प्रश्न : मैं इलाहाबाद से गजानन मिश्र हूँ। आप कहते हैं कि योगबल, संकल्प बल से सतयुग में संतान उत्पत्ति होती है, आप भी वर्षों से राजयोग कर रहे हैं तो क्या आप भी ये चमत्कार करके दिखा सकते हैं? यदि आप अभी ये करके दिखा दें तो हम आपके फॉलोअर बनने को तैयार हैं। और आप जो कहेंगे हम वो मानेंगे।
उत्तर : हम तो भगवान के बच्चे हैं हम तो सबको उससे जोडऩा चाहते हैं। दूसरी बात हम जो कहेंगे वो आप मानेंगे ये बात भी हम कैंसल कर रहे हैं। जो भगवान कहे वो आपको मानना है। और ये भगवान ने कहा है और ये हमारे वेदों में भी है कि सृष्टि के आदि में अमैथुनी सृष्टि चली, सृष्टि माना संतान, रचना। अमैथुनी विकारों के बिना। पवित्रता के बल से, अमैथुनी सृष्टि हुई, संतान हुई। तो वास्तव में मनुष्य समझ नहीं पाते, उनको आजकल का ये विषय-वासनाओं का, भोग-विलास का जो जीवन है, उससे जो संतान उत्पत्ति हो रही है, उसी के बारे में पता है। उन्हें पता ही नहीं योगबल क्या होता है। उन्हें पता ही नहीं कि सृष्टि के आदि की, सतयुग की प्रकृति की स्थिति क्या थी इसलिए मनुष्य के मन में ये प्रश्न उठते हैं। रही बात योगबल से संतान उत्पन्न करने की आपको ये मालूम होना चाहिए, योगबल से संतान उत्पत्ति तभी हो सकती है जब आत्मा और शरीर दोनों ही पावन हों। लेकिन इस कलियुग में कोई कितना भी बड़ा राजयोगी क्यों न हो। उसका देह पावन नहीं होता। क्योंकि देह पतित तत्वों से बना है, देह पतित माँ-बाप के सम्बन्ध से बना है। इसलिए देह में इम्प्युरिटी रहती ही है। इसलिए संकल्प बल को, संकल्प के कमांड को हमारा देह स्वीकार नहीं करता। हमेशा मानता नहीं है। जब देह और आत्मा दोनों पवित्र हो जायेंगी तो आत्मा के संकल्प देह तुरंत स्वीकार करेगा। और उसमें वो रिएक्शन हो जायेंगे जिससे संतान उत्पन्न होगी। तो ये कार्य अभी नहीं किया जा सकता। आपको अगर जानना हो कि योगबल क्या होता है तो आपको राजयोग का अभ्यास करना होगा। बहुत सारे चमत्कार इस संसार में होते हैं, आज दो मुख वाले बच्चे पैदा हो जाते हैं, चार हाथ वाले भी पैदा हो जाते हैं। ये सब भी तो चमत्कार हैं। लेकिन इन सब चमत्कार से हमें क्या मिलता है?
ज्ञान लेना, राजयोग का अभ्यास करना, परमात्म मिलन का सुख लेना उससे बड़ा चमत्कार और कोई नहीं। जिस गुरु ने चमत्कार दिखाये उसके लाखों शिष्य। और ब्रह्माकुमारीज़ को इतने साल हो गये फिर भी पंद्रह लाख ही इसके फॉलोअर्स कहें या इसके अनुयायी हैं जिसको फॉलो कर रहे हैं। लोग ज़रूर सोचते होंगे कि क्या पंद्रह लाख पवित्र आत्मायें हैं! वो पंद्रह लाख महान आत्मायें हैं, पंद्रह लाख लीडर्स तैयार हुए हैं। पंद्रह लाख ऐसी आत्मायें तैयार हुईं जिनका मनोबल बढ़ा-चढ़ा है, जिन्होंने पांचों विकारों को चैलेंज किया हुआ है। इसलिए संख्या बढ़ाना, हमारे पीछे लोग भाग आयें, हमारे फॉलोअर्स बन जायें, हम अथाह सम्पत्ति के मालिक बन जायें ये हमारा लक्ष्य नहीं है। हमारे पास तो जो आयेगा हम उसे परमात्मा की ओर ले चलेंगे। हम उसे पवित्रता का मार्ग दिखायेंगे। तो न तो हमें चमत्कार दिखाने हैं, और न ही इसके पीछे लोगों को आकर्षित करना है। क्योंकि हमारा लक्ष्य परमात्मा ने जो दिया है आत्माओं को पावन बनाना, और इस धरा को स्वर्ग बनाना है।
