर्थात् अव्यक्त फरिश्ता बन गया। तो बाबा का रास्ता ही सही है तब तो मंजिल पर पहुंचेंगे। तो हम बाबा को फॉलो करने वाले हैं, कदम पर कदम रखने वाले हैं। तो जो भी हम संकल्प करें वो पहले बाबा से टेली करें। बाबा ने किया है ऐसा संकल्प? यह चलता ही है, यह होता ही है, यह रॉयल अलबेलापन आता है। तो हमें अभी इन सब बातों से हटके बाबा के समान हमको करना है। दूसरे को फॉलो तो करना ही नहीं है।
तो हमको बाबा समान बनना है, तो जो संकल्प करते हैं वो देखो बाबा ने यह किया, तो वो करो, नहीं तो नहीं करो। बस। बाबा ने जो कर्म किया, बाबा ने जो एक्टिविटी चलाई तो बाबा ने क्या किया वो फॉलो फादर करना है, बस। और कुछ सोचने की ज़रूरत ही नहीं है। बाबा ने नहीं किया, मुझे नहीं करना है। बाबा ने किया है मुझे करना है। नया रास्ता बनाना ही नहीं है। कदम पर कदम उठाना है तो बहुत इज़ी है। तो ऐसे सम्पन्नता, सम्पूर्णता और समानता में ब्रह्मा बाबा जैसा बनना है। वास्तव में प्यार उसको कहा जाता है जो उसकी चलन हो, जो उसकी रूचि हो मेरा भी ऐसे हो। तो ऐसे हम अटेन्शन देंगे तो क्या बन जायेंगे? तीनों क्वालिफिकेशन आ जायेगी। सम्पूर्णता भी आयेगी, सम्पन्नता भी आयेगी और समानता भी होगी।