मन की बातें – राजयोगी ब्र.कु. सूरज भाई

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प्रश्न : मैं इंदौर से हूँ। मैं पिछले 6 महीने से राजयोग से जुड़ी हूँ। लेकिन कुछ समय पहले किसी ज्योतिषी ने मुझे कहा कि मेरे मेडिटेशन करने से या पूजा करने की वजह से मेरे घर की स्थिति, बच्चों का करियर और फाइनेंशियल प्रॉब्लम्स आ रही हैं। ये कैसे पॉसिबल है कि ईश्वर की भक्ति करने पर भी किसी को ये सब प्रॉब्लम्स हो सकती हैं, क्या ग्रहों की बातें सही होती हैं? या मेरा बाबा सही है, कृपया मार्गदर्शन करें।
उत्तर : ज्योतिषी विद्या तो बहुत सुन्दर है मैं इसको परफेक्ट विद्या मानता हूँ। नॉर्मली तो जब ग्रहों का बुरा प्रभाव होता है तो लोग भक्ति, पूजा पाठ करते हैं। अच्छी चीज़ों का परिणाम अच्छा ही होगा। अगर किसी ग्रह से निगेटिव एनर्जी भी आ रही है और आप मेडिटेशन कर रही हैं या किसी भी तरह की अच्छी चीज़ें भी कर रही हैं तो आपके पॉजि़टिव वायब्रेशन, निगेटिव वायब्रेशन्स को खत्म कर देंगे। इसलिए आपको ऐसा बिल्कुल भी नहीं सोचना चाहिए। और मन से ये भय निकाल देना चाहिए क्योंकि अगर आपको भय रहेगा कि कहीं ऐसा न हो जाये तो आपके भय के वायब्रेशन वैसा ही क्रियेट करेंगे। इसलिए बाबा ने एक बार एक माता को, जब उसके गुरु ने उसको श्राप दिया था कि कीड़े पड़ेंगे तुमको, तुम तड़प-तड़प कर मरोगी। और वो बहुत भयभीत हो गई थी। उसने बाबा से पूछा था कि गुरु ने ऐसा श्राप दे दिया तो बाबा ने कहा था कि बच्ची सोचोगी तो होगा। नहीं सोचोगी तो कुछ नहीं होगा। इसीलिए आप भी ऐसा ही करें।

प्रश्न : मेरा नाम कमल है। मैंने व्यर्थ चीज़ों का, फेसबुक और इंटरनेट आदि का भी त्याग कर दिया है। मेरा प्रश्न ये है कि क्या मैं 108 की माला में आ सकता हूँ? उसके लिए मुझे कुछ भी करना पड़े मैं तैयार हूँ। इसके लिए मुझे कैसे अच्छे से अच्छा पुरुषार्थ करना चाहिए?
उत्तर : आपका बहुत अच्छा इंटेंशन है। आपका त्याग निष्फल न जाये। आपका त्याग आपको श्रेष्ठ तपस्वी बना देगा। सत्य ये है कि जब भगवान इस धरा पर आये थे पूर्व कल्प में उन्होंने ईश्वरीय ज्ञान देकर, सहज राजयोग सिखाकर मनुष्यों को माया पर विजय प्राप्त करने का मार्ग दिखाया था। उसमें से 108 मनुष्यात्माओं ने माया पर सम्पूर्ण रूप से विजय प्राप्त कर ली थी। उनकी यादगार में ये वैजयन्ती माला है। वैजयन्ती माना अन्त में विजय। मैं आपको कहूँगा कि विजय माला में आप अपना नम्बर फिक्स कर दें 60 या 80 नम्बर। और फिक्स करके रोज़ विज़न बनाओ कि विजय माला में मेरा ये नम्बर होगा। और विशेष रूप से आपको लक्ष्य बनाकर रोज़ 8 घंटे प्रतिदिन योगाभ्यास करना है। कुछ बैठकर, बाकी कर्म में। आपको रोज़ एक विधि अपनानी है कि मैं सूक्ष्म लोक में हूँ और सामने बापदादा हैं। बिल्कुल क्लियर विज़न हो। ब्रह्मा बाबा के मस्तक में ज्योति जग रही है, वो दृष्टि दे रहे हैं फिर उन्होंने अपना वरदानी हाथ मेरे सिर पर रख दिया। तिलक लगाया और वरदान दिया मेरे बच्चे विजयी भव! सफलतामूर्त भव! श्रेष्ठ योगी भव! बस हम स्वीकार कर लें इन्हें। हमें नशा हो जाये तो ये प्रैक्टिकल अनुभूति में आने लगेंगे।

