आज जिस दौर में हम जी रहे हैं, उसके बारे में किसी ने बिल्कुल सटीक कहा है कि ”आज हमारे मकान अच्छे हैं, लेकिन घर टूटते जा रहे हैं। घर में पति-पत्नी दोनों कमा रहे हैं लेकिन तलाक के मामले में बढ़ रहे हैं। हम चांद पर पहुंच गये लेकिन सड़क पार करके नये पड़ोसी से बात करने में दिक्कत है। बिज़नेस में मुनाफा हो रहा है लेकिन रिश्ते उथले होते जा रहे हैं। कुल मिलाकर कहें तो दिखाने के लिए हमारे पास बहुत सारी चीज़ें हैं लेकिन मन में पवित्र विचार, पवित्र भावनायें कम होती जा रही हैं।” इस दुनिया में संसाधनों की कमी नहीं है, कमी मानवता की है।
सच्ची मानवता के लिए सफलता के मायने समझने होंगे। सफलता की सच्ची परिभाषा समझनी होगी। हम सबके मन में है कि पैसे कमा लिये या एक बड़ी इंडस्ट्री चला ली तो हम सफल हो गये। यह सफलता नहीं यह ग्रोथ है। प्रगति और सफलता में बहुत बड़ा फर्क है। पैसा कमा लेना सफलता नहीं है, यह ग्रोथ है। इसके लिए पहली सबसे बड़ी ज़रूरत है विचारों की स्वच्छता, सात्विकता और विचारों की समृद्धि। विचारों में स्पष्टता होनी चाहिए। इंसान अपने विचारों से ही बना है। सफलता में सबसे पहली सीढ़ी विचार है। विख्यात लेखक एल्विन टॉफ्लर ने लिखा है कि ”मानव जाति का इतिहास विचारों का इतिहास है। कुछ विचार आया, विचार के ऊपर कुछ चिंतन किया, चिंतन करते-करते कुछ बढिय़ा संकल्प किया और इस तरह मानव जाति का यह रूप हमारे सामने है।”
जापान में कोई (Koi) प्रजाति की मछली होती है। जन्म के समय यह एक या डेढ़ इंच की होती है। इसके बाद अगर इसे टब में रखकर पाला जाये तो यह जीवन में सिर्फ दो या तीन इंच तक ही बढ़ती है। वहीं अगर इसे किसी एक्वेरियम या वॉटर टैंक में रखें तो यह आठ से दस इंच तक बढ़ती है। और अगर इसे किसी बड़े तालाब में पाला जाये तो यह दो-तीन फुट तक हो जाती है। दशकों तक वैज्ञानिक संशय में रहे कि उसी प्रजाति की मछली का विकास अलग-अलग तरह से कैसे हो सकता है! शोध में सामने आया कि मछली दरअसल परिवेश के आधार पर खुद के विकास को सीमित कर लेती है या बढ़ाती है। वह सोच लेती है कि मेरे लिए तैरने की इतनी जगह है। वो मानसिक रूप से यह स्वीकार कर लेती है। इस पर उसकी साइज़ निर्भर करती है। यही बात मनुष्य पर लागू होती है। अगर आपने खुद को सीमित कर लिया तो विकास वहीं रुक जायेगा।
रतन टाटा ने एक दीक्षण समारोह में बड़ी अद्भुत बात कही कि ”अपनी सफलता को अपने बैंक अकाउंट में उपलब्ध राशि से न आंकें। सफलता को इससे भी मत आंकें कि दुनिया के कितने देशों में आप व्यापार कर रहे हो, आपने कितने कर्मचारी नौकरी पर रखे हैं या अपनी सफलता को अपने उत्पादों की संख्या से भी न मापें। सफलता का एक ही पैमाना है कि आपकी इस यात्रा में आपने कितने लोगों का जीवन ऊपर उठाया।”
इंग्लैंड में आईसीसी की एक मीटिंग हो रही थी। मीटिंग का मुद्दा था कि फुटबॉल जितने पैसे क्रिकेट में क्यों नहीं हैं। तीन घंटे की चर्चा में छोटे-मोटे निर्णय हुए लेकिन कुछ ठोस नहीं निकला। वहां बैठे आईसीसी के एक क्लर्क ने कहा कि क्या मैं कुछ राय दे सकता हूँ। उन्होंने कहा कि फुटबॉल जितने पैसे क्रिकेट में आ सकते हैं, अगर एक निर्णय ले लें। अभी क्रिकेट में टेस्ट, वनडे फॉर्मेट है। अगर एक और फॉर्मेट लेकर आयें, गेम का समय कम करें, ट्वेंटी ओवर का मैच कर दें तो परिस्थितियां बदल सकती हैं। वहां बैठे दिग्गजों ने यह आइडिया नकार दिया। ‘100 आइडियाज़ दैट चेंज द वल्र्ड’ नामक किताब में लिखा है कि सत्तर परसेंट से ज्य़ादा विचार पहली बार बताने पर रिजेक्ट हुए थे। पर बाद में वे क्रांतिकारी साबित हुए। टी-ट्वेंटी क्रिकेट फॉर्मेट का आइडिया पहले खारिज हुआ फिर हिट साबित हुआ। यह विचारों की ही ताकत है। विचार सबसे ताकतवर है, बस उसमें पवित्रता बनाये रखने की ज़रूरत है।
इसी तरह अगर आज की दुनिया को बदलना है, नर्क को स्वर्ग बनाना है तो इसके लिए परमात्मा ने एक पवित्रता का विचार दिया कि ”आपका मूल स्वरूप पवित्र है, आप शक्तिशाली हैं, आप सफलता के सितारे हैं”, इस विचार को अगर शुद्ध अंत:करण से अपने जीवन में उतार लिया तो दुनिया बदल जायेगी।
मुख पृष्ठ आजादी के अमृत महोत्सव से स्वर्णिम भारत की ओर पवित्र विचार में वह ताकत… जो चाहें वो कर सकते