सच को कभी छिपायें नहकई सालों पहले की बात है। एक गांव में युधिष्ठिर नाम का एक कुम्हार रहा करता था। दिन में वह मिट्टी के बर्तन बनाता था और जो भी पैसे मिलते थे, उनसे शराब खरीद कर पी लेता। एक रात वह शराब के नशे में अपने घर लौट रहा था। वह इतना नशे में था कि ठीक से चल भी नहीं पा रहा था। अचानक उसका पैर लडख़ड़ाया और वह ज़मीन पर गिर पड़ा। ज़मीन पर कांच के टुकड़े पड़े थे, जिनमें से एक टुकड़ा उसके माथे में घुस गया। उसके माथे से खून बहने लगा। इसके बाद कुम्हार किसी तरह उठा और अपने घर की ओर चल दिया। अगले दिन जब उसे होश आया तो वह वैद्य के पास गया और पट्टी करवाकर दवाई ली। वैद्य ने कहा, ‘घाव गहरा होने के कारण इसे भरने में समय लगेगा। पूरा भर जाने के बाद भी इस घाव का निशान नहीं जाएगा।’ इसके बाद कई दिन बीत गए। अचानक उसके गांव में सूखा पड़ गया। सभी लोग गांव छोड़ कर जाने लगे। कुम्हार ने भी गांव छोड़ कर जाने का फैसला किया और दूसरे देश की तरफ निकल गया। नए देश में जाकर वह राजा के दरबार में नौकरी मांगने गया। वहाँ राजा ने उसके माथे पर चोट का निशान देखा और सोचा, यह ज़रूर कोई पराक्रमी योद्धा होगा और दुश्मन से लड़ते समय इसके माथे पर चोट लगी होगी। यह सोचकर राजा ने उसे अपने दरबार में एक खास जगह दे दी और उस पर विशेष ध्यान देने लगे। यह देख कर राजा के दरबार में मौजूद राजकुमार, सेनापति और अन्य मंत्री उससे जलने लगे। ऐसा कई दिनों तक चलता रहा। एक दिन शत्रुओं ने राजा के महल पर हमला कर दिया। राजा ने अपनी पूरी सेना को युद्ध के लिए तैयार किया। उसने युधिष्ठिर से भी युद्ध में जाने के लिए कहा। युधिष्ठिर जब युद्ध भूमि की तरफ जा रहा था तो राजा ने उससे पूछा कि उसके माथे पर यह चोट किस युद्ध में लगी। इस पर कुम्हार ने सोचा कि अब वह राजा का भरोसा जीत चुका है और अब अगर वह राजा को सच बता देगा तो कोई समस्या नहीं होगी। यह सोचकर उसने राजा से कहा, ‘राजन, मैं कोई योद्धा नहीं हूँ। मैं तो एक साधारण-सा कुम्हार हूँ। यह चोट मुझे किसी युद्ध में नहीं, बल्कि शराब पीकर गिरने के कारण लगी थी।’ कुम्हार की यह बात सुनकर राजा को बहुत गुस्सा आया। उसने कहा, ‘तुमने मेरा विश्वास तोड़ा है और मुझे छल कर दरबार में इतना ऊंचा पद पाया है। निकल जाओ मेरे राज्य से।’ कुम्हार ने राजा से बहुत मिन्नतें की, उसने कहा कि अगर उसे मौका मिले, तो वह युद्ध में राजा के लिए प्राण भी दे सकता है। राजा ने कहा, ‘तुम चाहे जितने भी वीर और पराक्रमी हो, लेकिन तुम शूरवीरों के कुल से नहीं हो। तुम्हारी हालत शेरों के बीच रहने वाले उस गीदड़ की तरह है, जो हाथी से लडऩे की जगह उससे दूर भागने की बात करता है। मैं तुम्हें जाने दे रहा हूँ, लेकिन अगर राजकुमारों को तुम्हारा राज पता चल गया, तो वो तुम्हें मार डालेंगे। इसलिए, कहता हूँ कि अपनी जान बचाओ और भाग जाओ।’ कुम्हार ने राजा की बात मानी और तुरंत उस राज्य को छोड़ कर चला गया।
सीख : इस कहानी से यह सीख मिलती है कि इंसान की असलियत ज्य़ादा दिन तक छुप नहीं सकती, एक न एक दिन राज़ खुल ही जाता है।