पहली स्टेज जो होती है उसमें पुरुषार्थ करना पड़ता है, हर कदम में सोचना पड़ता है कि यह राइट है व रॉन्ग है, यह हमारा संयम है व नहीं? जब स्वयं की स्मृति में सदा रहते हैं तो नैचुरल हो जाता है। फिर ये सोचने की आवश्यकता नहीं रहती। कब भी कोई कर्म बिना संयम के हो नहीं सकता। जैसे साकार में स्वयं के नशे में रहने के कारण अथॉरिटी से कह सकते थे कि अगर साकार द्वारा भी कोई उल्टा कर्म हो गया तो उसको भी सुल्टा कर देंगे। यह अथॉरिटी है ना! उतनी अथॉरिटी कैसे रही? स्वयं के नशे से। स्वयं के स्वरूप की स्मृति में रहने से यह नशा रहता है कि कोई भी कर्म उल्टा हो ही नहीं सकता ऐसा नशा नंबरवार सभी में रहना चाहिए। जब फॉलो फादर है तो फॉलो करने वालों की यह स्टेज नहीं आयेगी? इसको भी फॉलो करेंगे ना! साकार रूप फिर भी पहली आत्मा है ना। जो फस्र्ट आत्मा ने निमित्त बनकर के दिखाया, तो उनको सेकण्ड, थर्ड जो नम्बरवार आत्माएं हैं वह सभी बात में फॉलो कर सकती हैं। निराकार स्वरूप की बात अलग है। साकार में निमित्त बनकर के जो कुछ करके दिखाया वह सभी फॉलो कर सकते हैं नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार। इसी को कहा जाता है अपने में सम्पूर्ण निश्चयबुद्धि। जैसे बाप में 100 प्रतिशत निश्चयबुद्धि बनते हैं, तो बाप के साथ-साथ स्वयं में भी इतना निश्चयबुद्धि ज़रूर बनें। स्वयं की स्मृति का नशा कितना रहता है? जैसे साकार रूप में निमित्त बन हर कर्म संयम के रूप में करके दिखाया, ऐसे प्रैक्टिकल में आप लोगों को फॉलो करना है। ऐसी स्टेज है? जैसे गाड़ी अगर ठीक पट्टे पर चलती है तो निश्चय रहता है- एक्सीडेंट हो नहीं सकता। बेफिक्र हो चलाते रहेंगे। वैसे ही अगर स्वयं की स्मृति का नशा है, फाउण्डेशन ठीक है तो कर्म और वचन संयम के बिना हो नहीं सकता। ऐसी स्टेज समीप आ रही है। इसको ही कहा जाता है सम्पूर्ण स्टेज के समीप। इस स्वमान में स्थित होने से अभिमान नहीं आता। जितना स्वमान उतनी निर्माणता। इसलिए उनको अभिमान नहीं रहेगा। जैसे निश्चय विजय अवश्य है, इसी प्रकार ऐसे निश्चयबुद्धि के हर कर्म में विजय है, अर्थात् हर कर्म संयम के प्रमाण है तो विजय है ही है। ऐसे अपने को चेक करो – कहाँ तक इस स्टेज के नज़दीक हैं? जब आप लोग नज़दीक आयेंगे तब फिर दूसरों के भी नंबर नज़दीक आयेंगे। दिन-प्रतिदिन ऐसे परिवर्तन का अनुभव तो होता होगा। वेरीफाय कराना, एक-दो को रिगार्ड देना वह दूसरी बात है लेकिन अपने में निश्चय रख कोई से पूछना वह दूसरी बात है। वह जो कर्म करेगा निश्चयबुद्धि होगा। बाप भी बच्चों को रिगार्ड देकर के राय सलाह देते हैं ना। ऐसी स्टेज को देखना है कितना नज़दीक आये हैं? फिर यह संकल्प नहीं आयेगा- पता नहीं यह राइट है व रॉन्ग है; यह संकल्प मिट जायेगा क्योंकि मास्टर नॉलेजफुल हो। स्वयं के नशे में कमी नहीं होनी चाहिए। कारोबार के संयम के प्रमाण एक-दो को रिगार्ड देना – यह भी एक संयम है। ऐसी स्टेज है, जैसे एक सैम्पल रूप में देखा ना! तो साकार द्वारा देखी हुई बातों को फॉलो करना तो सहज है ना! तो ऐसी स्टेज समानता की आ रही है ना! अभी ऐसे महान और गुह्य गति वाला पुरुषार्थ चलना है। साधारण पुरुषार्थ नहीं। साधारण पुरुषार्थ तो बचपन का हुआ। लेकिन अब विशेष आत्माओं के लिए विशेष ही है।