प्रश्न : मैं ब्र.कु. राजेश हूँ। मैं कुमार हूँ। मैं कुछ वर्षों से ज्ञान में हूँ। मैं ये जानना चाहता हूँ कि ब्रह्मा बाबा ने ऐसा क्या पुरुषार्थ किया जो सबकुछ भूल जाते थे, हम नहीं भूल पाते। जब कोई व्यक्ति गलती करता है तो दु:ख देता है, बार-बार क्रोध करता है या फिर कुछ ऐसा करता है जो अन्दर घुस जाता है तो ये सब बातें उसके सामने आने पर याद आती हैं,इससे ज्य़ादा तकलीफ होती है जिससे वो बातें बार-बार अन्दर खाती रहती हैं। हम फॉरगिव तो कर देते हैं लेकिन फॉरगेट करना मुश्किल लगता है। कृपया कुछ युक्तियां बतायें।
उत्तर : मनुष्य भूल उन्हें नहीं पाता, जिनको मनुष्य ने बहुत ध्यान से सुन लिया और ले लिया, एक्सेप्ट कर लिया। जो व्यक्ति बहुत सेंसिटिव होते हैं वो हर चीज़ को अन्दर लेते हैं। और जो व्यक्ति बहुत लाइट है वो आपस में हँसते-बोलते मैंने कुछ कहा, उसने कुछ कहा, और बात वहीं खत्म हो गई। बल्कि ऐसी बातों से, और पिछली बातें भी खत्म हो जाती हैं। तो मनुष्य को हर बात को लाइटली लेना चाहिए। आपने बाबा की बात पूछी है। बाबा तो इस संसार में सबसे बड़े योगी थे ना। शुरू से ही उन्हें ईश्वरीय नशा चढ़ गया था। अब अन्दर में समा ही कुछ और लिया हो तो दूसरी बातों के लिए जगह ही कहाँ बचती है! जिसने अपनी बुद्धि में भगवान को बिठा लिया हो उसकी बुद्धि में और किसी चीज़ को बिठाने का स्थान ही कहाँ बचता है। तो बाबा तो महान तपस्वी थे, श्रेष्ठ स्वमान में स्थित थे, सॉल कॉन्शियस होने की उन्होंने बहुत ज्य़ादा प्रैक्टिस की थी। और वो बड़े थे, ये दूसरी चीज़ है कि हम भी घर में अगर बड़े हों तो घर में छोटी-छोटी बातों को महसूस नहीं करेंगे। एक व्यक्ति का कारोबार करोड़ों में चल रहा हो और उसे पचास-सौ रूपये का नुकसान हो रहा हो तो वो थोड़ा ही उसपर कुछ सोचेगा, उसके लिए टाइम देगा। अकाउंट देखो ठीक से कि ये पचास रूपये क्यों नहीं आये हैं। तो हम बड़े, बातें बहुत छोटी। बाबा को तो फीलिंग थी ना कि मैं ब्रह्मा हूँ, ग्रेट-ग्रेट ग्रैंड फादर। ये सब मेरे बच्चे हैं। ऐसा नहीं है कि बाबा को कोई कुछ नहीं बोलते थे, बाबा की इंसल्ट करने वाले भी बहुत होते थे। लेकिन बाबा कहता था कि ये सब मेरे बच्चे हैं, कोई बात नहीं। मैं तो बाप हूँ ना! बाप को तो सुनना ही होता है। अपने आपको बहुत ऊंचा उठा दिया और बातों का लेवल बहुत छोटा हो गया। तो वो अन्दर जाती ही नहीं थी। बस यही टेक्निक हमको अपनानी है। बाबा की तरह अच्छे स्वमान में रहेंगे तो क्षमा करना भी सहज हो जायेगा। और साथ-साथ और चीज़ें भी भूलती जायेंगी।

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