प्रश्न : मैं ब्र.कु. राजेश हूँ इंदौर से। शिव बाबा कहते हैं कि मुझे कम से कम आठ घंंटा याद करो। ये कैसे सहज हो और दूसरा आठ घंटें में कौन-कौन-सी बातें शामिल हैं? उत्तर : इसको हम आठ घंटे योग के अलावा एक दूसरा नाम दे दें, अव्यक्त स्थिति। यानी व्यक्त भाव से परे। इसमें हम मुरली सुनने और सुनाने को भी जोड़ लें। क्योंकि उसमें भी हम व्यक्त भाव से परे हैं, ईश्वरीय महावाक्यों का आनंद लेते हैं और देते हैं,लेकिन कुछ चीज़ों को सारा दिन प्रैक्टिस करनी चाहिए। इसमें पॉवरफुल योग परमधाम में, इसमें शिवबाबा से बातें करना, जिसको हम रूहरिहान कहते हैं। अपने फरिश्ते स्वरूप का अभ्यास करना, अपने पाँच स्वरूपों का अभ्यास करना, स्वमान का अभ्यास, अशरीरीपन का अभ्यास, आत्मिक दृष्टि का अभ्यास, सबको गुड वायब्रेशन देने की प्रैक्टिस ये सब इसमें काउंट हो जायेंगे।
मैं एक सुन्दर-सी प्लानिंग देना चाहता हूँ सबको कि जो आठ घंटे योग के अभिलाषी हैं इसमें ज्य़ादा बैठने की आवश्यकता ही नहीं है। कर्म में ही हमें इसकी प्लैनिंग करनी होगी। अलग-अलग कार्यों में अलग-अलग प्रैक्टिस हो। परमधाम में भी योग लगायें, सूक्ष्मवतन में भी रूहरिहान करें, बापदादा से वरदान भी लें और पाँचों स्वरूपों का अभ्यास भी करें और उसमें विश्व को वायब्रेशन देने का कार्य भी करें। फिर जैसे इस शरीर को तैयार करने के लिए एक बहुत अच्छी प्रैक्टिस है- मैं आत्मा हूँ ये देह मेरा मंदिर है। मैं मूर्तिचेतन, मैं मूर्ति इस मंदिर में हूँ, इसकी सफाई, इसका श्रृंगार कर रही हूँ। बहुत अच्छी फीलिंग देगी। स्नान आदि करते हुए अशरीरीपन की प्रैक्टिस और अपने भविष्य स्वरूप को देख लिया करें बीच-बीच में हम ऐसे थे, इतने डिवाइन थे, हमारी कंचन काया थी, हम कितने पवित्र थे, उसको भी याद कर लिया करें। तो ये जो एक डेढ़ घंटा समय है वो हम इस तरह स्वमान में व्यतीत करें और इस तरह प्रैक्टिस में व्यतीत करें। हो सकता है पंद्रह मिनट अव्यक्त मुरली का अध्ययन भी कर लें। फिर मुरली सुनने जायें और फिर बहुत तन्मयता के साथ महावाक्य सुनें। भगवान मुझसे बात कर रहा है और मैं आत्मा यहाँ बैठकर कानों से मुरली सुन रही हूँ। बीच-बीच में ये प्रैक्टिस करते हुए मुरली सुनेंगे तो मुरली का पौना घंटा भी योग में काउंट हो जायेगा। हमारी स्थिति बहुत अच्छी होगी, हम वहाँ से बहुत आनंदित होकर उठेंगे। उसके बाद जब नाश्ता करेंगे और कार्य पर जायेंगे तो ये सब करने से पहले बापदादा का आह्वान करें। उनके साथ ही हम आगे बढ़ें। शाम को फिर ड्रामा की स्मृति के साथ वापिस आयें। आज का ये ड्रामा का कार्य पूरा हुआ। मैं अपने घर मंदिर में जा रहा हूँ। बहुत गुड फीलिंग के साथ हमारा घर बहुत सुंदर है। सब देवकुल की आत्मायें हैं। कितना सबकुछ अच्छा भगवान ने हमें दिया है। इस फीलिंग के साथ घर लौटें। जितने भी कार्य कर रहे हैं हम सबसे पहले उसकी लिस्ट बना लें। फिर इस तरह से भिन्न-भिन्न अभ्यास कर लें।