स्वयं को इन तीन बीमारियों से बचायेें…

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आत्मा हो, तो शरीर से डिटैच हो जाते हैं क्योंकि वह पुर्नजन्म से न्यारा है तो उसके कहने में ताकत है। जो देह के सम्बन्ध से न्यारा है वह मेरे से बात करता है, दृष्टि देता है, घर की याद दिलाता है। मैं भगवान के सामने हूँ, यह सोचते ही खुशी आ जाती है। यह दुनिया पुरानी, पराई, छी-छी है। मैं आत्मा बाबा की हूँ तो अनेक जन्मों के विकारी संस्कार खत्म हो गये। अभी तक पुराने विकारी संस्कार छोटे-मोटे तूफान ले आते हैं, रूठने का भी संस्कार है। शक्ल चेंज हो जाती है। भाग्यवान कभी रूठता नहीं है। वह बाप को देखता है तो नशा चढ़ता है। उल्टे नशे वाला रूठता है। मैंने ये सेवा की, मैंने यह किया, कोई पूछता नहीं है। फिर खाना भी अच्छा नहीं लगता, नींद भी अच्छी नहीं आती है। सुल्टा नशा, नारायण बनने का नशा, लक्ष्मीपति, प्रकृति का पति यह नशा रहता तो वह लक्षण आयेंगे। ईश्वर की सन्तान हूँ, वर्से में भगवान के गुण आते जायेंगे। भगवान भी खुश होकर बच्चे को वर्से में सब गुण दे देता है।
भगवान ने इतना सबकुछ दिया है तो कितनी खुशी मेरे पास है! खुशी की खुराक खाओ तो चिन्ता करने का मर्ज छूट जाये। चिन्ता वाले को नींद भी ठीक से नहीं आती है। जिनके संग में रहते हैं, उसके संग का भी फायदा नहीं ले पाते हैं। कहेंगे मेरा कोई भी नहीं है। अरे खुशी में रहना है, अकेले हूँ तो भी खुश हूँ, सबके साथ हूँ तो भी खुश हूँ। वो खुश रहने वाला मजबूत बन जाता है। हमें बाबा का सच्चा, पक्का बच्चा बनना है। कोई भी परीक्षा आये, हम पक्के रहें।
याद को सहज बना दो, थक मत जाओ। थकने से याद नहीं ठहरती। एक है थकने की बीमारी, दूसरी है चिन्ता की बीमारी, तीसरी है रूठने की बीमारी। सब बीमारियों की दवा एक है- बाबा की याद। याद में रहने से बीमारी भाग जाती है। यात्रा पर भावना से जाते हैं तो
थकते नहीं है, उनको पक्का है अन्त तक पहुंचना है, वापस नहीं जाना है। भले पतले हो जायेंगे, बीमार हो जायेंगे, पर वापस नहीं जाना है। यहाँ भी जो वापस पुरानी दुनिया को देखते या पीछे मुड़कर देखते हैं तो थकते हैं, फिर सांस चढ़ता है, फिर हिम्मत हार खिला देती है। विजयी माला में आने वाला अच्छी सेवा करता, अच्छा पुरुषार्थ करता। वह कभी किसी की कम्पलेन नहीं करता है, उसकी भी कोई कम्पलेन नहीं करता है। अशरीरी बनने का अभ्यास, बाबा के प्यार की शक्ति और घर की याद तीनों इक_ी चाहिए। सेकण्ड में डिटैच हो जाओ।
बाबा खुद कहता है मंजि़ल ऊंची है, टाइम लगता है। फिर बाबा कहता बच्ची सेकण्ड लगता है। माया टच करती है सेकण्ड में, टच किया बस मुरझा गये। माया को सेकण्ड लगे और मुझे बाबा का बनकर मुस्कुराने में सेकण्ड न लगे! माया के पास पूरा प्लैन है हमको हार खिलाने का। बाबा हमको प्रैक्टिस कराता जीत पहनाने की। हम पहले से रेडी हैं, अस्त्र-शस्त्र तैयार हैं। अन्दर ही अन्दर अपनी घोट तो नशा चढ़े।

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