कहीं समस्याओं का कारण हम स्वयं तो नहीं…!!!

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आज मनुष्य अपने जीवन में ऐसे मोड़ पर जी रहा है जहाँ हर पल समस्याओं और विपरीत परिस्थितियों से उसका सामना होता है। हम जब स्वयं के ऊपर नज़र करें या इंट्रोस्पेक्ट करें तो ये समझ में आता कि कहीं हम ही तो इसके जन्मदाता नहीं! कहीं मेरी वजह से ही मुझे चोट तो नहीं पहुंच रही है! सबसे सूक्ष्म किंतु हमारे सोच और रहन-सहन में ऐसा सूक्ष्म रूप लेकर घुलमिल गया है जो हमें पता ही नहीं चलता कि मैं समस्या से क्यों जूझ रहा हूँ। ऐसे में जब स्व पर नज़र डालते, गौर करते हैं तो पता चलता है कि दु:ख, अशांति, समस्याएं और कुछ नहीं, ‘मैं’ और ‘मेरापन’ है। मैं-पन आया और हमारी शांति विचलित हुई। तो देखें, मैं-पन से क्या-क्या होता है? मैं-पन ऐसे तो नज़र में नहीं आता, उसका ऊपरी रूप लुभावना जैसा है, लेकिन उसको लेबोरेट्री में जैसे खून की चेकिंग करते हैं तो कैंसर के सूक्ष्म किटाणु का पता चलता है, उसी तरह हम सूक्ष्मता से अपने आप का अवलोकन करते हैं तो पता चलता है कि मैं-पन का भाव ही दु:ख का कारण बनता है। मैं-पन आने से व्यवहार और सेवाओं में दिव्यता का गुलदस्ता मुरझाने लगता है। टकराव होने लगता है। हमारी जो दिव्यता है, दिव्यता की रौनक है वो खत्म होने लगती है। सूक्ष्मता के लेंस से देखने पर हमारे और परमात्म शक्ति के बीच में एक दीवार-सी खड़ी दिखाई देती है। इसीलिए परमात्मा हमारे द्वारा जो कार्य कराना चाहता है, वो नहीं हो सकता है। वो हमें यूज़ करना चाहते, पर हम उस योग्य नहीं होते। हम सुनते रहते हैं कि करनकरावनहार परमात्मा है। हाथ बच्चों का, काम परमात्मा का। इसी रूप में हमने सुना है काम परमात्मा का और नाम बच्चों का। परमात्मा गुप्त रहता है, बच्चों से काम कराके उनका नाम करा देता है। और बच्चे सोचने लगते हैं, मैंने किया। बड़ी सूक्ष्म बात है ना! हम सबने अनुभव भी किया है, अच्छे-अच्छे अनुभव भी हुए हैं हम सबको। कोई हमें पूछते हैं, हम बीमार हो जाते हैं, डॉक्टर की दवाई काम नहीं आती तो क्या करें? ऐसे में सूक्ष्म व श्रेष्ठ पुरुषार्थी उससे कह देता है कि इस तरह, इस विधि से करो और उसने किया और ठीक हो जाते हैं। वो कैसे हुआ? हमने बताया, उसने विश्वास रखा। बाबा(परमात्मा) की नज़र उसपर पड़ी और वो ठीक हो गया। हमने तो सिर्फ बताया। परमात्मा ने उसे ठीक कर दिया। हमने ठीक नहीं किया। ये सूक्ष्म बात हमें समझ में नहीं आती, पकड़ में नहीं आती। वास्तव में सच तो यही है, परमात्म शक्तियों से ही वो ठीक होता है। कइयों के काम उलझे हुए हैं, हमने बताया, उनका काम ठीक हो गया। लोग सोचते हैं, इन्होंने ठीक कर दिया। लेकिन इन सबमें परमात्म शक्तियां ही कार्य कर रही होती हैं। भक्ति मार्ग में एक बात प्रसिद्ध है, लोग किसी भी देवी-देवताओं में भावना रखते हैं, आराधना करते हैं, उन देवी-देवताओं के माध्यम से उनकी कामनाएं पूरी होती हैं। लेकिन वो भी तो परमात्मा के ही बच्चे हैं ना! जैसे कि भक्ति में भी नाम गणेश जी का और काम शिव पिता का। वैसे ही देखा जाये तो माँ-बाप ही बच्चों का काम करते हैं ना! इसी से सम्बंधित श्रीमद्भगवद् गीता में लिखा है, और परमात्मा ने भी बताया है, भक्त जिन-जिन देवताओं में भावना रखते हैं, मैं ही उनके द्वारा उन सभी की मनोकामनाएं पूरी करता हूँ। तो हम सभी इस सूक्ष्म बात को समझ लें कि ये सब कार्य परमात्मा के द्वारा हो रहे हैं। अब अलौकिक कार्य को भी हम इसी दृष्टि से करें, ऐसी ही भावना रखें तो क्या-क्या होगा? सोचें ज़रा। ऐसी भावना रखने पर बाबा की मदद मिलती रहेगी। अक्सर हमारी भूल यही होती है कि ये मैंने किया। लेकिन वास्तव में बाबा ही करा रहा है। अगर मैं-पन आया, तो बाबा की मदद से हम वंचित रह जायेंगे। करनकरावनहार बाबा है, ये संकल्प अपने सबकॉन्शियस माइंड में उतार दो और निश्चय रखो कि काम बाबा का है, बाबा करा रहा है, मुझे खुद को यश-अपयश के प्रभाव से मुक्त रखना है। इस तरह से मेरा-पन भी हमारे अशांति का कारण बनता है। क्योंकि मेरा है, तो किसी ने उसको टच भी किया तो भी मुझे दर्द होगा। क्योंकि मेरा पन का भाव हमें महान बनने से रोकता है। मैं और मेरा-पन का भाव महान बनने नहीं देता। ये एक ऐसी बीमारी है जो हमें पकड़ में भी नहीं आती, न दिखाई देती। सूक्ष्म पुरुषार्थ की लेबोरेट्री में जब तक न लिया जाये तब तक ये हमें समझ में नहीं आता और हम ऐसे विकृत भाव को लेकर कार्य करते रहते, वहीं समस्याओं को जन्म देते हैं और हम दु:खी होते हैं। तो मैं और मेरापन को सूक्ष्मता से देखें और उसे त्याग दें और परमात्मा करा रहा है, इस संकल्प को बार-बार स्मृति में लाकर सबकॉन्शियस को शक्तिशाली बनायें।

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