वैराग्य की ज्ञान युक्तस्थिति

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दुनिया में एक भर्तृहरि का वैराग्य शतक बहुत ज्य़ादा प्रचलित है। जिसमें जो वैराग्य की व्याख्या उन्होंने की है उसमें कुछ बातें ऐसी लिखी हैं व्यक्ति पूरे जीवन जो अर्जित करता है। उस अर्जन में हरेक चीज़ को भय के साथ जोड़ दिया है। और उस भय के कारण वैराग्य को उत्पन्न करने का कारण बताया। उदाहरण के लिए कि भोग करने से रोग का भय, उच्च कुल में जन्म लेने से बदनामी का भय, धनाढय होने पर राजा का भय, बलशाली होने पर शत्रुओं का भय, रूप सौन्दर्य से वृद्धा अवस्था का भय, स्वस्थ शरीर को यमराज से भय, इसका मतलब ये दिखाया गया कि संसार में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसके रहने से भय नहीं लगता हो। अगर इस तरह का वैराग्य है तो व्यक्ति कुछ जुटाएगा ही नहीं। और अपने आपको इससे अलग महसूस करने की कोशिश करेगा। मतलब ये हुआ कि भर्तृहरि का जो वैराग्य शतक है वो जीवन से पलायन उत्पन्न करता है।


जीवन में संघर्ष है, संघर्ष के बिना जीवन नहीं, वैरागी हमेशा उदास रहता है अभी ये अगर बातें किसी को बतायी जायें, ये समझने का विषय है बहुत सुन्दर, अगर ये सारी बातें किसी को बतायी जायें तो लोगों के अन्दर उत्पन्न होगा कि सबकुछ करना व्यर्थ है। ये जो हम जीवन में एक-एक चीज़ कर रहे हैं ये एक-एक व्यर्थ है, क्योंकि भर्तृहरि ने बोला हुआ है। लेकिन जिसकी ज्ञान युक्त व्याख्या और उसकी समझ को थोड़ा-सा हम गहराई से अपने जीवन में उतारें तो शायद इसका मीनिंग कुछ बदल के आयेगा। क्योंकि भर्तृहरि का जो वैराग्य है ना वो जीवन की दुर्घटना से उपजा वैराग्य है। वो वैराग्य सिर्फ वैराग्य नहीं है वो घोर निराशा, हताशा, मोह के परिणाम स्वरूप अचानक ही उत्पन्न हो गया था उनके अन्दर। क्योंकि वैसे तो श्रृंगार शतक उन्होंने लिखा है कि जिसमें एक-एक चीज़ की बहुत सुन्दर व्याख्या की है कि जीवन ऐसा है, जीवन वैसा है। लेकिन एकाएक घटनायें उनके साथ ऐसी हुईं जो उनके अन्दर वैराग्य उत्पन्न हो गया। तो ये वास्तविक वैराग्य नहीं है। वास्तविक वैराग्य वो होता है जो व्यक्ति समझ से अपने अन्दर उत्पन्न करे। वैराग्य का गुण क्या है चित्त वृत्ति निरोध से बिल्कुल पनपता है। मन की ऊर्जा को संसार से बाहर देखने, सुनने और समझने का दृष्टिकोण पैदा करता है। इसका मतलब बाहर की दुनिया में क्या हो रहा है, अन्दर की दुनिया में क्या हो रहा है, बाहर की दुनिया में जो चीज़ें आपको मिली हुई हैं वो सबको पता है कि आज नहीं तो कल चली जायेंगी। वो कोई बहुत बड़ी बात नहीं है। ये समझने और सोचने की बात है। ऐसे ही जो कुछ भी आपके सामने है वो जायेगा, चाहे वो शरीर है, चाहे शरीर के साथ सम्बन्ध हैं, चाहे और-और चीज़ें हैं जो आपके साथ जुड़ी हैं वो जायेंगी। तो उनके साथ लगाव न हो, उनके साथ हमारा पूरी तरह से जुड़ाव न हो, उसको सही करने का भाव, उसको ठीक करने का भाव जितना ज्य़ादा से ज्य़ादा हमारे अन्दर उत्पन्न होगा उतना हम अपने आपको उस श्रेणी में रख पायेंगे, उस अवस्था में देख पायेंगे। लेकिन अगर कम होगा तो हम कम से कम उस चीज़ को देख पायेंगे। इसीलिए समाज को ऐसे चीज़ों की आवश्यकता पड़ी कि हम सबको क्यों न उन सब बातों से जोड़ा जाये जिसमें ज्ञान हो, समझ हो, व्यक्ति कार्य भी करे सबके साथ रहे भी। और अपने आपको वैरागी भी, वैराग्य अभ्यास से आता है, वैराग्य त्याग से आता है। जैसे कोई भी चीज़ आपके सामने है लेकिन आपको उसकी समझ नहीं है तो आप उसके साथ जुड़ जायेंगे और लेकिन आपकी समझ थोड़ी-सी बढ़ जायेगी तो वही चीज़ हमारे सामने हैं उसको यूज़ करना है, फिर छोड़ देना है। तो परमात्मा ने आकर हमको ज्ञान युक्त वैराग्य सिखाया। कहा कि जितना आप ज्य़ादा से ज्य़ादा अभ्यास करेंगे, जितना ज्य़ादा से ज्य़ादा आत्मिक स्थिति का अभ्यास करेंगे, अपने आपको इस शरीर से, इस शरीर के सम्बन्धों से डिटैच करने की कोशिश करेंगे, डिटैचमेंट का मतलब है कि स्ट्रेंथ बढ़ाना बेसिकली। अपने अन्दर भाव पैदा करना कि जितना मैं अधिक से अधिक लोगों से अलग रहूँगा उतना अधिक से अधिक शक्तिशाली तरीके से इस जीवन को देख पाऊंगा। तो हमारा दृष्टिकोण इतना शक्तिशाली हो जायेगा, इतना पॉजि़टिव हो जायेगा कि आने वाली हरेक चीज़ को मैं बहुत अच्छे तरीके से फील कर पाऊंगा। तो ये जो चीज़ें है, ये जो घटनायें हैं, ये जो बातें हैं इन बातों को गहराई से समझ पाने का ही आधार वैराग्य है। इससे वैराग्य की जो दुनिया में व्याख्या की गई वो कहीं से भी सत्य नहीं है, बिल्कुल भी सत्य नहीं है। हाँ इतना ज़रूर है कि आपको समझ मिली कि जो दुनिया का वैराग्य दिखाया गया कि किसी भी घटना से उत्पन्न जो वैराग्य है वो क्षणिक है। क्योंकि जैसे घटना ठीक हो जायेगी फिर से वैराग्य आपका नैचुरल हो जायेगा। आप सोचेंगे कि जब जीवन में हैं तो जीवन में सारी चीज़ें चाहिए ही चाहिए। लेकिन नहीं, ज्ञान युक्त वैराग्य त्याग के आधार से, और एक बार कोई चीज़ समझ गये तो आप उसके साथ जीयेंगे भी, उसके साथ रहेंगे भी और उसको छोड़ेंगे भी नहीं। तो ये सारी चीज़ें सोचने की हैं, समझने की हैं और इनको लेकर आगे बढऩे की है। तो इस तरह से हम वैराग्य को समझें और दुनिया के वैराग्य के आधार से अपने जीवन को ना तोलें।

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